किसे मैं देखूं बिना तुम्हारे ?
औरन के संग रीत नहीं है ।
न ज्ञान मुझमें किसे सुनाऊँ ,
अगर कहूँ तो प्रीत नहीं है । टेक ॥
यह आस मनमें लगी हुई है ,
प्रभू चरणपे जगी हुई है ।
दिदार देना खुशी तुम्हारी ,
प्रीतमके संग जीद नहीं है ॥ १ ॥
लगे रहेंगे वह नाम पीकर ,
जगे रहेंगे सबर- शुकरमें ।
न चाह राखूँ जगत्की दिलमें ,
कामनके घर नीत नहीं है ॥ २ ॥
जहाँ फिराऊँ नजरको अपनी ,
सभी लगे हैं अपन में सारे ।
न कोउ किसपर रहम करेंगे ,
यह बात मोमन होत नही है ॥ ३ ॥
वह दास तुकडयाको आस तेरी ,
भली समझ या बुरी रहे फिर ।
न कोउ चालक रहा हमारा ,
बिना प्रभू एक मीत नहीं है ॥४ ॥
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