है कोई ऐसा प्यारा ,
निज - घटमें खुदा बतलावे ? ॥ टेक ||
ज्ञान - अग्नि तनमें बढवाकर ,
द्वेत - भास जलवावे ।
जानपनाकी खाक कराकर ,
तनमें भस्म रमावे ॥ १ ॥
जहाँ रंगबिन झलके ज्योती ,
जैसे मोती पावे ।
जिवनकला वर्षाव करे जब ,
रंग - तरंग उठावे ॥ २ ॥
चढे अगन दरबार दसव पर ,
जिम जल - बूंद समावे । '
अस्ती भाती प्रीय '
सच्चिदानंद रूप बन जावे || ३ ||
बिन क्रोधी जल भरा शांतिसे
उसमें स्नान करावे ।
जीवदशा अपनी धुलवाकर
आत्मरूप बन जावे || ४ ||
आपहि आप शयन की माला ,
तन अंदरमें गावे ।
कहता तुकड्या वही गुरू कर ,
नहि तो जन्म फिरावे || ५ ||
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