मन यह मत भटकाना बे !
फिर खुले भाग सब तेरे ॥ टेक ॥
स्थीर रहो निज घटके अंदर ,
कुफर - कफर नहि करना
क्या तेरी नज़रोमे आवे ,
नज़र अजरमें धरना ॥ १ ॥
रंगरूप बिन झलके ज्योती ,
जो चैतन्य समाना ।
मनका मन राजा बन जावे ,
जब वह ज्योत पछाना ॥ २ ॥
शंख मृदंग घनन घडियाला ,
दस आवाज सुहाना ।
जिस गंगाके बूंद उपरसे ,
गंगामें बिसराना || ३ ||
इन तन अंदर खंब खंबमें ,
निकले शब्द बिराना ।
उसी शद्वपर स्थीर रहो तो ,
मोक्ष वहीं मनमाना ॥ ४ ॥
कहता तुकडया मस्त जिगर ,
अब करले साक्षी बाना ।
वहि संगतसे भला रहेगा ,
नहि तो नर्क उठाना ॥ ५ ॥
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