प्रभु अरज सुनत तन तारिया रे !
नर ! भजन करत
सब हारिया रे || टेक ||
घर का काम भुले नहि प्यारा ,
देवलमें तप करत बिचारा
कैसा हो भव - दुख - निवार ,
तिहारिया रे ॥ १ ॥
बाहरसे मुख ' ईश्वर ' बोले ,
अंदर चलते विषय - गलोले
ऐसे नर जमराज - सदनबिच ,
मारिया रे ॥ २ ॥
मातापिताका लोभ न छूटा ,
क्या परमेश्वर भजता झूठा
अंत - काल तन फूटा ,
होत बिगारिया रे ॥ ३ ॥
जो नर अंतर निर्मल होवे ,
वहि प्रभुके गुण निशिदिन गावे ।
तुकड्या तिनको सीस नमावत ,
बारिया रे ॥ ४ ॥
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