प्रभु - भजन करत मन मारना रे !
फिर जनम मरण दुख सारना रे ||टेक||
मनहीते भोगत दुःख सारा ,
जन्म - मरण भटकावत प्यारा ।
मनको भजनरूप करके ,
तन तारना रे ||१||
बाहार कर्म करनको त्यागो ,
अंतर्मुख होकरके जागो
नरका धर्म यही ,
गुरु बेद बिचारना रे ॥ २ ॥
अंतर्मुख बिन मुक्ति न पावे ,
सब संतनसंग यही बतावे
छोड़ विषयकी कास ,
आस यह जारना रे ॥ ३ ॥
भवसागर जिसे पार उतरना ,
उसने आतमजोत पकरना ।
तुकड्यादास कहे मत - भूल ,
विसारना रे ॥ ४ ॥
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