प्रेम प्रभूते लगा पिया रे !
काहेको गोते खात रे ?
प्रेमबिना तोहे चैन न पावे ,
झूठ जगतके नात रे || टेक ||
भरपुर - धार अपार बहुत है ,
आखिर बहते जात रे ।
भोगत जन्ममरण दुखभारा ,
आखिर मरघट पात रे || १ ||
काहेको साधत साधन आसन ,
बिकट पडी यह मात रे ।
राम - भजनमें ध्यान लगादे ,
टूटे यह अधःपात रे ॥ २ ॥
कलजुगमे महिमा नहि दुसरी ,
संतबचन यह गात रे ।
छोड़ भरोसा झूडे जगतका ,
फीर अकेला जात रे || ३ ||
संतसंगतबिन प्रेम न मिलता ,
जा गुरुचरण नमात रे ।
तुकड्यादास गुरुपद जाने ,
गुरु तोड भव- ताँत रे ॥ ४ ॥
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