दे दिजीये आगिया ,
हम अपने घर जाते रहे || टेक ||
बहुत दिन बीते गये ,
इन आयकर नगरीनमें ।
बस माफ हो रहना मेरा ,
तुम नामको पाते रहें || १ ||
आजतक मालुम न था ,
हमको हमारा भी पता ।
पायकर तुम्हरे चरण ,
अब भंगको पीते रहें ॥ २ ॥
छोडकर ऐसी मजा ,
हम लौट कैसे जायेंगे ?
आपकी किरपा रहे ,
ऐसे मजे आते रहे ॥ ३ ॥
जन्नती द्वारा खुला ,
अब आस है ना दूसरी ।
दास तुकडचाको दिजे बर ,
चरणको छूते रहें ॥ ४ ॥
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