क्या छुपा या डुब गया था ,
हिंदुओंका खानशा ?
बर करारोंसे पलट होता
भया इस्लामशा ॥ टेक ||
तोड़कर बुतखाँ कई
मसजीद किन्ही जायकर |
क्या लगी थी आँख अपनी ,
या नहीं थे शानशा ? ॥ १ ॥
लाखहूको पूजके फिरमी
न होती शांतता ।
डारकर नाडा गले ,
लेते सवारी की नशा ॥ २ ॥
गर पीर थे महंमद वली ,
क्या दुश्मनी करने कहा ?
गर दे चुके इल्लामको ,
तो माँगते क्यों भीकशा ? ॥ ३ ॥
कर्मके बिन इस जगतमें ,
कौन देनेवार है ? |
गर कर्मही देता समी ,
तो क्यों पहरते अवदशा ? ॥ ४ ॥
याद रखकर खोजलो ,
मेरा प्रमू सबही जगह
कहत तुकड्या बिन भजे ,
कोऊ न बनता बादशा ॥ ५ ॥
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