और तो सम्हलें सभी ,
पर वह सम्हलता आरहा ।
वक्त में हुशियार होकर ,
नाम तेरा गा रहा ||धृ.||
वक्तही होती कठिन ,
इस काम के जंजालकी ।
एक पलकी जीत ले ,
सोही परमपद पारहा ॥ १॥
लाख पल सब फोल हैं ,
पर एक पल अनमोल है ।
चेतता जागा भया ,
हकको नहीं गमवा रहा ॥ २॥
उर्वशीके संगमें ,
पलको सम्हाला था जिने ।
सोहि तो कारण हुआ ,
गीता हमें सुनवा रहा ॥ ३ ॥
और तो तीरे सभी ,
जल - बूंद ना जब थाल में ।
पर वही तीरा गडी ,
भर लाटमें तिर जा रहा ॥ ४ ॥
कहत तुकड्या नामका - बाजार
होता हर जगह |
पर वही प्रभु गा रहा ,
एक अंतका पल पा रहा ॥ ५ ॥
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