मन ! मानरे कुछ मानरे ,
अब तो समझकर मान रे || टेक ||
क्यों भगा बेभान रे ,
भूला पडा अनुजान रे ।
आखिर गती नादान रे ,
जम - घर पडेगा प्राण रे ॥ १ ॥
नाहक मारे तान रे ,
झूठा करे अभिमान रे
इस कालके दरम्मान रे
' क्यों होरहा हैरान रे ॥ २ ॥
भोगता आसान रे ,
लालच बुरी बैमान रे ।
क्या छुपे है कान रे ,
मन ! क्यों करे अब लान रे ॥ ३ ॥
धर गुरू - अभिमान रे ,
उसिका किया कर ध्यान रे ।
तुकडया कहे अजमान रे ,
टूटे ये जन्म तुफान रे ॥ ४ ॥
टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा