मन रे ! बहुरा क्यों फिरता है ।
फेर फेर गिरता है ||टेक ||
यह संसार सपन की माया ,
जान - बूझ परता है ।
सुखकी आस धरी पल भाई !
आखिर दुख भरता है || १ ||
अपनी तान तानसे मारे
आय वक्त डरता है
नाहक धूम घुमावत काया
जमके घर परता है || २ ||
सत्संगत बिन ज्ञान न पावे
क्यो न कहाँ मरता है
तुकड्यादास कहे क्या कहना
क्यो अपनी करता है || ३ ||
टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा