रे मन ! रामनाम मत भूले ।
क्यों परवेश ढँढोले || टेक ||
यहांपर कौन तुम्हारा वाली ,
सब स्वारथ - मतवाले ।
सपनेसम जिन्दगी पल मासे ,
फिर तो भगे निराले ॥ १ ॥
बारबार नहि वक्त मिले
बड़ भाग मनुज - तन खुले ।
अब तो साध साधुकी रीती ,
नहि तो जमघर झूले ॥ २ ॥
यह संसार मोहकी मदिरा ,
बिनस जात पल छूले ।
तुकड्यादास कहे करनी कर ,
तो सब देह उजाले ॥ ३ ॥
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