रे मन ! कहाँतक तोरे संग दौरुँ ।
कामधाम सब छोरूँ || टेक ||
करत एक अरु कहत एक है ,
किसबिध तुझको हेरूँ ।
अपने घट पलपरभी न ठहुरत ,
राह कैंसि यह मोरूँ ॥ १ ॥
रामनाम कबहू नहि गावे ,
कहता सब ' धन - जोरू ' ।
आशा मनशा नीच रखे सब ,
भोगत कष्ट अघोरु ॥ २ ॥
सत्संगतमों स्थिर नहि रहता
भटके जैसो मौरू ।
भौर भौर भटकावत आखिर ,
भोगे पतन अपारू ॥ ३ ॥
मान मान अब छोड झूठ सब ,
धर गुरु - चरण अधारू ।
तुकड्यादास तुझे समझावे ,
फेर जनम नहि तोरू ॥ ४ ॥
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