मन ! तू खूब पढी है पोथी ।
पलक नहीं मजबूती || टेक ||
कभी तो ध्यानसमाधि लगावे ,
नीयत परघर रोती ।
कभी तो राजा बनके घुमे ,
कभी खाता है जू ती ॥ १ ॥
कभी तो ज्ञान बतावत पूरा ,
अक्कल परधन छूती ।
कभी तो मर्द बने फिरता है ,
कमी औरत घरगूती ॥ २ ॥
तुकड्यादास कहे खुब समझा ,
तेरी अक्ल सबूती ।
मुख खराब दिखला मत हमको ,
मारूँ ज्ञानकी तूती ॥ ३ ॥
टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा