रे मन कर अब सोच जरासा ।
क्यों करता भ्रम - असा || टेक ||
तम - संसार हारका साथ ,
मत डारे गल फाँसा ।
राम - भजन सम कोउ न प्यारा ,
सबकी आस निरासा ॥१ ॥
आठहु जाम मुले मत तिनको ,
राखे वृत्ति उदासा ।
सत्संगत - बरखा - झर माँही ,
हरदम हो जा झाँसा ॥ २ ॥
जो करना नहि करत ,
अकारण खोवत अपनी स्वासा ।
अंतःकाल होवत दुख भारी ,
होत शरिरको नासा ॥ ३ ॥
क्या किसकी जिन्दगी टिक पायो ?
तोहे होत उल्हासा |
तुकड्यादास कहे अपना धर ,
इक गुरु - नाम निवासा ॥ ४ ॥
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