मो मन ! अपने पिया घर जाना ।
जहाँ सुंदर महल नगीना || टेक ||
मेरु - दंड गोल्हाट औटपिठ ,
रेल बनी उर झीना ।
विवेकजी तो टिकट कटावे ,
स्वॉस रेल अलबीना || १ ||
पहला खास मुकाम जहाँपर ,
सुफेद बँगला कीन्हा ।
उस बंगले में रहत जमाना ,
मुझको वहाँ नहि जाना ॥ २ ॥
दूज मुकाम लाल परदेका ,
लालहि लाल निशाना |
जो मन माने वह फल खावे ,
स्वप्नरूप दरसाना ॥ ३ ॥
तिसरा खास मुकामा लाग्यो ,
शाम शाम रँग चीन्हा ।
अनहत बाज चौघड़ा बाजे ,
नाँदे बेद पुराना || ४ ||
टुटे ताल खुले दरवाजा ,
चौथा फेर ठिकाना
इधर उधर दोनों सम जानो ,
खालक खलकत ठाना ॥ ५ ॥
छूटी रेल टुटा जँक्शनभी
पहुँचे जाय बिमाना ।
जगमग ज्योत कोट भानूसम
चढ़ा रंग मनमाना ॥ ६ ॥
मस्त सदा अलमस्त रहुँ फिर ,
जहँ माने वह जाना ।
तुकड्यादास पिया में जाऊँ ,
नहि फिर नाम - निशाना ॥ ७ ॥
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