हर जगहकी रोशनी में
दिलभुलैय्या तुम्हीं तो हो ॥ टेक ॥
अगर तुम्हारी छटा न होती ,
तो सारि खिलकत मरी हुई थी ।
कहाँ छुपाते हो हुस्न अपना ,
चेत - चितैय्या तुम्हीं तो हो ॥ १॥
तुम्हीं हो देवल , तुम्हीं हो मसजिद ,
तुम्ही हो मूरत , तुम्हीं पुजारी ।
ढँकाया परदा करम करमका ,
सबर शुकरिया तुम्हीं तो हो । २ ॥
तुम्हारि कुदरतहि छा रही है ,
वह पूरे आशक को पा रही है ।
नहीं तो योंही दफा रही है ,
झूल - झुलैय्या तुम्हीं तो हो ॥३ ॥
कहाँपे पर्वत , कहाँ समुंदर ,
कहाँपे बादल , कहाँ फँवारे ।
लाखो घटाता लाखो बढाता ,
खेल खिलैय्या तुम्हीं तो हो || ४ ||
कहाँपे लैला , कहांपे मजनू ,
कहाँ बादशा , कहाँ फकीरा ।
कहाँपे आशक कहाँपे माशुक ,
प्रेम पिलैय्या तुम्हीं तो हो ॥ ५ ॥
वह दास तुकड्याको आस भारी ,
न नाम तेरा भुलूं मुरारी ! |
नशा चढादो हुजूर ! पूरी ,
डोल डुलेय्या तुम्हीं तो हो ॥६ ॥
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