है नहीं जिसमें कदर ,
वह नर नहीं जनवर खड़ा ॥ टेक ॥
मनुज तन यह पायके ,
दिलमें कपट जिसके रहा ।
क्या कहूँ , उसको अटक
जमराज से मिलता बड़ा ॥ १ ॥
लूटकर जिंदगी किया ,
नौकर बना धन - मालका |
छोडंकर तनकी लंगोटी ,
कालके घर जा पड़ा ॥ २ ॥
काहेको यह धन दिया ,
नहि दीनको पाला कहीं ।
मौतमें सब छोडकर ,
फिर नर्कके घर जा अड़ा ॥ ३ ॥
संतको पूजा नहीं ,
ईश्वर न दिलमें भर लिया ।
कहत तुकड्या ऐसियोंको ,
दूसरे डरना पड़ा ॥ ४ ॥
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