अर्ज है मेरी तुम्हें ,
दिलका कपट खोलो जरा || टेक ||
क्या ये बंधन ले लिये ,
जगमें पलट आजानेके ।
हो अलग सबसे अभी ,
फिर देखलो तनमें हिरा ॥ १ ॥
कबतलक यह घूमना ,
जगको सफर अधिनमे
जानलो अपना स्वरुप ,
जब नर तरा जीता - मरा ।
छोडदो यह कामना दिलको ,
दुजा कोई नहीं ।
क्या मरे मरते रहें ,
सब एकही जगमे भरा || ३ ||
साधना दिलमें धरो ,
पूरी नहीं होती
कहत तुकड्या सद्गुरूके ,
चरणका धर आसरा || ४ ||
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