दिलभरम जबतक न छूटा ,
तबतलक आना रहा || टेक ||
चाहे करलो दानभी ,
अजि ! या करो नादानभी ।
जा फिरो मनमानभी ,
आना तहाँ जाना रहा ॥ १ ॥
शास्त्रभी पढ़ते रहो ,
या मूखसे ' ईश्वर ' कहो ।
कुछ नहीं बनता जहाँतक
दिल - कपट घटमें रहा ॥ २ ॥
भेख लो या जोग लो ,
चाहे बसो बन जायकर ।
सत्यको जाना नहीं जी !
तबतक भोना रहा ॥ ३ ॥
आत्मज्योत लगी जहाँ ,
नहि दूसरा नज़रीनमें |
कहत तुकड्या जब टुटे ,
मरना न जीना क्या रहा || ४ ||
टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा