अहो गुरु ! काल बिकट आयो है ।
सब जग भ्रम छायो है || टेक ||
कहँ तो बिकत मोतिसम फूगा ,
बाहर - रंग भायो है ।
आप मरे औरनको मारे ,
कोउ न सुख पायो है ॥ १ ॥
सब अपनी अपनी बतलावे ,
दौरत भ्रम खायो है ।
' तू मेरा में मेरा ' समझे ,
काम - कपट न्हायो है ॥ २ ॥
कबहू न नेम-धरमको पाले
मतलब गुण गायो है
दुर्लभ नाम तुम्हारी मुखमे
सब रँग रँग भायो है || ३ ||
क्या कहिये अब न बने कहते
जाल निकट आयो है
तुकडयादास कहे किरपा कर
सब दुख टल जायो है || ४ ||
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