जगमे ! हीरा मिलत कठिना |
कोइ बिरलेने चीन्हा || टेक ||
क्या घर घर साधू फुर आया ,
तो वह जाय पछाना ।
बिन सागर नहि उपजे मोती ,
और जगह सब सूना ॥ १ ॥
जो कोइ होत रंगको रंगिया ,
सो रंग भर भर चीन्हा ।
नुगरोंके मन भूल बसत है ,
गोते खाय दिवाना ॥ २ ॥
अपने हेत नेत बदलाकर ,
घुमता है मनमाना ।
सो क्या तार - तरैया किसको ?
डूबे लेय जहाँना ॥ ३ ॥
मत भूलो ऊपरके रंगको ,
जब देखो अज़माना |
तुकड्यादास बिना सद्गुरुके ,
नहि पावत कहुं ग्याना ॥ ४ ॥
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