सद्गुरु अगम अगोदर भाई ! ॥ टेक ॥
क्या कहिये उनकी रहनीको ,
पता नहीं किन पाई ।
ब्रह्मगिरीमें बास जिन्होंका ,
अंतर मित वह साँई || १ ||
क्या जाने व दुनिया - दौलत ,
झूठी लोग- लुगाई |
अमृत - धार किनारा जिनका ,
देवत बेद गवाही || २ ||
क्या माने वह धर्म - कर्मको ,
आपही कर्म हुआई ।
सुन्न शिखर आसन दृढ जिनका ,
बाजत मेर - दुहाई || ३ ||
निर्मल प्रेम बसे जिनके घट ,
वहिपर करत कृपाई ।
तुकड्यादास चरण पर तिनके ,
गावे धून - धुनाई || ४ ||
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