सद्गुरु - धाम बिकट है भाई ! ॥ टेक ॥
जो कोई निज - ग्राम चलेगा ,
लगे पाँच दरवाई ।
महाद्वारपर नाक कटावे ,
सोहि चले भितराई ॥ १ ॥
लगे दूसरा दार वहाँपे ,
होवे जींह कटाई ।
बिन काटेसे कोउ न जावे ,
देवत संत गवाही ।। २ ।।
तिसरा दार लगे मँझघरका ,
काटे कर करताई ।
बेद पुराणहि गर्जत सारे ,
देख पडे प्रभुताई ॥ ३ ॥
चौथा दार बडा बिहराना ,
होवे कान - छँटाई ।
बाहरका वह कछु नहि जाने ,
सुनता नाद - दुहाई ॥ ४ ॥
लगे पाँचवाँ सुन्दर द्वारा ,
जहाँ सीस - उतराई ।
जगमग ज्योत पडे नजरोंमे ,
क्या गाऊँ कथवाई ॥ ५ ॥
रैनदीन अरु छीन नहीं जहँ ,
अखंड भेदा पाई ।
तुकड्यादास कह बिकटीसे ,
बिरला धाम चलाई ॥ ६ ॥
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