धन्य प्रभू ! करतार कलाबिन !
खंब जगत तरकाय लिया || टेक ||
ऊपरसे जल नीचेभी जल ,
जलमें भूजल साँच रहा ।
उसपर बाग बना गहरा ,
इक नर और नार अकार किया ॥ १ ॥
उन दोनोंके रुप रंग बहुत ,
जिनका न कोईभी माप करे ।
इक मायाजाल बिछाकरके वहाँ
न्यारा मास दिखाय दिया ॥ २॥
आपही आप भरा सबमे ,
यह घूंघट ऊपर ले करके |
तुकड्या ' कहे जो तुझको सुमरे ,
उसिको निजरूप बताय दिया ॥ ३॥
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