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स्वाधीन करो मनको अपने

 ( तर्ज - आनंद मनाओ हरदममें ० )  स्वाधीन करो मनको अपने ।  तब ग्यान मिले  घटके घटमे || टेक || सत्‌संग धरो सत्से बिचरो ,  सत्‌ग्रंथ पढो अपने मुखसे ।  अति प्रेम लखो हरिका दिलसे ,  परकास पड़े मठके मठमें ॥१ ॥  कोइ नाहक बन बन ढूँढत है ,  और मूँडत है अपने सरको ।  तुम लीन रहो हरिनाम कहो ,  कभु नाहि परो इस खटपटमें ॥२ ॥  कोइ होम करे , पंचाग्नि घरे ,  हठयोग करे नदके तटमें ।  तुम ध्यान धरो , रँगमें बिचरो ,  तन लीन करो पटके पटमें ॥३ ॥  कोइ जात हिमाचल ढूँढनको ,  सिर लेप लगाय त्रिपुंडूनको ।  कहे तुकड्या बिरहमें रो उसके ,  तब अनुभव ग्यान  मिले झटमें || ४ || 

गुरुनाथ कहे , सुनरे साधक

 ( तर्ज - मेरो प्रभू झूला झुले घरमाँही ० )  गुरुनाथ कहे , सुनरे साधक !  मुक्ती न मिले  निज - ग्यान बिना ॥ टेक ॥  नेम और दान हजार किन्हे ,  जपजाप किन्हे हठयोग किन्हे ।  किरपी न गुरू की होय जिन्हें ,  नहि ग्यान मिले  चाहे लाख किन्हा ॥ १ ॥  जब ग्यानी गुरु उपदेशा करे ,  तब बोधके अंकुर आन परे ।  भक्तीके फूल लगे गहरे ,  तब ग्यानके फल  अस जान दिन्हा ॥२ ।।  सब झूठ दिखे जन ये तन ये ,  मन ये , बन ये झूठे जगके पर लौहि लगी हरिनामकी है ,  तब मुक्ति मिलेगी  बुलाये बिना || ३ || कहे तुकड्यादास , खबर रख ये ,  हरिके गुण मोठे है चख ये ।  चारों भी मुक्तियाँ घर रख ये ,  खुब रंग चढे भक्तीमे दुना ॥४ ॥ 

नश्वरपर मत रखना भरोसा

 ( तर्ज - मेरो प्रभू झूला झुले ) नश्वरपर मत रखना भरोसा  सत्संग बिन कोउ  मिटा दे न प्यासा ॥ टेक ॥  या जगमें एक प्रभु - भक्ति साथी ,  स्वानंद निज - सुख श्वासा ।  और न कोउका साथ करो तुम ,  सब झूठ जगका तमासा ॥ १ ॥  अमर बिना प्रभुके नही कोई ,  ढुंढत तीरथ - बासा ।  कहे दास तुकड्या ,  करो  सत् - संगत् ,  मीटे यह जीवका फाँसा ॥ २ ॥ 

कर सत्संग , सुधार तनूको

 ( तर्ज- मेरो प्रभू झूला झुले घरमाँही ० )  कर सत्संग , सुधार तनूको ।  और न मारग जगमें मनूको ॥ टेक ॥  समय गया फिर मिलने न पावे ,  ' दे ख्याल इसकाहि जीको ।  कितरी घडीका है जगमें निवासा ?  क्या फेर चाटे धनुको ? ॥ १ ॥  अवघड वह जमघाट पड़ेगा ,  छूट सके न किसीको ।  सद्गुरु - किरपा पलमें तरावे ,  ब्रह्म - स्वरूप कर जी को ॥ २ ॥  दुर्लभ यह मानूज - जनम है ,  भाग्य मिला आदमीको ।  कहे दास तुकड्या ,  सत् - संग साधे ,  हरजाय भव दुःख ताको ॥३ ॥ 

हरि ! कहो , कौन नही स्थान तेरा

 ( तर्ज - मेरो प्रभू झूला झुले घरमाही ० )  हरि ! कहो ,  कौन नही स्थान तेरा ? ।  घर घर तेराही छाया उजारा ॥टेक ॥  पापीमें तू है औ पुनमेंभी तू है ,  सब जग तेरा पसारा ।  अमृतमें तूही , तूही जहरमें ,  सबका किया गुण न्यारा || १ || तू संतमें और तुही द्रोहियोंमें ,  करनीके फल देत न्यारा ।  और सभी स्थान तेरे समाये ,  पर भक्तमें तू दुनेरा || २ || देख पडे रूप तेरा वहींपर ,  ज्या घट सत्‌का बसेरा ।  कहे दास तुकड्या ,  अजब ख्याल तेरा ,  क्या जाने लुँगरा बिचारा? || ३ ||

हरदम साक्षी रहो मेरे भाई

 ( तर्ज - मेरो प्रभू झूला झुले घरमाँही ० )  हरदम साक्षी रहो मेरे भाई ! ।  मत भूल खाओ ,  करलो भलाई॥टेक ॥  तीरथ , मंदर , मसजिद ,  कुटिया , एक हिकी उजराई ।  दूजा यहाँ कौन ? किसने बनाया ?  सब प्रभुकी प्रभुताई  ||१|| प्रभु एक नटनागर है जगत्‌में ,  उसिने ये खेल खिलाई ।  जो कुछ होवे , समझ दूर होके ,  मत छू यह मनमें समाई  || २ || राजा वही और वहि है भिखारी ,  उसिने यह रचना बनाई ।  कहे दास तुकड्या , भूलो न दिलसे ,  रहो प्रभु - प्रेम लगाई || ३ ||

निजरूप को मिलवा ले पिया रे

 ( तर्ज - मेरा प्रभू झूला झुले घरमाँही ० )  निजरूप को मिलवा ले पिया रे ! ।  सब कोइ होगा किया  ना किया रे  ॥टेक ॥  आतमतत्व समझ गुरु - सँगमें ,  सब कुछ साध लिया रे! मै कौन ? मेरा ठिकाना कहाँ है ?  यह भेद समझ तिहारे ॥ १ ॥ जबतक आतमतत्त्व न जाने ,  जोभी किया सब हारे ।  दिव्य स्वरूप समझ भाई !  गुरुसे , जनम सफल होय प्यारे! अमर झरा पिये मस्त रहोगे ,  सद्गुरु - ध्यान किया रे ।  कहे दास तुकड्या सुध लो कहनकी ,  हो जाओ मायासे न्यारे ||३||