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छोड दे झूठोंका फंदा

 ( तर्ज - संगत संतनकी करले ० )  छोड दे झूठोंका फंदा ।  असत्‌का मारग है अंधा ॥टेक ॥  काम - क्रोधमें क्यों लपटा है ?  होता है हैरानी ।  किसि दिन जमका मार पडेगा ,  भूलेगी यह बानी ॥१ ॥  सत् मारगको धरले भाई !  सौख्य वहीं है अपना ।  बिना नामके कहुँ न रंग है ,  यह सारा है सपना ॥२ ॥  माड़ि - हवेली किसकी बैठी ?  कौन रहेगा इसमें ? ।  बाप बड़े तो भगे आखरी ,  गये कालके वशमें ॥३ ॥  साधु संतको पूज भावसे ,  ग्यान कियाकर बंदे ! ।  कहता तुकड्या समझ - समझसे ,  छोड़ झूठके फंदे ॥४ ॥ 

जौहरी होनेको चटका

 ( तर्ज - संगत संतनकी करले ० )  जौहरी होनेको चटका ,  जाकर फूगेसे लटका ॥ टेक ॥  खेचर - भूचर मुद्रा धारी ,  लाल रंगको पाई ।  सब लोगनको वही दिखाकर ,  सब दुनिया झुकवाई ॥ १ ॥  शिष्य बनाकर द्रव्य पछाड़ा ,  नर्कनिशान कमाई ।  काम क्रोध तो लपटे अंदर ,  बाहर बन गया साँई ॥ २ ॥ पूरक कुंभक पता नहीं पर ,  झूठ समाधी लाई ।  तनपर भार लिया मालाका ,  जपने समय न पाई || ३ || कहता तुकड्या छोड ढोंग यह ,  संतनके सँग लागो ।  सच्चा लाल तनूमें तुम्हरे ,  गुरू - ग्यानसे जागो ॥४ ॥ 

ख्याल कर जरा अपनी कायामो

 ( तर्ज - गुरुको देखो , अपने घटमाँही ० ) ख्याल कर जरा अपनी कायामो  दौरता क्यो है मायामो? || टेक || उलट कर नैना , चढा रंग अपना ।  छोड़ दे विषयनका बाना ।  भला नहि होगा , इसके सँग नाना ।  सुने मत मायाका गाना ।  गुरुको भजो , लगातार ध्याना ।  चढा मन प्राणको अस्माना ।  करो सत् - सेवा ,  सुख पा लो यामों । दौरता ० ॥१ ॥  गुरु - किरपाकी , लाग गई तारी ।  चढी नैननमों उजियारी ।  नशा मन भाई ,  क्या कहुँ बलिहारी ।  सुनी सोहंकी धुनकारी ।  अनाहद बाजे , बाजत अति प्यारी ।  हुआ मन मगन , सुधी हारी ।  खबर गई तनकी ,  सुख पा लो यामों । दौरता ० ॥२ ॥ गजबकी लाली , शुभ्र श्याम छाई ।  बीचमों नील रंग पाई ।  घटा बादलकी , भौर - भौंर आई ,  झडी अमृतकी टपकाई ।  भ्रमरगुंफासे , योगी सुख पाई ।  वृत्ति निवृत्ति भयी भाई !।  कहा ना जावे , सुख पा लो यामों ।  दौरता ० ॥३ ॥  अमर यह बातें , मिलती संतोंसे ।  भागके ऊँचे अवसरसे ।  मनुज तन माँही , जा पूछो गुरुसे ।  और अजमा लेना जी से ।  ध...

त्याग कर प्यारे , इस झुठे मनका

 ( तर्ज - गुरुको देखो , अपने घटमाँही ० )  त्याग कर प्यारे , इस झुठे मनका ।  साथ कर अपने आतमका || टेक ||  भरोसे मनके , जो गोते खाये ।  न वापिस देखे फिर आये  पुरे झटकाये , माया मन भाये ।  विषयसँग नाहक भरमाये  खबर नहि उनको ,  सुख क्या संतनका । साथ कर ० ॥  गौरकर देखो , क्यों दुनिया पाई ?  प्रभूने किसकारण भाई !  बताई तुमको , हमको सबकोही ?  बिना हरिसुमरण सुख नाही  सूख पावनको , कर मन स्थिर भाई !  तभी अँखियोंमें रँग पाई  मजा खुब पावे , चढे नशा उनका ।  साथ कर ० || २ || कसा आसनको , लगा तार अपना । छोड़कर दुनिया का सपना ।  ध्यान धर दिलमें , उलट जमा नैना ।  चला जा चितसे अस्माना ।  भ्रमरगुंफार्मे , निर्मल कर प्राणा ।  निशाना साध वहीं रहना ।  अमर हो जावे , संग करे तिनका ।  साथ कर || ३ || चढ़ा पन मौनी , निर्मल धारीमें । '  सत् - चित् ' की उजियारीमें ।  ध्वनी सोहंकी , रहती है जामें  रहे मन मगन सदा तामे कहा तुकड्याका ,  मान जरा दिलमें ।  जीव न रहे यह उलझनमें  सदा...

सोचकर चलो , समझ सुजानो हो

 ( तर्ज - गुरुको देखो , अपने घटमाँही ० )  सोचकर चलो , समझ सुजानो हो !  जगत यह अंधा ,  खुण पाओ ||टेक|| संत - साधूके , जाओ चरणोंमे ।  भरोसा रखकरके जीमें ।  बोधको पाओ , अपने अंदरमें ।  रटो दिल लगाय मंदरमे ।  नामजप - तारी , ना छोडो धीमे ।  मस्त हो जाओ उस लौमें ।  मजा फिर देखो , ना भूले जाओ ।  जगत यह ०॥१ ॥  बाचकर पोथी , खाली क्या होता ?  बनेगा पढ़ - पढ़के तोता ।  लपट हंकारा , अहंकार आता ।  प्रभूका प्रेम नहीं पाता ।  बिना संगतसे , झूठ सभी नाता ।  मिलेगा मायासे गोता ।  समझ यह पाओ , ना भूले जाओ ।  जगत यह ० ॥२ ॥  कृपालू स्वामी , दया करें तनमें ।  भटकते क्यों हो बनबनमें ? ।  चलो वा घरको , मत घबडो जी में ।  तरोगे भवसागर धीमे ।  यार ! सुध पाओ , ना भूले जाओ ।  जगत यह ० ॥३ ॥  संगती साधो , धीर धार मनमें ।  रोक लो मनको शम - दममे दास तुकड्याकी , खबर सुनो छनमें । तरोगे इसही जीवनमे कृपा हो जावे , निज-रुपमें न्हाओ ।  जगत यह ० || ४ ||

समझ यार तू , क्यों पगला बनता

 ( तर्ज - गुरुको देखो , अपने घटमांही ० )  समझ यार तू , क्यों पगला बनता ?  विषयमें काहे  डूब मरता ? || टेक || झूठ मायामें , किसे सूख पाया ?  जनमको आकर पछताया  दुःखकी व्याधी , नाहक लगवाया ,  प्रभूका नाम नहीं गाया  अंत जब आये , संगमें को आता ?  विषयमें ० ॥ १ ॥ दिवाना बनके , ' सब मेरा ' कहता ।  नींदमे गफलतमें सोता ।  खबर नहि आती ,  प्राण कहाँ जाता ?  लगाता मायासे नाता ।  कर्म करनेको , नेकी नहि पाता ।  पापकी गठडी बँधवाता ।  भूल यह ऐसी , काहे नहि तजता ?  विषयमें ० ॥ २ ॥  गुरुकी माया , अजब संग छावे ।  अमरपद भक्तनको देवे ।  छोड झंझटसे , निजरुप बतलावे ।  शरण जो चले उसे पावे ।  गुरुकी किरपा , क्यों नहि भरपाता ?  विषयमें ०॥३ ॥  नेक कर करनी , धर साधूसंगा ।  लगा ले अँखियोंमें रंगा ।  भजनकी लाली , चढा अमर गंगा ।  रहे मायासे निःसंगा ।  कहा तुकड्याका , क्यों नहि अजमाता ?  विषयमें ० ॥४ ॥ 

हुशारी रखो , तन - मंदर भाई

 ( तर्ज - गुरुको देखो , अपने घटॉ ० )  हुशारी रखो , तन - मंदर भाई !  पूनसे मानुजको पाई || टेक || महा दुर्लभ है , इसका मिलजाना ।  कष्ट कर कोट कोट नाना ।  तभी ना पावे , मानवका जीना  मिले संजोग तभी पाना  मनुजका होता , समझो दिलमाँही ।  पूनसे ० ॥ १ ॥  सजीली आँखे , मुखड़ेकी लाली ।  चमक मस्तकपर उजियाली  ग्यानकी धारा , अंदर अलबेली ।  हाथ पैर और बलशाली  हाथिसम शोभे , क्यों खोता भाई !  पूनसे ० ॥ २ ॥  रतनकी खानी , मिलि है किस्मतसे  यार ! तू पूछ खूब ' जी ' से कौल क्या क्या था , कबूल ईश्वरसे ?  कि ' मैं ना छोड़ेंगा तुमसे  किया था तुमने , क्यों भूला भाई !  पूनसे ० ॥ ३ ॥  साधले अब तो , कर नेकी जगमें ।  प्रभूके जा प्यारे ! पगमे  स्मरण कर उसका ,  रखो ख्याल जीमें ।  कहे वह तुकड्या क्या तुझमे पता कर लेना , फेर समय नाहीं ।  पुनसे ० ॥ ४ ॥