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भारत के जनहितवादी ,

 ( तर्ज – विश्वास पैं क्यों बैठा है ! )  भारत के जनहितवादी ,  सब चाहते थे आजादी ।  कइ लगे हुए थे इसमें ,  कितनों को मिली समाधी ॥ टेक ॥  सुभाष बाबू ' सैन्य कर गये ,  देश - विदेश में जाके ।  ' मोतिलाल नेहरू ' ने अपना ,  कुलही दिया बहा के ॥  वह ' तिलक बाल गंगाधर ' ।  सहे जिसने कष्ट निरंतर ॥  वैसे हि ' वीर सावरकर '  क्या क्या नहि भोगी व्याधी ? ॥ १ ॥ ' लाला लजपतराय ' शेर थे ,  ' श्रद्धानंद ' विरागी ।  मौलाना आजाद  सरोजिनि ' ,  वल्लभभाई ' त्यागी ॥ '  तात्या ' और ' लक्ष्मी रानी ' ।  जबसे यह शुरू कहानी ॥  वह काण्ड जलियनवाला ,  वह ' जतींद्र ' की बरबादी ॥ २ ॥ ' भगतसिंह ' तो चढा शूलिपर ,  साथी ' बटुकेश्वर ' था ।  कितने नाम बतायें उनके ?  जिनका जेल हि घर था ॥  आष्टी , चिमोर और ब्यावल |  कितने ही शहीदों के स्थल ||  आजादी के उस जंग में ,  लाखों ने जान लटा दी ॥ ३ ॥  आपस में मतभेद सही था ,  मार्ग भिन्न थे सबके ।  हिंसक कोई , क्रांतिवीर थे ,  कोइ...

मनमें राम , काम हो कर में

 ( तर्ज - भारत शानदार हो मेरा )  मनमें राम , काम हो कर में ||  मन में ० ॥ टेक ॥  अपने बलपर , रहे जगत में ,  पराधीन नहि , धन मे मुफ्त न खाये , भीख न माँगे ,  प्रेम रखे हर घर में ॥ १ ॥  आओ बैठो सब मिल गाये ,  प्रेम-प्रभू को स्वर में ।  माला - कण्ठी शान्ति सुखावह पड़ी रहे अन्दर में ॥ २ ॥  बाहर देख - दिखौआ ना हो ,  रहे इन्सानी स्तर में ।  जैसे सती - पती की प्रीती को समझे बाहर में ? ॥ ३ ॥  घरमे हो बाहर में वैसा ,  प्रेम भरा लोगन में ।  तुकड्यादास भक्त वहि जानो ,  डुले विश्व - मन्दर में ॥ ४ ॥

दिलसे जपो , चाहे मुंह से जपो

 ( तर्ज - हम है भले बुरे ... )  दिलसे जपो , चाहे मुंह से जपो ,  नाम जपने से  उद्धार होता हि है ||टेक ||  चिन्तन है सच्चा , दृढ होगी इच्छा ।  निर्मल सदाचार , फलसे अनिच्छा ।  सादा ही जीवन बना रहो ।  अजि ! चलते कहो ,  सोते - जगते कहो ।  धीरे धीरे सुधार फिर  तो होताहि है ॥ १ ॥  जो भूलसे पैर पडता अगन में ।  जलता ही है ,  काम करता है छिन में |  वैसे हि प्रभुका भजन है ॥  नाम तारे नहीं , यह क्या होगा कहीं ?  दास तुकड्या तो गाता  बजाता हि है ॥ २ ॥ 

मेरी अर्जी है चरणों में

 ( तर्ज - मैं एक छोटासा बच्चा हूँ . )  मेरी अर्जी है चरणों में -  दुष्ट काम का भान ,  कभी ना दे भगवान ! ॥ टेक ||  जहाँ जहाँ जाऊँ ' सब मेरे ' ,  ऐसा प्रेम मुझे दे ।  लंद फंद और झूठे झगडे ,  इनमें मत बहने दे ।।  सीधा सादा ही , दिन काटूं ,  निंदा किसिकी कान  कभी ना दे भगवान ! ॥ १ ॥  हिन्दू हो , इस्लाम , यहूदी ,  बुद्ध पारसी कोई ।  सबही नारायन रुप देखूं ,  सुख पाऊँ मन माँही ॥  ऐसी मानवता हृदय बसे ,  अन्य कोई भी ध्यान  कभी ना दे भगवान ! ॥ २ ॥  गरिब अमिर या ऊँच - नीच का ,  भेद न मनमें आवे ।  दुनिया भर के सन्त कोई हो ,  मन उनके गुण गावे ॥  पूजा यह मेरी - जन - कल्याण ,  दूजा कोई ना तूफान  कभी ना दे भगवान ! ॥ ३ ॥ मुक्त ना खाऊँ बिना परिश्रम जहाँ कही मै जाऊँ तुकड्यादास कहे खंजडी ले दिनभर बजन सुनाऊ ऐसा जीवन हो अन्त सधे कोई दुसरा दान कभी ना दे भगवान || ४ ||

किसे छिपा है । नाम तेरा

 ( तर्ज - भक्तन के संग ० )  किसे छिपा है । नाम तेरा |  भक्तनके संग काम करा || टेक || दिखने को तो पंढरपुर में ,  पर दृष्टी तेरी घर घरमें ॥  छिपा न तुझसे कुछभी भगवन ।  दिल कैसे है भला बुरा ॥  किसे ० ॥ १ ॥  दुनिया चाहे बाहर देखे ,  तू तो सबके दिलको परखे ॥   जिनकी श्रद्धा - भक्ती सही है ,  उनके हाकपे जात परा ।  किसे ० ॥ २ ॥  जिसने सत की नीयत राखी ।  उन भक्तों की रख ली साकी ||  तुकड्यादास कहे क्या गावे ,  पत्थर को भी दिया तरा |  किसे ० ।। ३ ।।

गुरु का छोटासा तीरथ है

 ( तर्ज न एक छोटासा बच्चा हूं ० )  गुरु का छोटासा तीरथ है ,  यहाँ रम गये भगवान ,  दिखा ' गुरुकुंज ' मुझे ॥ टेक ० ॥  बड़े बड़े तीरथ को छोड़ा ,  पुरी , अयोध्या , काशी ।  झाड - झूड और गर्द लता में ,  बैठ गये अविनाशी ।  सुनते भजन यहाँ खंजरि का ,  नाचे गाये गान || दिखा ० ॥ १ ॥  सुन्दर शोभा यहाँ खिली सी ,  जिधर उधर लगती है ।  जागृत है सत संग यहाँ का ,  मिलती ऊर्ध्व गती है ।  होता ध्यान यहाँ , चिन्तन का ,  सधे समाधी स्थान ॥ दिखा ० ॥ २ ॥ व्यसनीयोंका जीवन बदला ,  महापाप से छूटे |  कहता तुकडचा वही तर गये ,  जो गुरुपदको लूटे |  सारे सन्तन का आदर है ,  मानवता का धाम || दिखा ० ॥ ३ ॥ 

कैसे जाऊँ पानी भरने

 ( तर्ज - जिंदगी सुधार बंदे ० )  कैसे जाऊँ पानी भरने ?  कूप ताल - बंद है || टेक || भूक प्यास लागी तनमें ,  कैसे सुनावें इस जनमें ?   कौन मिटा देगा ? मनमें ,  किसका धरुँ छंद है ? || १ || अब तो धीर जाने आया ,  प्राणभी सताने आया । मोह लेत ममता माया ,  कब मिले वह नंद है ? || २ || किसकि कुंजी लाऊँ जाके ?  कौन मिलेंगे वहाँके ?  जो कि पानी देवे बाँके ,  टूट जाय फंद है || ३ || बिना सद्गरूके कोई ,  ताल खोलने ना पाई ।  कहे दास तुकड्या वाकी ,  दयासे अनंद है || ४ ||