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इक सद्गगुरु चरण बिना

इक सद्गुरु चरण बिना  फिर किसकी आस करूँ भाई ! || टेक || उनसे कौन बड़ा दुनियामें ,  मेरी नजर नाही |  संत महंत ऋषी मुनियोंने ,  उसिके गुण गाई ॥ १ ॥  देव धर्म सब उसके बांधे ,  काम करे साँई ।  जो जग - पालक सब दुनियाका ,  उसने बतलाई ॥ २ ॥  पतीत - पावन सद्गुरु मेरा ,  क्या कहुँ चतुराई ।  आप समान जगतको जाने ,  निज - रुप को पाई || ३ || शास्त्र पुराण न कुछ जाने हम ,  मन गुरु - पद ध्याई ।  तुकड्यादास कहे गुरु - पदसे ,  पार उतर जाई ॥ ४ ॥ 

अजि ! दो दर्शन महाराज

अजि ! दो दर्शन महाराज !  आज चरणों में आया हूँ || टेक || लख चौरासी भटकावत ,  यह नरतन पाया हूँ ।  अब कुछ लाज रखो मेरी ,  भवसे पछताया हूँ || १ || भव - सागर यह दुस्तर ,  जलसे जात बहाया  जम - डंडा सोसे नहि अब ,  यह अरजी लाया हूँ ॥२ ॥  मायारूप विषयनके मांही ,  जाय समाया हूँ ।  सुंदर काया बीत रही ,  नहि काज कमाया हूँ ॥ ३ ॥  दया करो प्रभुराज !  आजतक सीस नमाया हूँ ।  तुकड्यादास दरसबिन सारा ,  काम भुलाया ॥ ४ ॥ 

पिया मिलनका साज

पिया मिलनका साज  आज मोहे दिखलाओ रे || टेक ||  भटक रहा दिनरात ,  नहीं मिलता मिलवाओ रे ।  कौन भेषसे पावे प्रभुजी ,  मुझे पहराओ रे ॥ आज ० ॥ १ ॥  भगवा कपरा जटा बढ़ाकर ,  क्या वह पाओ रे ?  जिस साधनसे मिले जिगर ,  वह भेष चढाओ रे ॥ ५ ॥  क्या धून धरनेसे ईश्वर ,  नजरी आवो रे ।  ऐसा हो तो क्या धूनी  मुझको सिखलाओ रे ॥ ३ ॥  संत - चरण अरजी मेरी  यह दुःख मिटाओ रे ।  तुकड्यादास बिना प्रभु देखे ,  जन्म गमाओ रे ॥ ४ ॥

गुरु - चरण धर मनुजा

गुरु - चरण धर मनुजा !  तर भवसागर क्षणमाँही || टेक || काहेको शम दम और  साधन करता चतुराई ?  सद्गुरुराज कृपाल भजे तो ,  फेर जनम नाहीं ॥ १ ॥  जोग जाप करने नहि लागत ,  सहज कृपा पाई ।  आतम - ज्योत मिले हिरदेमें ,  सद्गुरु बतलाई ॥ २ ॥  काहेको यह जटा बढ़ावत ,  जगको भुलवाई |  दिलका पट खोलो गुरुपदमें ,  मिलता जदुराई ॥ ३ ॥  छोड़ आस घरदार पसारा ,  जा गुरु - गुण गाई ।  तुकड्यादास कहे बखती ,  फिरके ऐसी नाही ॥ ४ ॥ 

सद्गुरुराज दयाल

' सद्गुरुराज दयाल !  भरोसा अब मुझको तेरा || टेक ||  दरपे आकर बैठा हूँ अब  कुछभि करो मेरा ।  दया - नज़रसे देखो साँई !  हरो जनम - फेरा ॥ १ ॥  तरस रही यह जान हमारी क्यो करता देरा ? तुम्हरि कृपाबिन भटक रहा हूँ नही चुकता फेरा || २ || छोड काम दुनियाके सारे पग तुमरे छेरा चरणपे मोहे दे जगिया और तुम गुरु मै चेरा || ३ || पाप ताप सब काट करो मन शान्त करो मेरा तुकड्यादास आस धर तेरी हिरदे पग तेरा || ४ ||

कहे जनक सुनो शुक भाई

कहे जनक सुनो शुक भाई !  घटमें साँई गोरहा है । टेक ॥  जबतलक ' अहं ' नहि जाना ,  तबतलक झूठ भरमाना ।  आना वैसा चलजाना ,  जनना मरना भो रहा है ॥ १ ॥  मोहे कौन जिवन में लाया ,  नहि जाना फिर पछताया ।  आखिर में गोता खाया ,  बिरथा काया खो रहा है ॥ २ ॥  नहि आत्मरंग मन कीन्हा ,  सब बिरथा जगमें जीना ।  जप तपसे कुछ महि लीन्हा ,  आकुल सीना हो रहा है ॥ ३ ॥  निज - नैन पता पावेगा ,  फिर ' सोहं ' चित लावेगा ।  ओहं ' सब मिट जावेगा ,  तुकड्या धागा धो रह । है ॥ ४ ॥ 

कहे कृष्णनाथ अर्जुनको

कहे कृष्णनाथ अर्जुनको ,  आप अपनको जान प्यारे ! || टेक ||  जो आत्मरूप परकाशी ,  वहि सत्य जान अविनाशी ।  कभी जले न लागे फाँसी ,  काँप कफनका जा न प्यारे ! ॥१ ॥   जब टूटे नष्ट जड देही तू निकल जाय उससेही कुछ धोखा तुझको नाही वह जो साँई जान प्यारे || २ || ये सब तेरे बनवाये तू रुप न रुप समाये ये कहाँके गोत लगाये अपने रुप को जान प्यारे || ३ || मम अंशरुप परकासा तब जीव रुप धर आशा कहे तुकड्या एक तमाशा कोउ न दुजा जान प्यारे || ४ ||