मन्दिर मन की भावना ! ( तर्ज : ये हरियाली , और ये ) मन्दिर मन की भावना ! इस मन्दिर में ,सद्गुरुजी की करता हूँ मै स्थापना ! ॥ टेक ॥ वृक्ष लगे है रंग सुहावन । सुगंध आता फुलता है मन ॥ निर्मल है मन , मोहक ये बन । पूजा करूँ , ध्यान धरूँ , करूँ कल्पना ।।१ ।। हृदयासन अति कोमलतर है । प्रिती की ज्योति अति सुन्दर है। गंगा जमुना निर्मल निर है । स्नान करूँ , ध्यान धरूँ , करू कल्पना ॥ २ ॥ भक्तीका चन्दन , वृत्ती की माला । षद्गुण सद्मन अंग दुशाला ।। सोऽहं की लाली , भार गुलाला । काम त्यजूं , क्रोध त्यजूं , छोड वल्गना ।।३ ।। शान्ति की बीना , सोऽहं की आरती । इस तनकी भारी बानी पुकारती । तुकड्याकी पूजा जीवन उद्धारती ।। नाम स्मरूँ काम करूँ , धरूँ धारणा ॥४ ।। सूरत , दि . १२. ९. ६२