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मैं ब्रह्म कहूँ तो लाज

  मैं ब्रह्म कहूँ तो लाज , होति है आज ,  रहा अन्दाज , समझ नहिं आया ।  मन के ही नाचे ,  नचे देह की माया ॥टेक ॥  यदि कहूँ देह को ब्रह्म  कहना ये गलत हो जावे ।  यदि कहूँ - ब्रह्म है मन ,  ये चंचलपन , वहाँसे भिन्न ,  स्थीर नहिं होता ।  पलभरमें लहरे मारे , खाता गोता ।  ( तर्ज ) ब्रह्म तो कल्पनातित है ।  जहाँ वृत्ति उठे नहीं , स्थित है ।  इन्द्रीय अश्व के साथ , भगे दिनरात ,  विषय ले हाथ , बहाते लाया ।  मन के ही नाचे ,  नचे देह की माया ! ॥ १ ॥  नहिं तीन अवस्था ब्रह्म ,  वही हैं कर्म , जीव का धर्म ,  प्रकट होता है । यदि मूलतत्व को जीव जाय ,  तब पाये ॥  वृत्तिका जहाँसे स्त्रोत ,  वही है मंत्र साधना तंत्र ,  अनुभव गाये  जो सुक्ष्म अंतरंग में पता कर लाये ।  ( तर्ज ) हर इन्द्रिय द्वार उसीका ।  पर साक्षि रहे वह सबका ।  सबकी ही स्फूर्तिका केंद्र ,  चन्द्रका चन्द्र , इंद्रका इंद्र ,  साक्षि समझाया मनके ही नाचे नचे देह की माया ! ॥२ ॥ मनको ही स्थिर कर लाये ,...

कपडे रंगाये , मन ना रंगा है

 ( तर्ज - चाहूंगा मैं तुझे सांझ सबेरे )  कपडे रंगाये , मन ना रंगा है ,  दाढी बढी पर दिल ना बढा है ।  इतनेसे क्या बनेगा ,  इतनेसे क्या बनेगा ? ॥ टेक ॥  प्रभु - प्रेम होगा , नित नेम होगा ,  चारित्र्य अच्छा , अरू ग्यान होगा ।  मीठी बात , होगी साथ , तब तो बने । इतनेसे क्या बनेगा ,  इतनेसे क्या बनेगा ? ॥१ ॥ सेवा बड़ी हो , दीनों दलितकी  सबकी चहा हो , बात हो सतू की ।  इतनेसे क्या बनेगा ,  इतनेसे क्या बनेगा ? ॥२ ॥  करना हो ज्यादा , बातें बड़ी कम ,  खाना जरासा , होना परिश्रम ।  आवे काल बने ढाल , तब तो बने ।  इतनेसे क्या बनेगा ,  इतनेसे क्या बनेगा ? ॥३ ॥  तुकड्या पुकारे , सन्तोंको सारे ,  आया समय हैं , दिलको निहारे ।  मिले मान , तारो जान , तब तो बने । इतनेसे क्या बनेगा ,  इतनेसे क्या बनेगा ? ॥४ ॥  

नाचूंगा मैं भी प्रभूके भजनमें

 ( तर्ज- चाहूंगा मैं तुझे सांझ सबेरे )  नाचूंगा मैं भी प्रभूके भजनमें ,  जाहीर होकर बोलू सजन में ।  अभिमान खोके सारा ,  अभिमान खोके सारा ॥ टेक ॥  होकर दिवाना , दूखूं जमाना ,  आँखोमें भर दूं , प्रभु का निशाना  चढे तार , बेडापार , रंगू रंगमें ।  अभिमान खोके सारा ,  अभिमान खोके सारा ॥१ ॥  तूही तो धन है , तूही तो मन है ,  तेरे बचन ही , मेरा भजन है ।  तेरा प्यार , मेरा सार , भरूं अंगमे । अभिमान खोके सारा ,  अभिमान खोके सारा ॥२ ||  चारों दिशामें तेरी ही सूरत ,  जहाँ देखता हूँ तेरी ही मूरत ।  जपूं माल , घुले तार , टुटे जाल ।  अभिमान खोके सारा ,  अभिमान खोके सारा ॥३ ॥  तुकडयाको जिसने ये राह बोला ,  उनकी दयासे पाया उबेला ।  तेरा नाम , मेरा काम , पाऊँ अराम ।  अभिमान खोके सारा ,  अभिमान खोके सारा || ४ ||

सबको मिला है तेरा सहारा

 ( तर्ज - चाहूँगा , मैं तुझे सांझ सबेरे )  सबको मिला है तेरा सहारा ,  जिसने भी तुझको दिलसे पुकारा ।  मैं भी वही कहूँगा ,  मैं भी वही कहूँगा ॥ टेक ॥  थोडा फरक है , मुझमें उसीमें ,  मैं अवगुणी हूँ , ग्यानी कमी हूँ ।  धरो हाथ , करो बात , देके अधार ।  मैं भी वही कहूँगा ,  मैं भी वही कहूँगा ॥१ ॥  वो प्रेम पाये , मैं हूँ अभागा ,  मुझमें अभी भी नहीं प्रेम जागा ।  करो दान , तारो जान , होगा उद्धार । मैं भी वही कहूँगा ,  मैं भी वही कहूँगा ॥२ ॥  गुणवानको सभी है चाहते ,  हीन - दीन देखें नहीं पास लेते ।  तेरा नाम , सुना राम , कर दो पार ।  मैं भी वही कहूँगा ,  मैं भी वही कहूँगा ॥ ३ ॥  तुकडयाको तारो , तुम हो तरैय्या ,  डुबी है मेरी , मँझधार में नैय्या । दीनानाथ ! लेलो साथ !  मुझसे हो प्यार । मैं भी वही कहूँगा ,  मैं भी वही कहूँगा ॥४ ॥

देखूंगा कैसे नजारा तुम्हारा

  ( तर्ज चाहूंगा मैं तुझे साँझ सवेरे . )  देखूंगा कैसे नजारा तुम्हारा ?  सबके भरा है दिलमै उजारा ।  मैं भी तो पा सकूंगा ,  मैं भी तो पा सकूँगा | देखूं ॥ टेक ॥  साधन करके , योग चढाऊ ,  ध्यान लगाऊँ , गाऊँ बजाऊँ ।  तू जहाँ मैं वहाँ , लेलूं समाधान |  मैं भी तो पा सकूंगा ,  मैं भी तो पा सकूंगा ॥ देखूं ॥ १ ॥  भक्त पुकारे , मंदर द्वारे ,  नाचके मीरा , तन - मन हारे ।  प्रीत वो , नीत वो , तेरा धरू सहारा ।  मैं भी तो पास पा सकूंगा ,  मैं भी तो पा सकूंगा ॥देखूं ॥२ ॥ सूरदासने फोडी आँखे ,  तुझको पाया प्रीत रिझाके ।  धरा हाथ , करी बात ,  कर दिया पार ।  मैं भी तो पा सकूंगा ,  मैं भी तो पा सकूंगा ||  देखूं ॥ ३ ॥  तुकडया कहता , नाम अधारा ,  संत पुकारे , बारम्बारा ।  निर्धार , यही सार , भवको बिसार ।  मैं भी तो पा सकूंगा ,  मैं भी तो पा सकूंगा ॥ देखूं ॥ ४ ॥ 

जाऊंगा मैं भी प्रभु की शरण में

 ( तर्ज चाहूंगा मैं तुझे , सांझ सबेरे )  जाऊंगा मैं भी प्रभु की शरण में ,  होनेको पावन उन्हीके चरण में  कुछ भी ना और लूंगा ,  कुछ भी ना और लुंगा ॥ टेक ॥ सुख है तेरे , दुख है तेरे ,  जो कुछ होगा सबही तरे |  मिलजा एकबार , देखूं करके प्यार ।  कुछ भी ना और लूंगा ,  कुछ भी ना और लुगा ॥ १ ॥  ज्योती जगी है , दिलमें लगी है ,  बूझ न पाये , भूल ना जाये ।  यही बात , करूं साथ ,  पाऊँ बन के सार ।  कुछ भी ना और लूंगा ,  कुछ भी ना और लूंगा ॥२ ॥  मैं तू दोनों , एक ही मानो ,  तत्व पछानू, स्वासा बानू ।  झनकार , बलिहार ,  बिना बजाके तार ।  कुछ भी ना और लूंगा ,  कुछ भी ना और लूंगा ॥३ ॥  तुकडया गाये , मन उछलाये ,  यही होना है , निश्चय पाये ।  करदे , भरदे , जीवन की धार ।  कुछ भी ना और लूंगा ,  कुछ भी ना और लूंगा ॥४ ॥ 

भेद मत करना कहीं

 ( तर्ज - आकळावा प्रेमभावे श्रीहरी . )  भेद मत करना कहीं ,  सत्पंथ में , सत्संत में ।  उपदेश सबका एक ही है ,  तारनेको अन्त में ॥ टेक ॥  जो करे निन्दा गुरूकी ,  बोलकर मन मोड दे ।  बनता नहीं तुझसे अगर ,  उठजा जगा वह छोड दे ॥१ ॥  प्रेम गुरूसे जब किया ,  तब क्या समझ करके किया ?  सत्‌ग्यान ही है सत्गुरू ,  समझा नहीं तो क्या किया ? ॥२ ॥  दिल दिया सत्‌संगमें ,  तब तो परमपद पा गया ।  हर जगा गुरू - मुर्ति है ,  सत्‌शिष्य के मन भा गया ॥३ ॥  गुरूकी आज्ञा ही बडा  धन - मान है और पून है !  कहत तुकडया जान लेना ,  वही बनेगा पूर्ण है ! ॥४ ॥