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जुलै, २०२२ पासूनच्या पोेस्ट दाखवत आहे

दिलवर के लिये , दिलदार है हम

 ( तर्ज - हर देशमे तु , हर भेष में तू ० )  दिलवर के लिये , दिलदार है हम |  दुश्मन के लिये तरवार है हम | मानवके लिये परिवार है हम |  दानवके लिये अंगार है हम ॥ टेक ॥  यह जान गया , कोई मान गया ,  फिरभी न भरोसा है हमको ।  हद भारतकी जब छोडके दे  फिर ' मित्र कहे ' तैयार है हम ॥ १ ॥  हम सचसे अपनानेको चले ,  शान्तीकी समझ देनेको चले ।  गर धोखे में कोई वार करे ,  उस बैरीको खुंखार है हम || २ ||  हम मानव एक समझते है ,  पर दानव नहीं बढने देंगे ।  आजादी किसिकी कोई छिने ,  उनके सरपे सरदार है हम || ३ ||  अब देशका बच्चा जोशमें है ,  शत्रू पर विजय कमानेको ।  यह तुकड्यादास कहे सुधरो ,  नहीं तो , लो ये तयार है हम || ४ ||

तीरथ करनेको आया

 ( तर्ज - पहिली मुलाकात है )  तीरथ करनेको आया ,  साथ लिया सारी माया ।  औरत , लडके , लडकी पैसा ,  छातीसेही लिपटाया || टेक ||  घर ढूंढत है रहनेको ,  दुकान खाने पीनेको ।  अच्छा कमरा सोनेको  और एक गवैया गानेको ।  साबून तेल सुगंधी ले ,  गंगामे मलमल न्हाया ॥  औरत ॥ १ ॥  पान सुपारी खाता है ,  जहाँ वहाँ पिचकाता है ।  हसी मस्करी करता है  और हर पल आँख मुडाता है ।  फिर जाता है दर्शन को ,  जरा न दिल में पछताया ।  औरत || २ || पंडाको गाली देता ,  साधूका गुस्सा करता ।  हीन दीन कहीं भिक्षा माँगे ,  भलती डाँट सुना देता ।।  मन्दर में ध्यान किया ,  खडे खडे फुल फेक दिया ||  औरत ॥३ ॥  सत् संगत नहीं पान करे ,  झुकके नही सलाम करे ।  दान करे ना नेम करे ,  भक्ती करे , ना प्रेम करे ।  तुकड्यादास कहे ऐसोंका ,  क्या करता तीरथ भैया ।  औरत ॥ ४ ॥ 

दिल आशक है तुझसे मिलने

 ( तर्ज - दिलमें हि नहीं जब शांति  )  दिल आशक है तुझसे मिलने ,  अरमान करो पूरा मोहन !  न्यौछावर है तन - मन मेरा ,  बस ध्यान लगा तेरा  मोहन ! ॥ टेक ॥  दिल रूठ गया संसार से अब ,  दिखता न नजर में और कोई ।  बस तेरी झलक अँखियों में भरी ,  चाहे तार कि मार छूरा ,  मोहन ! || १ || तेरि सुन्दरता और माधुरियाँ ,  बस हदही करती है मुरली ।  पागल ही बनाती है दिलको ,  खुद बोल तो प्यारे जरा ,  मोहन ! || २ || जमुना के किनारे गोपिन में  और ग्वालन में संग - बालन में ।  तुकड्या कहे खेल गया गिरिधर !  क्यों भूल पडे मेरा   मोहन ! || ३ || 

भारत की हमारे नैया

भारत की हमारे नैया, मँझधार पडी है भैया !  आजा रे! आजा कन्हैया !  तुही है पार करैया ! || टेक || दूध - दही  की नदियाँ बहती,  मेरे जमाने माँही ।  घर- घर थी सादगी ,  पाप - ताप कछु नाही ॥  अब तो कटती है गैया घुमते है शराबी भैया गुण्डो की चलती आँधी मिलता नही कोइ खिवैयाँ || १ || चोरी - जारी , रिश्वतखोरी ,  घर घर नाच रही है  सज्जनता को कोइ न पूछे ,  जीना मुस्किलही है ।  हाँजी से हाँजी लगाओ ,  तब तो नेता बन जाओ ।  कुछ धरम - करम मत बोलो  बोलोतो सिनेमा - याँ ॥ २ ॥  सिफारिशों से भरती होते ,  होते पास उन्होंसे ।  काम नहीं करना चाहते हैं ,  रहते राज - भरोसे ॥  तू एक दफे तो आजा तुकड्या कहे देख तमाशा  ले चक्र सुदर्शन कर में ,  जो तेरा रहा रवैया ॥ ३ ॥

बन्दे तप पर राज

 ( तर्ज - साधो सन्तनकी गति न्यारी )  बन्दे तप पर राज निहित है ॥ टेक ॥  जो चाहे शासक बन जावे ,  होती बूरी गत है ।  बिन चारित्र्य , सचाई , नीति ,  देश में नाचे भुत है ॥ बन्दे ! ॥१ ॥  अबके हई परीक्षा सबकी ,  दिन आये चिन्तित हैं ।  को जाने प्रभू भारत - माँ की ,  राखेगा |  इज्जत है ॥ बन्दे ! || २ || ग्यान-ध्यान तो सब कोई बोले अपने को बिछुडत है ।  जहाँ कठिनतम बात खडी हो ,  निश्चित नहीं दे मत है । बन्दे || ३ || बड़े - बड़े हैं सवाल आगे ,  कौन लगावे सत् है ?  तुकड्यादास खासकर बोले अब जनता की गत है ||  बन्दे! || ४ ||

तुम्हारे ही नामपर

 ( तर्ज - परदेशीया मेरी अखियाँ ० )  तुम्हारे ही नामपर ,  हम जिन्दगी गुजारते ।  तुम्हारे ही सेवा खातिर ,  दुनिया पुकारते || टेक || नहीं तो हमारी कोई ,  हिंमत भी क्या है ।  बिना ग्यान - ध्यान कोई ,  मान ना दिया है ।  आलसी पडे रहते हम ,  भूखे दंड मारते ॥ १ ॥  सिखाये से पंछी ,  बोले पशू भी तो खेल खेले ।  उन्हीमें है हम भी सामिल ,  कैसे करेंगे अकेले ।  तेरी कृपा से ही जैसे ,  और भी उधारते ॥ २ ॥  फिर तो फिक्र किसको बोले ,  भेद भी किसी से खोले ।  आजके जगत में कोई ,  हीन दीन को क्या तोले ।  कहे दास तुकड्या तुमही ,  बिघडी सुधारते ।। ३ ।। 

अरे ! तैयार हो जाओ

 ( तर्ज - मुसाफिर जागते रहना ० )  अरे ! तैयार हो जाओ ,  जमाने का पुकारा है । ॥ टेक ॥  समय आया वही आगे ,  न किसीका भी सहारा है ।  खडे हो जाओ अपने बल ,  मिलेगा तब किनारा है ॥ १ ॥  जो हिम्मत छोडके भागे ,  उसे कायर कहावेंगे ।  न डरता मौत को अपनी ,  चही साथी हमारा है ॥ २ ॥  खुशी है देशकी जिसको ,  उसीपर प्रेस भारत का !  चढाओ फूल की माला ,  लगे घर - घर नारा है ॥ ३ ॥  बखत गम से निकल जावे ,  तो धोखा ही खडा होगा ।  वह तुकडचादास कहता है ,  अनुभव यह हमारा है ॥ ४ ॥

शुभ मंगलदायी तिरंगा यह

 ( तर्ज - दिल में ही नहीं जब शांत )  शुभ मंगलदायी तिरंगा यह ,  नवभारत भाग्य सुभाग्य करे ।  सब आय मिले इसके रंग में ,  नित्य सत्य अहिंसा बोध झरे ॥ टेक ॥  है त्याग मरा केशरिया में ,  अरु शुभ्र सरल चारित्र्य धरे ।  हरियाली भरे हर चीज हुं में ,  सौंदर्य भरे सब क्लेश हरे ॥ १ ॥  अति सत्य छिपा रहता जिसमें ,  बिन शस्त्र भी छेद अचूक करे ।  नील चक्र सुशोभित मध्य जडा ,  वह शान्ति सदाहि प्रदान करे || २ ||  हो अचल अमर इस भारत में ,  कर विश्व विजय तप त्याग भरे ।  यह द्योतक हो मुलका कुलका ,  स्वातंत्र्य ध्वज फहरे लहरे ॥ ३ ॥ 

दो दिनकी यार जवानी

 ( तर्ज चारित्र्य फना ही होगा )  दो दिनकी यार जवानी ,  तेरी धूल है जिंदगानी || टेक || छलबल करके समय गमाया ।  नहि कुछ सतसंगत मन भाया ।  होनहा रफिर मिला बुढापा  भई बदनपर ग्लानी ।  तेरि धूलमें ० ॥ १ ॥  अपने स्वारथ दिल ललचाया |  नाहक झगडा मोल बिकाया ।  जीवन में नहीं मोहब्बत किसकी  सुख दुःख नहि कुछ जानो |  तेरि धूल ० ॥ २ ॥  ऐ बन्दे ! अब जाग खड़ा हो ।  आलस नींद में क्यों जखडा हो ।  कर नेकी से काम जगत में  रख जीवनकी बानी ।  तेरि धूल ० ॥ ३ ॥  मत मगरूरी से दिन तू काटे ।  सबकी सह ले ! बनकर छोटे । तुकड्यादास कहे सुमरन कर  यही रह जाय निशानी ।  तेरि धूल ० ॥ ४ ॥ 

बुलौवा आया , उठो चलो भागो

 ( तर्ज : धन्य तब करणी ० )  बुलौवा आया , उठो चलो भागो ।  अदालत पेश करो जागो || टेक || गये दिन बीते फुहड कमाई के  मजे लूटते , दुहाई के ।  जिंदगी करे , चार उधाई के  कटे दिन सभी बडाई के  नहीं की सेवा , कारज साँई के  नाम गाये न कन्हाई के  याद अब रखो , झूठ जगत त्यागो ||  अदालत ० ॥ १ ॥  पटेली करो , बुरी जबाँ बोली ।  प्रेम की गठडी नहि खोली ।  भाग थे बड़े , उमर सदा डोली ।  जवानी राब - राब धोली ।  बुढापा आया , खटियोंपर भागो ।  अदालत ० ॥२ ॥  रही अब थोडी , मरने को साखी ।  तार की हिचकी है बाकी ।  देर ना रही करो करो हाँकी  पड़ी अब कदम कन्हैय्या की ।  नहीं तो गयी लाज पड़ी फीकी ।  लगी जंजीर पुकारी की ।  हुशारी करो , प्रभु के पग लागो ।  अदालत ० ॥३ ॥  खरीदो यहाँ जिस कारण आये ।  कदम बोसी से मन भाये ।  रटो प्रभु सदा मन में पग छाये ।  मस्त हो हरि के गुण गाये ।  दास तुकड्या का सुनलो कहना ये बख्त फिर ऐसी ना आये ।  रंगो रंग लावो, दुनिया से भागो ।  अदालत ० || ...

अरे हमी गलतियाँ खाते

 ( तर्ज : बजाई बन्दरी मोहन )  अरे हमी गलतियाँ खाते ,  करेंगे क्या किसीका हल ।  पहिनना माल आसानी ,  निभाना है बडा मुश्किल || टेक ||  काम और क्रोध की ज्वाला  में होते खाक हम - जैसे ।  क्या होता भजन करनेसे ,  न जिसमें भक्तिका है बल ॥ १ ॥  नाम चाहे धरे साधू ,  मगर अंदर जो है गन्दा  कौन धोवेगा भीतरका ,  जहाँ चलती  सदा छलबल ? || २ || ऐ दुनियाँदारी के लोगो  हमारे हो तुम अच्छे कमाते और देते हो ,  पिनेको प्यासियों को जल || ३ || सदा लेना ही हम सीखे ,  मार बाते ऋषीयोंकी ।  वो तुकड्यादास यौं बोले ,  मिलेगा कैसे हमको फल ? ||४||

प्रेम करना सीख लो

प्रेम करना सीख लो ,  फिर कुछ नहीं बाकी रहा ।  नाथ भी खुश होगया ,  फिर और क्या साखी रहा ?  द्रौपदी के प्रेम से  रखी लाज जो जाती वही ।  प्रेम सीखा गोपियोंने ,  नच गया मोहन वहाँ ॥ १ ॥  बेर शबरी के थे झूठे ,  कौन नहि हैं जानता ?  प्रेम के मारे प्रभूने  खा लिये कहे ' वाहवा | ' ॥ २ ॥  था सुदामा भी दरिद्री ,  प्रेम था प्रभूसे जमा ।  वक्त जब आया , प्रभूने '  कनक धाम ' दिया महा || ३ ||  क्या कहूँ तारीफ उसकी ?  जो कोई सच प्रेम दे ।  कहत तुकड्या आज भी ,  देखा न कुछ कमती वहाँ ।। ४ ।। 

किसका मुख देखा बडी सुबह

 ( तर्ज :मै एक छोटासा बच्चा हूँ )  किसका मुख देखा बडी सुबह ?  मिला न खाना आज ।  गया दिन भूखभरा || टेक ||  एक मिला था धुंद शराबी ,  सुधरा सा लगता था ।  बकता था गाली , नाली से ,  मरा हुआ जीता था ।  मुख में थी महिखयाँ , उडलाती ,  बदबू भी थी चलती ।  गया दिन भूखभरा ॥१ ॥  एक मिला था गुण्ड खूनेरा ,  क्रूर था उसका चेहरा ।  चारा हटे नहि मारग में से ,  घबडाया जी मेरा ।  छाती धडक उठी , हुआ तुफान ,  लगा ' बचा भगवान ! '  गया दिन भूखभरा ॥ २ ॥  एक मिला उल्लू का पट्टा ,  परस्त्री ले घूमता था ।  बड़ा जुआरी , चोर , घमण्डी ,  धन से ही झुमता था ।  छुरी हाथ में थी , आँख चढी ,  पास न छोडे कौडी ।  गया दिन भूखभरा ॥३ ॥  एक मिला साधु के भेष मे ,  जनता को लुटता था ।  तुकडयावास कहे फिर - फिरसे '  फिचर ' अंक रटता था ।  खाली घर मे वह घुस जाये ,  माता को बहकाये ।  गया दिन भुखभरा ॥४ ॥

सदाचारबिन इस दुनिया में

 ( तर्ज- राही मनवा दुःख की ) सदाचारबिन इस दुनिया में ,  कौन ठिकाना ।  झूठ तो नकली बाना है ।  मित्र है चारित्र्य अपना ,  उसको निभाना है ।  झूठ तो नकली बाना है । टेक ॥  आज जमाना झूठ करे ,  उसकी मंजिल दूर नहीं ।  एक समय वह आयेगा ,  रह जायेगा साच वही ।  भ्रम दूर बने जन जाग गये ।  मित्र है चारित्र्य अपना ,  उसकोही निभाना है ।  झूठ तो नकली बाना है ॥ १ ॥  रावण राज्य में राक्षस थे ,  उसमें विभीषणही निकला ।  पक्षी जटायुने खोज दिया  और उसीका प्राण चला ।  गर एक मिले सतीया भी कोई ।  मित्र है चारित्र्य अपना ,  उसकोही निभाना है ।  झूठ तो नकली बाना है ॥ २ ॥  आज वहि सखिया हो कोई ,  उसपे नजर ये जाने लगी ।  तुकड्यादास कहे क्रांती ,  उन वीरोंको बुलाने लगी ।  बढ़ जाये कदम नव युवकों का  मित्र है चारित्र्य अपना ,  उसकोही निभाता है ॥  झूठ तो नकली बाना है ॥ ३ ॥

सचकाम किया जगमे जिसने

 ( तर्ज - नारायण जिनके हिरदे में ... ) सचकाम किया जगमे जिसने ,  उसने प्रभुनाम लिया न लिया ।  अपने मनको बसमें हो किया ,  वह चारों हि धाम गया न गया ॥ टेक ॥  है जिसके जबाँपर प्रेम भरा ,  कटुता पटुता का गर्व नहीं ।  हर मानव से समता जिसकी ,  वह मन्दर ध्यान किया न किया ॥१ ॥  सेवा ही बना जीवन जिसका ,  बदला न चहे दिल से किसका ।  जो मस्त रहे अपने धुन में ,  वह गुरु का मंत्र लिया न लिया ॥ २ ॥  सब भेख बराबर है जिसको ,  सब संत और पंथसे प्रेम वही ।  जिसके भाषण में झूठ नहीं ,  वह ग्रंथ का पाठ किया न किया ॥ ३ ॥  यदि मौत भि आय किसी क्षण में ,  या संकट पर्वत प्रायः पड़े ।  तुकडया कहे जो डरता न उसे  तब औरों का साथ लिया न लिया || ४ || 

प्रेम करने का मजा

 ( तर्ज - हर जगह की रोशनी में ० )  प्रेम करने का मजा ,  भगवान मेरे जानते ।  विषयी क्या जाने उसे ?  जो चाम ही पहिचानते || टेक || प्रेम की बुनियाद है ,  चैतन्य आत्मा से लगी ।  इसलिए हम तो सदा ,  सच प्रेम प्रभु ही ठानते ॥ १ ॥  देह तो मुर्दा है यह ,  है प्रेम आत्मा में भरा । '  मैं वही हूँ ' ग्यान से ,  रस सुक्ष्म सन्त हि छानते ॥ २ ॥  द्रौपदी का प्रेम था ,  भगवान को झुकना पड़ा ।  बेर झूठे शबरी के पर ,  राम भी कुर्बान थे ॥ ३ ॥  उस विभीषण को खबर ली ,  राज्य भी सौंपा उसे ।  था सुदामा रंक ही ,  प्रभु उसलिए हैरान थे ॥ ४ ॥  आज भी भगवान पर ,  जो प्रेम करता है सही ।  डर नहीं उसको कहीं ,  तुकड्या कहे प्रभु मानते ॥ ५ ॥ 

क्यों बैराग लिया है

 ( तर्ज - मेरे मनकी गंगा )  क्यों बैराग लिया है ?  घरको त्याग दिया है ,  क्यों ? बोल साधू ! बोल ,  सेवा करता कि नहीं ? ॥ टेक ॥  कितने हिन्दु लोग पडे है ,  धरम - करम मालुम हि नहीं ।  गीता - रामायण ही पढते , '  ग्रामगीता ' देखी न कहीं  पान - बिड़ी को पीना ,  सीनेमा में जाना ।  क्यों ? बोल साधू ० ॥१ ॥  घुसखोरी- और चोरी- जारी ,  गुण्डागर्दी करते है   माँसमदीरा खातेपीते ,  रोगी होकर मरते है |  कौन उन्हें समझाये ?  उनके घर घर जाये ।  क्यों ? बोल साधू ० || २ ||  या जो तुझसे नहिं बनता तो ,  साधन कर एकान्त में जा ।  ईश्वर से बल माँग ,  तपस्या करके भी फिरसे आ जा ॥  तुही गांजा पीये ,  लोग कहां सुधराये ।  क्यों ? बोल साधू ० ॥ ३ ॥  रंग लिये हैं कपडे तूने ,  उनकी लाज तो रखना है ।  गंगा के सम बहते रहना ,  अच्छे - बुरे परखना है ।  कोई धर्म न छोडे ,  ईमान से मुंह मोडे ।  क्यों ? बोल साधू ॥४ ॥   साधू तो उपकार करेगा ,  यहीं...

यह सुंदर उपवन

 ( तर्ज - सारी नाद तुम्हारे हाते )  यह सुंदर उपवन , उरळी कांचन  देख देख मन भाया  यहाँ निसर्ग उपचारों से होती ,  कंचनसी काया || टेक || हवा पानी फल - फूल और सब्जी ।  मिट्टीपट्टी करती राजी ।  सूर्यस्नान का महिमा सुंदर |  शांती दिल पाया ॥ १ ॥  भोजनही है दवादुवायें ।  कटी स्नान आरोग्य बढाये ।  नियमन जीवन में संयम कर ।  दुःख को भगवाया ॥ २ ॥  लाखों रोगी भोगी आये ।  यही उपचारों से सुख पाये ।  सुन्दर होती यहाँ प्रार्थना ।  हमने अजमाया ॥ ३ ॥  गौवे यहाँ की गर्व बढाती ।  कृष्ण जमाने को बतलाती ।  देख देख ललचाते जन मन ।  मोहती माया ॥ ४ ॥  जो रोगी को यहाँ आना है ।  वह योगी बनकर जाना है ।  निसर्ग ही भाता है उसको ।  उपदेश सुन पाया ॥ ५ ॥  राष्ट्रपिता गांधी ने इसको ।  दिया प्रेरणा जन के हितको ।  संत विनोबा की रहती है ।  सदैव ही छाया ॥ ६ ॥  जय नारायण , सुखबिर डाक्टर |  देखमाल रोगी के सुखकर |  कृष्णचंद्र , मणिभाई सेवक ।  उन्नति कर लाया ॥ ७ ॥  सा...

भारत देश हमारा

 ( तर्ज- मेरे मन की गंगा ० )  भारत देश हमारा ,  सारे जग का प्यारा हो  बोल इसकी धारा ,  मनमें भाई को नहीं ? ॥ टेक ॥  सबने मिलकर काम उठाना ,  खेती - उद्योगों के ।  आय का बटवारा करना ,  कष्ट फले लोगों के ।  भाई चारे का नारा ,  बच्चा बच्चा प्यारा हो ,  बोल इसकी धारा ० ॥ १ ॥  किसकी जाती ? किसके पंथी ?  हम सब भारतवासी ।  जैसा जिसका हाथ जमेगा ,  वह उसका अभिलाषी ।।  इज्जत सबकी एक ,  दिखने हि अनेक हो ,  बोल इसकी धारा ० ॥ २ ॥  सब तीरथ - मस्जिद - गिर्जाघर ,  एकहि सत्य बताते ।  बेदों से लेकर के सारे ,  ग्रंथ पंथ यहि गाते ॥  डरो न धसकाने से हटो  न मर जाने से भी ,  बोल इसकी धारा ० ॥ ३ ॥  बच्चा बच्चा वीर यहाँ का ,  लडता है औ बढता ।  तुकड्यादास कहे पर हित को ,  बलि वेदी पर चढता ॥  त्यागहि इसका बाना ,  प्रेमहि इसका गाना है ,   बोल इसकी धारा ॥ ४ ॥

छेडनेवाले किसे छेड गये है

 ( तर्ज - दिल तोडनेवाले ० )  छेडनेवाले किसे छेड गये है ।  किसीके दिलपे  दाग छोड गये है || टेक ||  छुडाये कौन ,  उसे साफ कराये ।  ढूंढ रहे चारों ओर ,  नैन लगाये ॥  भरे बाजार में ,  मरोड गये है ॥ १ ॥  अगन में जल न जाय ,  शान किसीको ।  अकल न हो पापसे ,  हैरान वि सोकी ॥  मेरे ये दिलके तार ,  तोड गये है ॥ २ ॥  उठाये आह मेरी ,  बाँह पकड़के ।  विनय जान मेरी ,  ध्यान में कड़के ॥  चही तो धन्य है ,  दुही जोड गये हैं ॥ ३ ॥  धूल में लेटते थे ,  आस लगाये ।  फल में कौन घुसे ,  मुझको समाये ॥  तुकड्याको दास पन ,  बनाये गये है ॥ ४ ॥

तीरथों के बासियो!

तीरथों के बासियो!  तुम्हरा भी तो यह तीर्थ है? लुटने को यात्रियों को ही  नही यह सिर्फ है || टेक || शील औ ईमानदारी है पुजा भगवान की क्या न संतो ने बतायी यह तुम्हे ही शर्त है ? || १ || क्षेत्र में जो पाप करते ,  वह नहीं मिटता कमी |  भक्ति की धारा बहायी ,  साधु - सन्तों ने जहाँ  मूर्ख औरों को बनाकर ,  डूबता खुद धूर्त है ॥ २ ॥  खुद करो शुद्धाचरण ,  सबको सिखाओ सत्य हो ।  तुम बने गंगा के पत्थर ,  क्या चुकेगी गर्त है ॥३ ॥  तनुही बने फिर तीर्थही ,  वही होत सन्त - समर्थ है ॥४ ॥  पूर्व पुण्याई बडी थी ,  इसलिये स्थल यह मिला ।  कहत तुकड्या साधलो ,  नहि तो जनम यह व्यर्थ है ॥ ५ ॥ 

सोचने काबिल नहीं

 ( तर्ज - हर जगह की रोशनी में ० )  सोचने काबिल नहीं ,  उसको हि सोचे जा रहा ।  उम्र मिट्टी में मिला दी ,  क्या नतीजा पा रहा ? || टेक || घरको हो सोचा सदा ,  और जर को सोचे दिन गये ।  अब रही थोडी बखत ,  फिरभी उसीको गा रहा ॥  पेट को सारा समय ,  बाकी बचा सो शौक को ।  कुछ नहीं भगवान को ,  बैमान बनके खा रहा ॥ २ ॥  बैल होकर जिन्दगी का ,  झंझटो मे फँस गया ।  क्या बतावेगा प्रभू को ?  मुंह दिखाने क्या रहा ? ।। ३ ।।  फिर भी ईश्वर है दयालु ,  प्रार्थना कर , सर झुका |  दास तुकड्या की हमी है ,  पापी भी तर जा रहा ॥ ४ ॥

तेरा प्यारा है नाम

 ( तर्ज- हम है भले बुरे ० )  तेरा प्यारा है नाम ,  दुनिया गाती तमाम ,  उसके जपनेसे काम ,  सिद्ध होता सुना ॥ टेक ॥  उसको न लगता पैसा- अधेला ।  उसको न लगता अंधेरा - उजाला ।  लगती है भक्ति और भावना  चाहे बैठे जपो ,  सोते - चलते जपो , '  होता बेडाही पार '  संत कहते सुना ॥ १ ॥  उसको न लगता ऊँचा अखाडा ।  लगती न गर्मी , वर्षा और जाडा ।  जाती और नाते का भेद ना  नहीं लगता मन्दर ,  छोटा हो या सुन्दर , '  सारे स्थानों में ईश्वर  ही रहता ' सुना ॥ २ ॥  प्यारा प्रभू प्रेमभक्ति का भूखा |  जो प्रेमसे वे तो खाता है सूखा ।  चाहता ईमान , सत्य कामना '  प्यारे भक्तों के सुख दुःख सहता '  सुनी तुकड्याने बात ,  सारे सन्तों के साथ , सुना  प्यारे भक्तों के  सुख दु:ख सहता सुना ॥ ३ ॥

मुझे नहीं है चेला

 ( तर्ज - मेरे मन की गंगा ० )  मुझे नहीं है चेला ,  मैं तो रहता सदा अकेला ।  मुझपर करते सारे प्रेम ,  मेरा नाता कहीं नहीं है ॥ टेक ॥  वे समझेंगे बात हमारी ,  घरको फूंके फिर बोले ।  जरा इधर के , जरा उधर के ,  वे धोखे के है टोले ।  रहा न वह घरबारा |  साधू भी नहिं पूरा ।  मुझपर करते सारे प्रेम , मेरा ० ॥ १ ॥  मैं पानी के समान बहता ,  रहता हूँ दिनरात सदा ।  सब संतों की बात सुनाता - भक्ति  से न हो कोई जुदा  सुने न सुनने पाये ।  खुशी हुई तब आये ।  मुझपर करते सारे प्रेम , मेरा ० ॥ २ ॥ दिखता हूँ में संस्थावाला ,  साथी - संगाती रहने से ।  सबही कच्चा माल भरा है ,  एक दिन रूठेंगे हमसे ॥  कोऊ बिरला रह पाये ,  कहे तुकडया समझाये ।  मुझपर करते सारे प्रेम , मेरा ० ॥ ३ ॥ 

नेक रहो मेरे यार

 ( तर्ज - एक दो तीन चार ... )  नेक रहो मेरे यार !  तब तो होगा बेडा पार ।  झूठी है जिन्दगी ,  साथ करी बन्दगी ;  पाओगे सत् का आधार ॥ टेक ॥  पापभी करना , मन्दर मरना ।  अपनी बडाई दुनिया में धरना ।।  यह कैसे होगा ? कहो कैसे होगा ?  जब कि होगा न ईश्वर से प्यार ॥ १ ॥ हाथों में माला , दिल में है काला ।  जो आये उसको चसा औ डाला ॥  है बात प्यारी , लेकीन है छूरी ,  तब तो जाओगे जम के दुआर ॥ २ ॥  प्रभु - नाम गाऊँ , दिल से रिझाऊँ । कहता है तुकड्या मैं बैकुण्ठ जाऊँ |  सुनो मेरी बात , रहो साधुओंके साथ  तब तो सारा हि होगा सुधार || ३ || 

ऐ मानव ! सुनले बात

 ( तर्जं - व्यसनको छोड़ दे प्यारे )  ऐ मानव ! सुनले बात ,  व्यसन को छोड दे सारे !  तेरा और बढेगा नाम ।  प्यारे ! कर नेकी के काम ॥  व्यसन को छोड दे सारे ॥ टेक ॥  गांजा शराब पीकर किसने  जीवन सफल बनाया ?  खाक किया सब तनको धनको ,  आखिर दुर्गति पाया रे ?  लाखों का बिगडा ठाठ |  उतर गये जमराजा के घाट ।  व्यसन को छोड़ दे सारे ॥ १ ॥  जूवा - सट्टा चाय और चुट्टा ,  सब है बट्टा भाई !  इनके मारे कोइ न सुखिया ,  लाखों देत गवाही रे ! समझ बूझकर ले ले मोड ।  हटा दे इस काया के कोड ।  व्यसन को छोड़ दे सारे ॥ २ ॥  आजहि किसने घर बेचा है ,  शोक निभाने अपना ! '  बिन घरबार रहेगा भूखा '  कहा न उसने माने रे !  तू होगा आखिर चोर ।  कहके क्या होगा सिरजोर ?  व्यसन को छोड दे सारे ॥ ३ ॥  चुगली - चहाडी व्यभीचार  की नशा भरी जब सिर में !  कौन करेगा खडा पासमें ?  प्रेम तेरा नहि जी में रे !  कहे तुकड्या सुन ले बात ।  अमर हो प्रभू - भजन के साथ ।  व्यसन को छोड दे...

एकहि मानव है सारा

 ( तर्ज - मेरे मनकी गंगा , तेरे मनकी ० ) '  एकहि मानव है सारा '  ऐसा क्यों नहि हो नारा ?  तोल सके तो तोल ,  मेरी बातें है सही || टेक || जैसे मानव को पहचाने  नाम धराकर न्यारे है ।  वैसे देश - विदेश है प्यारे !  धर्मपंथ भी सारे है ॥  यह समझे वहि ज्ञानी ।  उसकी बुद्धी भवानी ।  तोल सके तो तोल ० ॥ १ ॥  एकहि बाप के दोनों बच्चे  लडते है अज्ञानों से |  एकहि गांव के दो मूरख भी ,  कट मरते है प्राणों से ॥  क्या वे होते न्यारे ?  समझ न करके हारे ।  तोल सके तो तोल ० ।। २ ।। जैसे दो धर्मी भी लडते ,  ईश्वर को दुखवाते है ।  वैसी ही देशों - देशों की  सरकारों की बातें है |  ये बनते अभिमानी ।  करते है मनमानी ।  तोल सके तो तोल ० ॥ ३ ॥  पांचों तत्वों का है घर यह ,  तीन गुणों का ढाँचा |  उसमें रहनेवाला ईश्वर ,  खेले अजब तमाशा  तुकड्या कहता ज्ञानी !  तूने बात पछानी ?  तोल सके तो तोल ० ॥ ४ ॥ 

नहि इस्लाम , न ख्रिश्चन दिखता

नहि इस्लाम , न ख्रिश्चन दिखता ,  नहि हिंदुत्व लिया है ।  तेरी तारीफ क्या है ?  बोल , बोल , बोल ॥टेक ॥  सच्चा जो इस्लाम रहेगा ,  नेक पाक रहता है ।  ख्रिश्चन भी ' बैबल ' को पढकर , '  प्रभु येशू ' जपता है ।  हिन्दु तो हर जड - चेतन में ,  कहता ' राम - सिया ' है  तेरी तारीफ क्या है ?  ॥ १ ॥  लिखा - पढा तो दिखता ,  फिरमी धर्म - वर्म नहिं जाना ।  हर रास्ते में सीटि बजाकर ,  कहता ' चलो सिनेमा ' । '  जो मिलता सब खावो '  कहता ' खूब शराब पिया है  तेरी तारीफ क्या है ? ॥ २ ॥ मुंह धोने से पहले पीता चाय ,  तम्बाकू खाता ।  निंदा हरदम करते रहता ,  बकता लम्बी बाता ।  सट्टा माँग साधु सन्त से ,  सिर ना नम्र किया है  तेरी तारीफ क्या है ? ॥३ ॥  जरा - जरासी बात पे चोढे ,  खून खराबी करता | बन्दर जैसा रहता तू और  न्याय नीति ठुकराता |  तुकड्यादास कहे तेरी सूरत ,  किसने बहकाया है ?  तेरी तारीफ क्या है ? ॥४ ॥ 

हम प्रिती करे पर तुम न करो

 ( तर्ज - हर देश में तू , हर भेष में तू ० )  हम प्रिती करे पर तुम न करो यह कौन देश की रीति है ?  हम ध्यान धरे , तुम छुप जावो ,  ऐसी तुमपर क्या बीती है ? ||टेक || ऐ मुरलीधर ! मनमोहन ! तुम ,  फिर क्योंकर सुन्दर रूप धरे ?  बन जाते पुतना मौसी - सा ,  तब दूर भगी होती मति है || १ || हे बन्सीधर ! इस बन्सी में ,  इतनी मीठी क्यों तान भरी ?  भरना था गर्दभ राग कोई ,  फिर कोइ न सुनता तूती है || २ || अय भक्त हृदय ! इतनों के तुम , निभवाये कैसे जीवनको  तुकडया कहे हम नहि लायक तो  फिर तार चढी क्यों रहतीं है || ३ ||

धर्म और जातक्या पूछो

धर्म और जातक्या पूछो ,  पुछो तो ग्यान ही पूछो ॥टेक ॥  किसी को भी भला पुछो किसीका भी भला पुछो गुण सन्मान कर पूडो ,  ओ अपना जानकर पूछो ॥ १ ॥ किसी को देश मत पूछो ,  भेष - प्रादेश मत पूछो ।  पूछना है तो दिल पूछो ,  खुलाकर दिलसे मिल पूछो ॥ २ ॥ सभी हम एक मानव है ,  विश्व संसार के अंदर  वो तुकड्यादास कहता है ,  एक कैसे रहो पूछो ॥३ ॥ 

जलनेवाली इस दुनिया में

 ( तर्ज- हरिका नाम सुमर नर )  जलनेवाली इस दुनिया में  क्यों बैठा है पागल ! तू ?  ऊठ खडा हो जागृत होकर ,  कदम बढाले आगल तु ॥ टेक ॥  धर्म यहाँका धर्म नहीं है  स्वारथ बाजी है सारी।  इन्सानियत खोकर अपनी ,  किसे मिली है बलिहारी ?  सेवा धर्म उठाले कर में ,  लेकर आतम का बल तु ॥ उठ ॥१ ॥  हिन्दु हो , इस्लाम रहे ,  या बुद्ध , ईसाई हो कोई ।  खुदा जानता ईमान सबका  क्यों आपस माँही ?  प्रेम यही कानून ख़ुदा का ,  इसी भक्ति को ले चल तू ॥ उठ ॥२ ॥  ईश्वर एक शान्तिका सागर ,  बिना उसीके सब होली ।  उसके बलपर कार्य उठा ले ,  होगी दुनिया अलबेली ।  कहता तुकड्या नव जीवन की ,  ध्वजा खडी कर निर्मल तू ||उठ || ३||