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सप्टेंबर, २०२२ पासूनच्या पोेस्ट दाखवत आहे

मैं ब्रह्म कहूँ तो लाज

  मैं ब्रह्म कहूँ तो लाज , होति है आज ,  रहा अन्दाज , समझ नहिं आया ।  मन के ही नाचे ,  नचे देह की माया ॥टेक ॥  यदि कहूँ देह को ब्रह्म  कहना ये गलत हो जावे ।  यदि कहूँ - ब्रह्म है मन ,  ये चंचलपन , वहाँसे भिन्न ,  स्थीर नहिं होता ।  पलभरमें लहरे मारे , खाता गोता ।  ( तर्ज ) ब्रह्म तो कल्पनातित है ।  जहाँ वृत्ति उठे नहीं , स्थित है ।  इन्द्रीय अश्व के साथ , भगे दिनरात ,  विषय ले हाथ , बहाते लाया ।  मन के ही नाचे ,  नचे देह की माया ! ॥ १ ॥  नहिं तीन अवस्था ब्रह्म ,  वही हैं कर्म , जीव का धर्म ,  प्रकट होता है । यदि मूलतत्व को जीव जाय ,  तब पाये ॥  वृत्तिका जहाँसे स्त्रोत ,  वही है मंत्र साधना तंत्र ,  अनुभव गाये  जो सुक्ष्म अंतरंग में पता कर लाये ।  ( तर्ज ) हर इन्द्रिय द्वार उसीका ।  पर साक्षि रहे वह सबका ।  सबकी ही स्फूर्तिका केंद्र ,  चन्द्रका चन्द्र , इंद्रका इंद्र ,  साक्षि समझाया मनके ही नाचे नचे देह की माया ! ॥२ ॥ मनको ही स्थिर कर लाये ,...

कपडे रंगाये , मन ना रंगा है

 ( तर्ज - चाहूंगा मैं तुझे सांझ सबेरे )  कपडे रंगाये , मन ना रंगा है ,  दाढी बढी पर दिल ना बढा है ।  इतनेसे क्या बनेगा ,  इतनेसे क्या बनेगा ? ॥ टेक ॥  प्रभु - प्रेम होगा , नित नेम होगा ,  चारित्र्य अच्छा , अरू ग्यान होगा ।  मीठी बात , होगी साथ , तब तो बने । इतनेसे क्या बनेगा ,  इतनेसे क्या बनेगा ? ॥१ ॥ सेवा बड़ी हो , दीनों दलितकी  सबकी चहा हो , बात हो सतू की ।  इतनेसे क्या बनेगा ,  इतनेसे क्या बनेगा ? ॥२ ॥  करना हो ज्यादा , बातें बड़ी कम ,  खाना जरासा , होना परिश्रम ।  आवे काल बने ढाल , तब तो बने ।  इतनेसे क्या बनेगा ,  इतनेसे क्या बनेगा ? ॥३ ॥  तुकड्या पुकारे , सन्तोंको सारे ,  आया समय हैं , दिलको निहारे ।  मिले मान , तारो जान , तब तो बने । इतनेसे क्या बनेगा ,  इतनेसे क्या बनेगा ? ॥४ ॥  

नाचूंगा मैं भी प्रभूके भजनमें

 ( तर्ज- चाहूंगा मैं तुझे सांझ सबेरे )  नाचूंगा मैं भी प्रभूके भजनमें ,  जाहीर होकर बोलू सजन में ।  अभिमान खोके सारा ,  अभिमान खोके सारा ॥ टेक ॥  होकर दिवाना , दूखूं जमाना ,  आँखोमें भर दूं , प्रभु का निशाना  चढे तार , बेडापार , रंगू रंगमें ।  अभिमान खोके सारा ,  अभिमान खोके सारा ॥१ ॥  तूही तो धन है , तूही तो मन है ,  तेरे बचन ही , मेरा भजन है ।  तेरा प्यार , मेरा सार , भरूं अंगमे । अभिमान खोके सारा ,  अभिमान खोके सारा ॥२ ||  चारों दिशामें तेरी ही सूरत ,  जहाँ देखता हूँ तेरी ही मूरत ।  जपूं माल , घुले तार , टुटे जाल ।  अभिमान खोके सारा ,  अभिमान खोके सारा ॥३ ॥  तुकडयाको जिसने ये राह बोला ,  उनकी दयासे पाया उबेला ।  तेरा नाम , मेरा काम , पाऊँ अराम ।  अभिमान खोके सारा ,  अभिमान खोके सारा || ४ ||

सबको मिला है तेरा सहारा

 ( तर्ज - चाहूँगा , मैं तुझे सांझ सबेरे )  सबको मिला है तेरा सहारा ,  जिसने भी तुझको दिलसे पुकारा ।  मैं भी वही कहूँगा ,  मैं भी वही कहूँगा ॥ टेक ॥  थोडा फरक है , मुझमें उसीमें ,  मैं अवगुणी हूँ , ग्यानी कमी हूँ ।  धरो हाथ , करो बात , देके अधार ।  मैं भी वही कहूँगा ,  मैं भी वही कहूँगा ॥१ ॥  वो प्रेम पाये , मैं हूँ अभागा ,  मुझमें अभी भी नहीं प्रेम जागा ।  करो दान , तारो जान , होगा उद्धार । मैं भी वही कहूँगा ,  मैं भी वही कहूँगा ॥२ ॥  गुणवानको सभी है चाहते ,  हीन - दीन देखें नहीं पास लेते ।  तेरा नाम , सुना राम , कर दो पार ।  मैं भी वही कहूँगा ,  मैं भी वही कहूँगा ॥ ३ ॥  तुकडयाको तारो , तुम हो तरैय्या ,  डुबी है मेरी , मँझधार में नैय्या । दीनानाथ ! लेलो साथ !  मुझसे हो प्यार । मैं भी वही कहूँगा ,  मैं भी वही कहूँगा ॥४ ॥

देखूंगा कैसे नजारा तुम्हारा

  ( तर्ज चाहूंगा मैं तुझे साँझ सवेरे . )  देखूंगा कैसे नजारा तुम्हारा ?  सबके भरा है दिलमै उजारा ।  मैं भी तो पा सकूंगा ,  मैं भी तो पा सकूँगा | देखूं ॥ टेक ॥  साधन करके , योग चढाऊ ,  ध्यान लगाऊँ , गाऊँ बजाऊँ ।  तू जहाँ मैं वहाँ , लेलूं समाधान |  मैं भी तो पा सकूंगा ,  मैं भी तो पा सकूंगा ॥ देखूं ॥ १ ॥  भक्त पुकारे , मंदर द्वारे ,  नाचके मीरा , तन - मन हारे ।  प्रीत वो , नीत वो , तेरा धरू सहारा ।  मैं भी तो पास पा सकूंगा ,  मैं भी तो पा सकूंगा ॥देखूं ॥२ ॥ सूरदासने फोडी आँखे ,  तुझको पाया प्रीत रिझाके ।  धरा हाथ , करी बात ,  कर दिया पार ।  मैं भी तो पा सकूंगा ,  मैं भी तो पा सकूंगा ||  देखूं ॥ ३ ॥  तुकडया कहता , नाम अधारा ,  संत पुकारे , बारम्बारा ।  निर्धार , यही सार , भवको बिसार ।  मैं भी तो पा सकूंगा ,  मैं भी तो पा सकूंगा ॥ देखूं ॥ ४ ॥ 

जाऊंगा मैं भी प्रभु की शरण में

 ( तर्ज चाहूंगा मैं तुझे , सांझ सबेरे )  जाऊंगा मैं भी प्रभु की शरण में ,  होनेको पावन उन्हीके चरण में  कुछ भी ना और लूंगा ,  कुछ भी ना और लुंगा ॥ टेक ॥ सुख है तेरे , दुख है तेरे ,  जो कुछ होगा सबही तरे |  मिलजा एकबार , देखूं करके प्यार ।  कुछ भी ना और लूंगा ,  कुछ भी ना और लुगा ॥ १ ॥  ज्योती जगी है , दिलमें लगी है ,  बूझ न पाये , भूल ना जाये ।  यही बात , करूं साथ ,  पाऊँ बन के सार ।  कुछ भी ना और लूंगा ,  कुछ भी ना और लूंगा ॥२ ॥  मैं तू दोनों , एक ही मानो ,  तत्व पछानू, स्वासा बानू ।  झनकार , बलिहार ,  बिना बजाके तार ।  कुछ भी ना और लूंगा ,  कुछ भी ना और लूंगा ॥३ ॥  तुकडया गाये , मन उछलाये ,  यही होना है , निश्चय पाये ।  करदे , भरदे , जीवन की धार ।  कुछ भी ना और लूंगा ,  कुछ भी ना और लूंगा ॥४ ॥ 

भेद मत करना कहीं

 ( तर्ज - आकळावा प्रेमभावे श्रीहरी . )  भेद मत करना कहीं ,  सत्पंथ में , सत्संत में ।  उपदेश सबका एक ही है ,  तारनेको अन्त में ॥ टेक ॥  जो करे निन्दा गुरूकी ,  बोलकर मन मोड दे ।  बनता नहीं तुझसे अगर ,  उठजा जगा वह छोड दे ॥१ ॥  प्रेम गुरूसे जब किया ,  तब क्या समझ करके किया ?  सत्‌ग्यान ही है सत्गुरू ,  समझा नहीं तो क्या किया ? ॥२ ॥  दिल दिया सत्‌संगमें ,  तब तो परमपद पा गया ।  हर जगा गुरू - मुर्ति है ,  सत्‌शिष्य के मन भा गया ॥३ ॥  गुरूकी आज्ञा ही बडा  धन - मान है और पून है !  कहत तुकडया जान लेना ,  वही बनेगा पूर्ण है ! ॥४ ॥ 

सरल स्वभाव भी नहीं सिखा तू ,

 ( तर्ज - छंद )  सरल स्वभाव भी नहीं सिखा तू ,  किसने तुझको मंत्र दिया ?  कौन गुरू है तेरा भैया !  किसने तुझको शिष्य किया ? ॥टेक ॥  पहिले तो पूंछा जाता है  गुरू बचन नहिं टालूंगा ।  चरित्र अपना ठीक रखूंगा ,  झुठ बचन नहिं बोलूंगा  सादा जीवन , विचार ऊँचे ,  बह्मचर्यको पालूंगा ।  मदिरा - मांस और मिर्च - मसाला ,  इनसे जबाँ सम्हालूंगा ||  इतना कहना काफी होगा ,  वही शिष्य जो अमल किया ?  कौन गुरू है तेरा भैय्या !  किसने तुझको शिष्य किया ? ॥१ ॥ जबतक गुरू उपदेश न होता ,  तबतक तो सब माफ बने ।  मंत्र दिया तब मार्ग बताया ,  ग्यान ध्यानको योग्य चुने ॥  कबूल करके नहीं किया तब ,  धोखा गुरूको दिया सही ।  क्या होता है पैर पडेसे ?  भले दक्षिणा दिया नहीं ॥  पहिले दिल सब साफ चाहिये ,  गुरूसे कभु ना कपट किया ।  कौन गुरू है तेरा भैय्या !  किसने तुझको शिष्य किया ? ॥२ ॥  उत्तम दिनचर्या हो तेरी ,  चिंतन मनमें बना रहे ।  हीन दीन की सेवा करने ,  हरदम दिल तैय...

यही ग्यान भाता है हमको

 ( तर्ज - छंद )  यही ग्यान भाता है हमको ,  खल - कामीको बोध करो ।  नास्तिक - निंदक मित्र बनाकर ,  उनकी शंका दूर करो ॥ टेक ॥ जन - साधारण में घुलमिलकर ,  उनको अपना कर डालो ।  काम करो उनके सच दिलसे ,  अपनापन ये हर डालो ॥  जिनको संगत ही नहिं पायी ,  तब तो उनका दोष कहाँ ?  बचपनसे भटके विषयों में ,  फिर उनको अफसोस कहाँ ??  समझ - समझकर धर्म सिखाओ ,  फिर समझाकर शूर करो   नास्तिक - निंदक मित्र बनाकर ,  उनकी शंका दूर करो ॥१ ॥  जो जिनका हो प्रश्न ,  उन्हीको उत्तर दो अच्छे मनसे ।  वह भी साथी रहे हमारे ,  क्यों छोडोंगे अवगुण से ??  भोलेभाले उपासकोंको ,  कोई भी चेला करते ।  मूर्ख समझकर तर्कवाद से ,  मुंह फेरे मनमें डरते ॥  इसी नीतसे कितने खोये ,  इसका फेर विचार करो ।  नास्तिक - निंदक मित्र बनाकर ,  उनकी शंका दूर करो ॥ २ ॥  अछूत भी वैसेही करके ,  डाल दिये पर - धर्म गये ।  वहाँ गये और हुशार बनके ,  हमरे सरपर खडे रहे ॥  तुमरे घरमें कितने...

ठाकुर ! पेट भरा नहिं जाता

 ( तर्ज - बाबा ! सबसे मीठा बोल ) ठाकुर ! पेट भरा नहिं जाता ॥ टेक ॥  कितना भी करता खटपट मैं ,  अच्छा - बुरा और लटपट मैं ।  फिर - फिर घाटा ही आता है ,  करके अर्ज सुनाता ।  ठाकुर ! पेट भरा नहिं जाता ॥१ ॥  इसकी उसकी निंदा करता ,  अपनी बाजी आप सुधरता ।  हँसते सारे लोग हमारे ,  नाहक जूंते खाता ।  ठाकुर ! पेट भरा नहिं जाता ॥२ ॥  हांजी हांजी करके देखा ,  सेवक बनकर रहा सरीखा ।  उससे भी बदनाम हुआ मैं ,  राजी नहीं है जनता ।  ठाकुर ! पेट भरा नहिं जाता ॥३ ॥  डाकूओं के संग में घूमा ,  बार - बार बदला पैजामा ।  तुकडयादास कहे बिन तेरे ,  जीवन नहीं सुधरता  ठाकुर ! पेट भरा नहिं जाता ॥४ ॥

कवडी क्यों मांगे , मुंह फै ले ?

 ( तर्ज - बाबा ! सबसे मीठा बोल )  कवडी क्यों मांगे , मुंह फै ले ? ॥टेक ॥  आसा रखकर ग्यान सुनावे ,  सुननेवालेको डर लावे ।  असर नहीं होता श्रोतापर ,  गुरू रहे या चेले ।  कवडी क्यों माँगे ? ॥ १ ॥  जो मित्रता संतोष समझना ,  बलके ज्यादा होता कहना ।  उससे तो आदर बढता है ,  फिर वह बात समझले ।  कवडी क्यों माँगे ? ॥२ ॥  जिनके दिलमें लोभ बढा है ,  उनके दूध में पानी पड़ा है ।  बिगड गया पकवान इसीसे ,  चाहे कितना धोले ।  कवडी क्यों माँगे ? ॥ ३ ॥  ग्यान वही जो , दिल सुधरावे ,  श्रोताकी नीयत जम जावे ।  तुकड्यादास कहे श्रद्धा से ,  मन - मानस बनवाले  कवडी क्यों माँगे ? ॥ ४ ॥ 

मैं भी हूँ , मजदूर प्रभूका

 ( तर्ज छन्द )  मैं भी हूँ , मजदूर प्रभूका ,  खबर दिलाने आया हूँ ।  कुछ लाया हूँ , कुछ ले जाऊंगा ,  दोनों काम सजाया हूँ || टेक || क्या - क्या होता है कलजुगमें  और भी कितना होना है ।  फेर नतीजा क्या निकलेगा ,  प्रेमसे यही सुनाना है ।  जिनकी आँखों नीन्द चढी है ,  वो विषयोंसे लंपट है ।  जो जागे हैं ग्यान - ध्यानसे  छूट जात सब झंझट है ॥  धर्म - नीतिसे रहो जगतमें ,  तब तो मैं गुण गाया हूँ ।  कुछ लाया हूँ , कुछ ले जाऊंगा ,  दोनों काम सजाया हूँ || १ || सत् - व्यवहार , चरित्र , शुभेच्छा ,  यहि सत्युगका बाना है । जिन - जिनसे यह सध जावेगा ,  उन्हें न धोखा पाना है . ॥  घुसखोरी , लुचपत - कटूताअी ,  जिनके मनमें नाच करे ।  उनके तो दीनही नहीं ज्यादा ,  जनता उनको साफ करे ॥  सुधरो अब तो दुनियावालों !  साची राह बताया हूँ ॥१ ॥  कुछ लाया हूँ , कुछ ले जाऊंगा ,  दोनों काम सजाया हूँ ॥२ ॥  गरिब अमिरपर जल जायेगा ,  अमिर कदर नहीं ।  बखत पडेपर दोनों रोये ,  राज्य कर...

मैं बिलकुल संसारी नहीं

 ( तर्ज - छन्द )  मैं बिलकुल संसारी नहीं ,  पर व्याप न कम संसारका है ।  फुरसत पलकी नहीं जानको ,  घेरा सब परिवारका है ॥ टेक ॥  ' सबके सुख - दुख मेरे है '  ऐसा जी मेरा मान गया ।  उस कारणसे चैन नहीं है ,  एक हुआ दुसरा है नया ॥  अच्छी - बूरी रोज फिकर है ,  जैसा - जैसा जीव मिले ।  सबके दिलमें खुशी रहे ,  ऐसीही मुझमें माल चले ॥  वास्तविक मैं निर्मल हूँ ,  मुझमें प्रेम करतारका है ।  फुरसत पलकी नहीं जानको ,  घेरा सब परिवारका है ॥१ ॥  भजन पुजनमें जाता हूँ ,  तब बिना भक्तिके ख्याल नहीं ।  उनके रंग में रंग जाता जब ,  मेरी अपनी चाल नहीं ॥  जब वेदान्त कथामें बैठूं ,  मुझको लगता कमी नहीं ।  मैं हूं आतम् ब्रह्म निरामय ,  जीव ब्रह्ममें भेद नहीं ॥  परिवर्तनशिल ये नाटक जो ,  मनके रचे विकारका है ।  फुरसत पलकी नहीं जानको ,  घेरा सब परिवारका है ॥२ ॥  इतने दिन मैंने सुख पाया ,  हाथमें लीया माल नहीं ।  कितने दिन रोया दुखियोंमें ,  भरा न आँसू थाल क...

सबके कदम को मिलाके चलो

 ( तर्ज - ज्योत से ज्योत जगाते चलो . )  सबके कदम को मिलाके चलो ।  भारत की प्रीती बढाके चलो || टेक ||  छुआछूत का भेद न मानों ,  सब उद्योग हमारे ॥  दिलसे सचाई निभाते चलो ॥  भारत की ॥ १ ॥  संत और पंथ का नाहक झगडा ,  समझबूझकर छोडो ।  सबही प्रभुकी है संतानें ,  ग्यान - ध्यान चित जोडो ।  दिन - दुखियों को खिलाते चलो ||  भारत की ॥ २ ॥  चाहे होगा धर्म किसीका ,  वर्म सभी का एकी ।  मानवता ही सबने बोली ,  निंदा करो न किसीकी ॥  राष्ट्रीय एकी जगाते चलो ॥  भारत की ॥३ ॥  भारत के बालक सारे ही ,  आजादी की सेना ।  ऊँचा हो चारित्र्य सभीका ,  तुकडया का है कहना ॥  सारी मुसिबत हटाते चलो ॥  भारत की ॥४ ॥

प्रभु - भक्ती की बातें सुनाते रहूँ

 ( तर्ज - ज्योत से ज्योत जगाते चलो . )  प्रभु - भक्ती की बातें सुनाते रहूँ ।  गाते रहूँ और गँवाते रहूँ ! ॥ टेक ॥  यह दुनिया है अजब तमासा ,  आशा मनषा भारी ।  काम - क्रोध की ज्वालाओं में ,  जलते है नर - नारी ॥  मैं सत्सगत पाते रहूँ । गाते रहूँ ॥ १ ॥ जिनकी बानी अनुभव बोले ,  वहि हैं साथि हमारे ।  जिनकी स्वांसा तारी चढ़ी हो ,  सोऽहं की झनकारे ।  वही रंगमें रंग पाते रहूँ ।  गाते रहूँ ॥२ ॥  निंदा किसीकी , द्वेष किसीका ,  सुख - दुःख दोनों हारे ।  जो मिलता वह प्रेमी हमारा ,  प्रेमसे प्रेम निहारे ।  यही गुरूग्यान बहाते रहूँ ।  गाते रहूँ ॥३ ॥  यहि जीवन , मानव का है धन ,  जो चाहे फल पावे ।  तुकडयादास भरोसा उसका ,  और नहीं मन भावे ।  जनम - जनम गुण गाते रहूँ ।  गाते रहूँ ॥४ ॥ 

शिक्षा धरम की सिखाते चलो

 ( तर्ज - ज्योत से ज्योत जगाते चलो . )  शिक्षा धरम की सिखाते चलो ।  प्रेमसे बच्चे झुकाते चलो ! || टेक || नहिं तो जमाना बदल चला है ,  हाथ नहीं आवेगा ।  बच्चा जबके युवक बनेगा ,  टेढा बन जावेगा ।  संतों का जीवन दिखाते चलो ॥  प्रेमसे बच्चे ॥१ ॥  राम का ' रामायण ' तुलसी का ,  कृष्णचन्द्र की ' गीता ' ।  समरथ का है ' दासबोध '  और तुकाराम की ' गाथा ' ।  व्यसनों से उनको हटाते चलो ॥  प्रेमसे बच्चे ॥ २ ॥  देशकी सेवा , जीवन सादा ,  कष्ट करे तन - मनसे ।  प्रभु - भजनों में लगाते चलो ॥  प्रेमसे बच्चे ॥ ३ ॥  ऐसा करनेसे ही बचेगा ,  भारत भारतियों का ।  नहीं तो धरम - करम जावेगा ,  कहे तुकडया है धोखा ।  गुरूओं की बानी लिखाते चलो ॥  प्रेमसे बच्चे ॥ ४ ॥

पोथी से पोथी झगडने लगी

 ( तर्क - ज्योत से ज्योत जगाते चलो )  पोथी से पोथी झगडने लगी ।  प्रेमकी बातें बिगडने लगी ॥टेक ॥  अपने - अपने पंथके मारे ,  शांति न पायी सबने ।  बंधन है , चंदन - तालकका ,  कहाँ लगाना किसने ॥  रूढी की डोर जखडने लगी ॥  प्रेमकी बातें ॥१ ॥ मैं साधू कि तुम साधू  हो भेख बताते अपना ।  दिल तो है पापी दोनोंका ,  कहाँ सत्य का सपना ??  त्याग की निति अकडने लगी ॥  प्रेमकी बातें . ॥ २ ॥  दोनों भी पंडित हैं ग्यानी ,  आपस में कट मरते ।  कहता तुकडया खाते पीते ,  भला न किसका करते ॥  इनसे तो दुनियाँ उजडने लगी ॥  प्रेमकी बातें ॥ ३ ॥ 

शांती की बीना बजाते रहो

 (तर्ज- ज्योत से ज्योत जाते चलो . )  शांती की बीना बजाते रहो ।  प्रेमसे सबको रिझाते रहो ॥ टेक ॥  सबके घरमे भेद पड़ा है ,  आपस में नहिं बनती  बूढा,बेटा,भाई - भाई ,  इनकी पल - पल छनती  किसकी भी बिगडी बनाते रहो ॥  प्रेमसे सबको ॥१ ॥  धरम करम को भूल गये हैं ,  स्वारथ सिरपर बैठा । उनके खातिर पाप करेंगे ,  बाप रहे या बेटा ।  ग्यानसे इनको जगाते रहो ॥  प्रेमसे सबको ॥२ ॥  छूत-अछूतों की मनमानी झूठी बात चलायी ।  पीकर गांजा नशा चढाई आलसने बहकायी ।  संतों की संगत दिलाते रहो ॥  प्रेमसे सबको ॥ ३ ॥  पिछडे जनको धोका देकर ,  उनसे लाभ उठाते ।  तुकड्यादास  कहे ऐसे जन ,  जमघर पकड़े जाते ।  गीताकी बात सुनाते रहो ॥  प्रेमसे सबको ॥ ४ ॥ 

झूठोंकी संगत में जाना नहीं

 ( तर्ज ज्योत से ज्योत जगाते चलो . )  झूठोंकी संगत में जाना नहीं ,  नाहककी आफत उठाना नहीं ॥ टेक ॥  कौन कहेगा किस दिन  धोखा होगा घरके घरमें ?  निंदा किसिकी नहिं बोलो ,  बात चले पलभर में ।  बातों का इनसे ठिकाना नहीं ॥  नाहककी . ॥१ ॥  सच्चे भी होते हैं पागल ,  झूठोंकी संगत से ।  गुंडे दंडेवाले रहते ,  हरदम ही पंगत से ।  कहके भि इनको बताना नहीं ॥  नाहककी ॥२ ॥  दूरही से वंदन दुर्जनको ,  समज - उमजकर करना ।  तुकडयादास कहे मुंह फेरो ,  अपनी राह सुधरना ।  इनसे तो निपटो , लजाना नहीं ॥  नाहककी . ॥ ३ ॥

मानवता ही धर्म का बाना

 ( तर्ज : आया हूँ दरबार तुम्हारे )  मानवता ही धर्म का बाना || टेक ||  अपने सुखकी चाह सभीको ,  यह तो मोह पशू - पक्षीको  परहित करे सो समझ सुजाना |  मानवता ॥ १ ॥  सबके साथ रहे मिलजुलके ,  नहिं अभिमान करे कभु भुलके ।  खलके वचन सहे सुन काना |  मानवता ॥ २ ॥  अपना कर्म - धर्म नहीं छोड़े ,  चोरी - जारीमें मन नहिं मोडे ।  सेवाही है मनका ठिकाना |  मानवता ॥३ ॥  सहज स्वभाव सबनसे प्रीति ,  नीच - ऊँच नहिं मनपर बीती ।  कहे तुकडया , वही निर्मल ग्याना । मानवता ॥४ ॥ 

बाबा ! सबसे बर्तो प्यार

 ( तर्ज बाबा ! सबसे मीठा बोल . ) बाबा ! सबसे बर्तो प्यार || टेक || सारा मानव प्रभुके घरका ,  कोई नहीं है अपने सरिखा ।  वही नचावे नस - नस सबकी ,  दूजा कौन अधार ? ॥ बाबा ॥ १ ॥  अपने बलपर हम सब करते ,  तब काहेको बिचमें मरते ?  दवा - दारू लेके नहीं सुधरे ,  लाखों की है पुकार ! ॥ बाबा ॥ २ ॥  अपनी बुद्धी सब कोई छोडो ,  प्रभुनाम में संगति जोडो ।  तुकड्यादास कहे तब समझो ,  नैया तरी मँझधार ॥ बाबा ॥ ३ ॥

प्रभु का पक्ष ही है तारन का

 ( तर्ज - राम भजन सबसे अति प्यारा . )  प्रभु का पक्ष ही है तारन का ।  काम नहीं औरन का ! || टेक ||  जो उनपर करता है प्रीती ।  उसकी तो सुधरी है मुक्ति ।  यहाँ है जग बाहीर प्रभु - किर्ती ,  मार्ग भी उद्धारन का ॥ १ ॥  पर जिसने हो बैर भी साधा ।  प्रभु नामकी समझी बाधा ।  उसके साथ युद्ध भी करके ,  किया है अपने मनका ॥२ ॥  जूठे बेर चबाँकर तारे ।  रावण को मारे और तारे ।  तुकड्यादास कहे हो जिसमें ,  ध्यास उन्हीं चरणन का ॥३ ॥ 

अपनी लाज किसीसे बोलूं

 ( तर्ज राम भजन सबसे अति प्यारा . )  अपनी लाज किसीसे बोलूं ?  जीवन - धन सुधरालूं ? ॥ टेक ॥  कौन सुने दुनियाँ में कोई ।  सब अपनी रोते अपनाई ।  ख्याल किसीको है पर हितका ,  तो दुख गठडी खोलूँ ? || १ || कहना भी तो पाप ही होता ।  कहदूँ तो खाऊँगा गोता ।  सुननेवाला मतलब साधे ,  बिना बैल का कोल्हू ? ॥ २ ॥  तुकडयादास कहे संतनको ।  तुम्ही समझावोगे इस मनको ।  प्रभुके पास अर्ज है मेरी ,  कैसो मनको सम्हालूं ? ॥ ३ ॥ 

दिलकी पुकारोंसे आवोगे क्या ?

 ( तर्ज - ज्योत से ज्योत जगाते चलो . )  दिलकी पुकारोंसे आवोगे क्या ?  प्रेमसे दर्शन दिखाओगे क्या ? ॥ टेक ॥  भूख लगी है उस दर्शन की ,  जिसने बंसी बजाई ।  मोह लियो है मन गोपिन के ,  सुधबुध सब बिसराई ।  हमरी भी प्यास बुझाओगे क्या ?  ॥प्रेमसे .॥ १ ॥  उन गोपालों के संग खेले ,  गौयें जात चरायी ।  छाँछ पे नाच नचाई मोहन ,  तूने लाज भुलायी ।  वे क्षण फिर फिर लावोगे क्या ? ॥  प्रेमसे दर्शन ॥ २ ॥  भारत के संकट में तूने ,  चक्र सुदर्शन फेका ।  द्रुपद - सुताकी लाज बचायी ,  टाल दिया सब धोखा ।  अर्जुन - से बीर भिजवावोगे क्या ? ॥  प्रेमसे दर्शन ॥ ३ ॥  आज की हालत सबसे बूरी ,  तेरा नाम न आता ।  धरम करमको खो बैठे हम ,  तुकडयादास सुनाता ।  डूबेगी नांव तराओगे क्या ? ॥  प्रेमसे दर्शन ॥४ ॥ 

ऐसो ग्यान हुआ बिन कामी

 ( तर्ज आया हूं दरबार तुम्हारे . )  ऐसो ग्यान हुआ बिन कामी ॥ टेक ॥  अँखियनसे देखा परदारा ।  परधन पीछे हाथ हमारा ।  यह नहीं ग्यान है ,  बात हरामी ॥ ऐसो . ॥ १ ॥  पाँव चले करनेको चोरी ।  कान सुने निन्दा बलजोरी ।  यह तो मनकी ,  नमक गुलामी ॥ऐसो ॥ २ ॥  मुंह तो गाली बके तज नीती ।  नाक सुंघे विषयनकी प्रीती  यह सब राह ,  नर्क की गामी ॥ ऐसो . ॥ ३ ॥  ग्यान वही सत्संगत पावे ,  आतम रूप नजरमें आवे ।  तुकडया कहे ,  मन हो प्रभु नामी ॥ ४ ॥ 

मानव भजनशील है प्राणी

 ( तर्ज राम भजन अति प्यारा . )  मानव भजनशील है प्राणी ।  धर्म गुणखाणी ॥ मानव .... ॥टेक ॥  पर नहीं ग्यान - स्थानको जाने ,  करके हुआ अभिमानी ।  किसका भजन गया विषयोंमें ,  पाया दुख - हैरानी ॥१ ॥  किसने भजन किया है धनका ,  लगी पिछू शैतानी ।  किसको भजन लगा सत्ता का ,  लगी द्वेष की बानी ॥२ ॥  किसने भजन किया मंदर में ,  हुआ पंथ का प्रेमी ।  जैसा अंधा भागे पथसे ,  भटके अनघड गामी ॥३ ॥  तुकडयादास ग्यान निजरूपका ,  वोही भजन निर्वाणी ।  और भजन है जनमका द्वारा ,  प्रभू नाम सत्वाणी ॥ ४ ॥ 

हम सेवक हर्षित है दिल से

  स्वागत गीत ( तर्ज - भवसागर तारण कारण है ) हम सेवक हर्षित है दिल से , करनेको स्वागत आये है । जिनकी थी आस भरी दिलमें , उनके दर्शन कर पाये है ॥ टेक ॥ यश गाते थे तुम्हरा जगमें , सुनते थे नाम भी जाहिर है । वह मंगल समय मिला हमको , हम दर्शनलाभ उठाये है ॥ १ ॥ अब सूतकी ( फूलको )  माल पिन्हायेंगे ,  दिल भरके विनय सुनायेंगे | उपदेश करो हमको अब तो , अपनी रग रग फैलाये है ॥ २ ॥ हम जैसे वीर जवानो को , तुम्हरा हरदम आशीश रहे । आजाद रहे भारत हमरा , इस कारण दिल ललचाये है ॥ ३ ॥

स्टालीन को श्रद्धांजलि

स्टालीन को श्रद्धांजलि  समता की रोशनी का ,  एक दिव्य उजारा था ।  नवनिर्मिती के बलका  युवकोंका सहारा था ॥  एक उच्च जगत की वह  दृष्टीका सितारा था ।  चाहे कोई हो प्यारे ,  पर तू भी नजारा था ।  छोटेसे फुलसे बढकर ,  इतनाभी ऊँच उठना  आसान नहीं इबको ,  उतनी मजलपे चढना ||  टकराये पर्वतोंसे ,  फिरभी पीछे न हटना ।  बहादूर था तू तो स्टालिन !  पलमें हुआ है सपना ||  श्रीराम कृष्ण जिसके  कारण से लड़े खेले  शिवराय , महाराणा , जिसके  बचपन पे तोले ॥  जनता की आह पर तो ,  तूने भी बोल बोले ।  दुनिया की कदर करने ,  दुनियाकी आँख खोले ॥  अपने लिये जो करता ,  तो शत्रु कहा जाता |  सबके लिये किया है  करके भला कहाता ॥  जो कुछ भी शक्ति थी  सब इन्सानको बहाता ।  जितना दिया है तूने ,  बिरलाही कोई देता ||  ऐ साथियों ! न डरना ,  फाटक तो जा खुले है ।  सोचो वहीं चलो तुम ,  जिस राहपर चले है ॥  जहाँतक के हो सकेगा ,  तो शान्ति लो भले है ...

बडी कठिन थी स्वराज मंजिल

 ( तर्ज - छंद )  बडी कठिन थी स्वराज मंजिल ,  चढ़ बैठे भारतवासी ।  गये फिरंगी छोडके सत्ता ,  अब हालत आगे कैसी ॥ टेक ॥  प्रजातंत्र यह देश हमारा ,  पक्षतंत्र धुमधाम करे ।  उसीके मारे मचा शोर यह ,  सरगर्मी क्या काम करे ॥  किसका कहना मानके चलना ,  आपसमें बदनाम करे ।  देहातों में जाय न कोई ,  बातों से हैरान करे ।।  ऐसे कहते कई साल यह ,  बीत गये तंगो सोसी ।  आगे तो आराम मिले ,  हम रखते अभिलाषा ऐसी ॥  गये ० ॥१ ॥  बडी मुसीबत थी भारत पर ,  ' पाक ' ने दिल हैरान किया ।  अभी न शांति मिली ,  लगा दम झंझटका ही काम किया ||  निसर्ग ने रंग फैला करके ,  हमपर रोडा डाल दिया ।  कहीं तो फसले बहा दिया  कहि पानी बिन दुष्काल किया ||  अनाज के बटवारे में भी ,  भई गलतियाँ हैं खासी ।  किसान के दिल चमक गये ,  कहे स्वराज है कि है फाँसी ॥ २ ॥ देशभक्त को घेर लिया है  माया मोह प्रलोभन ने ।  क्या करते गरिबों की सेवा ,  सब घर भर लीये उसने ॥  मुखे थे जब नही थ...

देशके प्यारे वीर शहीदो

  ( तर्ज - छंद ) देशके प्यारे वीर शहीदो !  तुमको करूं प्रणाम ।  तुम्हरे ही कुर्बानी से  यह उजला देश तमाम || टेक || शत्रूने तो नीति छोडकर ,  हमपर मारा वार ।  तुम्हरी कुर्बानी से अबके ,  शत्रू बने नादार || १ ||  याद रहेगी पाकिस्तानको ,  हम कैसे है वीर |  मर मिटनेको जरा न डरते ,  भारत के रणधीर || २ ||  धन्य तुम्हारी माता जिसने ,  तुमको जन्म दिलाये ।  देशके खातिर बलि वेदीपर ,  तुमको दिया चढाये || ३ ||  जुग जुग जीये कीर्ति तुम्हारी ,  भारत के भंडार ।  रंग चढाया इतिहासको ,  पढले लाखों बार || ४ ||  जाति - पातिका , धर्म - पक्ष का ,  नहीं बनाया भेद ।  भारत माँ के पुत्र समझकर ,  किया शत्रुको छेद || ५ ||  तुम्हरे जैसे लाखों है  यह देश पुकारे आज ।  आगे भी इस भारत माँ की ,  सदा बचेगी लाज ॥६ ॥  तनसे , मनसे , धनसे , सारा ,  देश हुआ हुशियार ।   तुम्हरे पीछे कोट - कोट ये ,  बीर खड़े तैय्यार ॥७ ॥  क्या मजाल है भारत में कोई  घस जावेगा काल...