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फेब्रुवारी, २०२३ पासूनच्या पोेस्ट दाखवत आहे

अरे मन ! नित रह अंतर जागा

अरे मन ! नित रह अंतर जागा ।  तोड जगतका धागा || टेक || जहँ जहँ नैन पडे सब तेरे ,  मान ' प्रभू - संग लागा ' ।  तोड़ उपाध काम - विषयन के ,  रहे सभीसे जागा || १ || अन्तर - तार कभू नहि छोडे ,  चढे भजनके रंगा ।  सुख - दुःखनको मार तड़ाखे ,  रहे स्वरुपके संगा || २ || नाभिकमलसे उठि एक ज्वाला ,  बाहरकी गत त्यागा ।  उसिसे ध्यान चढ़ाले अपना  काम न जावे भंगा || ३ || दृढ़ निश्चय कर , ध्यास लगाकर ,  मत भूले किसि अंगा ।  तुकड्यादास तभी कुछ साधे ,  कालनका डर भागा ॥ ४ ॥ 

अरे मन ! साथ हमारे चलना ।

अरे मन ! साथ हमारे चलना ।  सदा खुशीमों डुलना ॥ टेक ॥  कभु तो गादी राज मिलत है ,  कबहु फकीरी धरना ।  कभु तो दूध मलीदा खावत ,  कभु घर घर लिख मँगना ॥ १ ॥  इक दिन शाल दुशाला शोभत ,  कोई दिन नंगा रहना ।  कभु तो बैठे हाथी घोडा ,  कभु बन - बनमों घुमना ॥ २ ॥  कभु शोमत गल मोतनमाला ,  कभु तुलसीदल धरना |  कभु तो अंग भबूत बिराजे ,  अपनी तनमों मरना ॥ ३ ॥  तुकड्यादास कहे मनभाई !  सदा असंगी रहना ।  जो पावे सो प्रेम बरत कर ,  आखिर गुरुपद झुलना  || ४ ||

मो मन ! अपने पिया घर जाना

मो मन ! अपने पिया घर जाना ।  जहाँ सुंदर महल नगीना || टेक || मेरु - दंड गोल्हाट औटपिठ ,  रेल बनी उर झीना ।  विवेकजी तो टिकट कटावे ,  स्वॉस रेल अलबीना || १ || पहला खास मुकाम जहाँपर ,  सुफेद बँगला कीन्हा ।  उस बंगले में रहत जमाना ,  मुझको वहाँ नहि जाना ॥ २ ॥  दूज मुकाम लाल परदेका ,  लालहि लाल निशाना |  जो मन माने वह फल खावे ,  स्वप्नरूप दरसाना ॥ ३ ॥  तिसरा खास मुकामा लाग्यो ,  शाम शाम रँग चीन्हा ।  अनहत बाज चौघड़ा बाजे ,  नाँदे बेद पुराना || ४ || टुटे ताल खुले दरवाजा ,  चौथा फेर ठिकाना इधर उधर दोनों सम जानो ,  खालक खलकत ठाना ॥ ५ ॥  छूटी रेल टुटा जँक्शनभी पहुँचे जाय बिमाना ।  जगमग ज्योत कोट भानूसम चढ़ा रंग मनमाना ॥ ६ ॥  मस्त सदा अलमस्त रहुँ फिर ,  जहँ माने वह जाना ।  तुकड्यादास पिया में जाऊँ ,  नहि फिर नाम - निशाना ॥ ७ ॥  

रे मन ! मतकर सहबत झूठी

रे मन ! मतकर सहबत झूठी ।  नित पो गमकी बुटी || टेक || आठहु जाम प्रभु - सुमरण कर ,  तोड कामको चटी ।  निजानंदमें मस्त रहे जब ,  मिले ब्रह्मरस - घूंटी ॥ १ ॥  जब जब बिपत पडे तनहूपे ,  तब तब जागो ऊठी ।  ज्ञानशास्त्रको पास कराकर ,  तोड कालकी खूंटी ॥ २ ॥  तुकड्यादास कहे निश्चय कर ,  तबही आशा छूटी ।  आशा - मनशा जबलग घरमों ,  तबलग द्रोहकी कूटी ॥ ३ ॥

रे मन कर अब सोच जरासा

रे मन कर अब सोच जरासा ।  क्यों करता भ्रम - असा || टेक || तम - संसार हारका साथ ,  मत डारे गल फाँसा ।  राम - भजन सम कोउ न प्यारा ,  सबकी आस निरासा ॥१ ॥  आठहु जाम मुले मत तिनको ,  राखे वृत्ति उदासा ।  सत्संगत - बरखा - झर माँही ,  हरदम हो जा झाँसा ॥ २ ॥  जो करना नहि करत ,  अकारण खोवत अपनी स्वासा ।  अंतःकाल होवत दुख भारी ,  होत शरिरको नासा ॥ ३ ॥  क्या किसकी जिन्दगी टिक पायो ?  तोहे होत उल्हासा |  तुकड्यादास कहे अपना धर ,  इक गुरु - नाम निवासा ॥ ४ ॥  

मन ! तू खूब पढी है पोथी

मन ! तू खूब पढी है पोथी ।  पलक नहीं मजबूती || टेक || कभी तो ध्यानसमाधि लगावे ,  नीयत परघर रोती ।  कभी तो राजा बनके घुमे ,  कभी खाता है जू ती ॥ १ ॥  कभी तो ज्ञान बतावत पूरा ,  अक्कल परधन छूती ।  कभी तो मर्द बने फिरता है ,  कमी औरत घरगूती ॥ २ ॥  तुकड्यादास कहे खुब समझा ,  तेरी अक्ल सबूती ।  मुख खराब दिखला मत हमको ,  मारूँ ज्ञानकी तूती ॥ ३ ॥ 

रे मन ! कहाँतक तोरे संग दौरुँ

रे मन ! कहाँतक तोरे संग दौरुँ ।  कामधाम सब छोरूँ || टेक ||  करत एक अरु कहत एक है ,  किसबिध तुझको हेरूँ ।  अपने घट पलपरभी न ठहुरत ,  राह कैंसि यह मोरूँ ॥ १ ॥  रामनाम कबहू नहि गावे ,  कहता सब ' धन - जोरू ' ।  आशा मनशा नीच रखे सब ,  भोगत कष्ट अघोरु ॥ २ ॥  सत्संगतमों स्थिर नहि रहता  भटके जैसो मौरू ।  भौर भौर भटकावत आखिर ,  भोगे पतन अपारू ॥ ३ ॥  मान मान अब छोड झूठ सब ,  धर गुरु - चरण अधारू ।  तुकड्यादास तुझे समझावे ,  फेर जनम नहि तोरू ॥ ४ ॥

रे मन ! रामनाम मत भूले

रे मन ! रामनाम मत भूले ।  क्यों परवेश ढँढोले || टेक || यहांपर कौन तुम्हारा वाली ,  सब स्वारथ - मतवाले ।  सपनेसम जिन्दगी पल मासे ,  फिर तो भगे निराले ॥ १ ॥  बारबार नहि वक्त मिले  बड़ भाग मनुज - तन खुले ।  अब तो साध साधुकी रीती ,  नहि तो जमघर झूले ॥ २ ॥  यह संसार मोहकी मदिरा ,  बिनस जात पल छूले ।  तुकड्यादास कहे करनी कर ,  तो सब देह उजाले ॥ ३ ॥  

मन रे ! बहुरा क्यों फिरता है

मन रे ! बहुरा क्यों फिरता है ।  फेर फेर गिरता है ||टेक || यह संसार सपन की माया ,  जान - बूझ परता है ।  सुखकी आस धरी पल भाई !  आखिर दुख भरता है || १ ||  अपनी तान तानसे मारे आय वक्त डरता है नाहक धूम घुमावत काया जमके घर परता है || २ || सत्‌संगत बिन ज्ञान न पावे क्यो न कहाँ मरता है तुकड्यादास कहे क्या कहना क्यो अपनी करता है || ३ ||

मन ! मानरे कुछ मानरे

 मन ! मानरे कुछ मानरे ,  अब तो समझकर मान रे || टेक ||  क्यों भगा बेभान रे ,  भूला पडा अनुजान रे ।  आखिर गती नादान रे ,  जम - घर पडेगा प्राण रे ॥ १ ॥  नाहक मारे तान रे ,  झूठा करे अभिमान रे इस कालके दरम्मान रे ' क्यों होरहा हैरान रे ॥ २ ॥  भोगता आसान रे ,  लालच बुरी बैमान रे ।  क्या छुपे है कान रे ,  मन ! क्यों करे अब लान रे ॥ ३ ॥  धर गुरू - अभिमान रे ,  उसिका किया कर ध्यान रे ।  तुकडया कहे अजमान रे ,  टूटे ये जन्म तुफान रे ॥ ४ ॥ 

अव्वलो या आखरीमें

अव्वलो या आखरीमें ,  क्या खुदाको जात थी ?  थी नहीं अस्माँ - जमीं ,  सब गुमपनेकी बात थी || टेक || क्या हुआ क्या ना हुआ ,  इबलीशके सब हाथ थी ।  इबलीशसे दुनिया करी  , इबलीशसे बरबाद थी ||१||  थी नहीं मसजीद , देवल ,  था भरा भरपूर वह ,  सब एक नुरी साथ थी  || २ || था नहीं शंकर औ ब्रह्मा  विष्णुकी नहि बात थी ।  था भरा चैतन्यघन ,  सब बादमें आबाद थी  || ३ ||  आई किधर जाती किधर ,  अँधियारनकी बात थी ।  कहत तुकड्या कुछ नहीं ,  इक नामकी हुजरात थी ॥ ४ ।।

मोहनी मूरत तुम्हारी

मोहनी मूरत तुम्हारी ,  कब दिखादोगे हमें ?  बीचका परदा हटाने ,  कब सिखावोगे हमें ? । टेक ॥  भुलमें भटके हुए हैं ,  यार ! तेरी राहसे  यादमे तेरी हमेशा ,  कब झुकादोगे हमे || १ ||   छा रही ज्वानी नजर में ,  और दुनियादारकी । झूठियों के सहबतोंसे ,  कब टिकादोगे हमें ? ॥ २ ॥  कुछ घडी यह याद है ,  फिर याद भी बरबाद है ।  बरबादिसे आबादकीपर ,  कब टिकादोगे हमें ? ॥ ३ ॥  कल कहूँ या ना कहूँ ,  अब वक्त यह ना खोइये ।  दास तुकड्याकी सुधी ले ,  कब जगादोगे हमें ? ॥ ४ ॥ ॥ 

खैचलू तसबीर - परदी यार

खैचलू तसबीर - परदी यार !  तेरे नूरकी ।   क्या बिठाऊँ दिल में अपने दिलतसल मशहुरकी || टेक || क्या छबीले नैन हैं ,  मनको नहीं कुछ चैन है ,  धुंधी चढी उस सूरकी ॥ १ ॥  साथ में गौएँ लगी ,  काली कमलिया ओढ ली ।  तीर जमुनाके खड़ा ,  खूली लहर उस नीरकी ॥  हर जगह मौजूद होकर ,  आपही आगे खडा ।  क्या बदरिया छारही ,  झलके सुरत उस नूरकी ॥ ३ ॥  मोहनी मूरत तेरी ,  कैसे छिपाऊँ किस जगह ?  याद कर एक दीनकी ,  तेरी छटा मामूरकी ॥ ४ ॥  वक्त क्या वह चलगया है ,  ध्यान क्या वह ढलगया ?  प्रीतिका क्या बल गया ,  फिरती न आँख हुजूरकी ॥ ५ ॥  कहत तुकड्या आसरा ,  तेरे बिना अब ना दुजा ।  जो गयी सो चलगयी ,  अब राख जो मशहूरकी ॥ ६ ॥ 

दिल मेरा राजू नहीं यह

दिल मेरा राजू नहीं यह  शर्म धरने के लिये || टेक || गोत हो या पूत हो ,  धनदार हो या यार हो ।  इश्क मेरा श्यामसे ,  वह भर्म हरने के लिये ॥ १ ॥  मान हो अपमान हो ,  नादान हो बलवान हो ।  है नहीं धोखा कोई ,  यह कर्म करने के लिये ॥ २ ॥  नेमकी जरुरत नहीं ,  वह श्याम - जादू के बिना  मन मेरा राजू रहे ,  यह मर्म भरने के लिये ॥ ३ ॥  होगयी दुनिया अलग ,  हमको न पर्बा जानलो |  आस तुकड्याकी यही है ,  नर्म मरने के लिये ॥ ४ ॥

और तो सम्हलें सभी

और तो सम्हलें सभी ,  पर वह सम्हलता आरहा ।  वक्त में हुशियार होकर ,  नाम तेरा गा रहा ||धृ.||  वक्तही होती कठिन ,  इस काम के जंजालकी ।  एक पलकी जीत ले ,  सोही परमपद पारहा ॥ १॥  लाख पल सब फोल हैं ,  पर एक पल अनमोल है ।  चेतता जागा भया ,  हकको नहीं गमवा रहा ॥ २॥  उर्वशीके संगमें ,  पलको सम्हाला था जिने ।  सोहि तो कारण हुआ ,  गीता हमें सुनवा रहा ॥ ३ ॥  और तो तीरे सभी ,  जल - बूंद ना जब थाल में ।  पर वही तीरा गडी ,  भर लाटमें तिर जा रहा ॥ ४ ॥  कहत तुकड्या नामका - बाजार  होता हर जगह |  पर वही प्रभु गा रहा ,  एक अंतका पल पा रहा ॥ ५ ॥

क्या छुपा या डुब गया था

क्या छुपा या डुब गया था ,  हिंदुओंका खानशा ?  बर करारोंसे पलट होता  भया इस्लामशा ॥ टेक ||  तोड़कर बुतखाँ कई  मसजीद किन्ही जायकर |  क्या लगी थी आँख अपनी ,  या नहीं थे शानशा ? ॥ १ ॥  लाखहूको पूजके फिरमी  न होती शांतता ।  डारकर नाडा गले ,  लेते सवारी की नशा ॥ २ ॥  गर पीर थे महंमद वली ,  क्या दुश्मनी करने कहा ?  गर दे चुके इल्लामको ,  तो माँगते क्यों भीकशा ? ॥ ३ ॥  कर्मके बिन इस जगतमें ,  कौन देनेवार है ? |  गर कर्मही देता समी ,  तो क्यों पहरते अवदशा ? ॥ ४ ॥  याद रखकर खोजलो ,  मेरा प्रमू सबही जगह  कहत तुकड्या बिन भजे ,  कोऊ न बनता बादशा ॥ ५ ॥ 

दे दिजीये आगिया

दे दिजीये आगिया ,  हम अपने घर जाते रहे || टेक || बहुत दिन बीते गये ,  इन आयकर नगरीनमें ।  बस माफ हो रहना मेरा ,  तुम नामको पाते रहें || १ || आजतक मालुम न था ,  हमको हमारा भी पता ।  पायकर तुम्हरे चरण ,  अब भंगको पीते रहें ॥ २ ॥  छोडकर ऐसी मजा ,  हम लौट कैसे जायेंगे ?  आपकी किरपा रहे ,  ऐसे मजे आते रहे ॥ ३ ॥  जन्नती द्वारा खुला ,  अब आस है ना दूसरी ।  दास तुकडचाको दिजे बर ,  चरणको छूते रहें ॥ ४ ॥

दिन - जमाने खूब बदले

दिन - जमाने खूब बदले ,  रूँह बदला ही नहीं ॥ टेक ॥  यूग चारों फेर बदले ,  रूँह बदलाही नहीं ॥ १ ॥  उम्र बदले , राज बदले ,  काज बदले संगसे ।  मौत के भी दौर बदले ,  रूँह बदलाही नहीं ॥ २ ॥  जन्म बदले , देह बदले ,  रंग बदले , नूरके ।  शशि - रवीके फेर बदले ,  रूँह बदलाही नहीं ॥ ३ ॥ ||  नर्क बदले , स्वर्ग बदले ,  आस बदले , हरघडी ।  ज्ञानके बिन सार बदले ,  रूँह बदलाहीं नहीं ॥ ४ ॥  स्वरुपका उजियार है ,  वहँ रूँहका क्या पार है ।  कहता तुकड्या तार है ,  तो रूँह बदलाही नहीं ॥ ५ ॥ 

दिलभरम जबतक न छूटा

दिलभरम जबतक न छूटा ,  तबतलक आना रहा || टेक || चाहे करलो दानभी ,  अजि ! या करो नादानभी ।  जा फिरो मनमानभी ,  आना तहाँ जाना रहा ॥ १ ॥  शास्त्रभी पढ़ते रहो ,  या मूखसे ' ईश्वर ' कहो ।  कुछ नहीं बनता जहाँतक  दिल - कपट घटमें रहा ॥ २ ॥  भेख लो या जोग लो ,  चाहे बसो बन जायकर ।  सत्यको जाना नहीं जी !  तबतक भोना रहा ॥ ३ ॥  आत्मज्योत लगी जहाँ ,  नहि दूसरा नज़रीनमें |  कहत तुकड्या जब टुटे ,  मरना न जीना क्या रहा || ४ || 

अर्ज है मेरी तुम्हें

अर्ज है मेरी तुम्हें ,  दिलका कपट खोलो जरा || टेक ||  क्या ये बंधन ले लिये ,  जगमें पलट आजानेके ।  हो अलग सबसे अभी ,  फिर देखलो तनमें हिरा ॥ १ ॥ कबतलक यह घूमना ,  जगको सफर अधिनमे  जानलो अपना स्वरुप ,  जब नर तरा जीता - मरा ।  छोडदो यह कामना दिलको ,  दुजा कोई नहीं ।  क्या मरे मरते रहें ,  सब एकही जगमे भरा || ३ || साधना दिलमें धरो ,  पूरी नहीं होती  कहत तुकड्या सद्गुरूके ,  चरणका धर आसरा || ४ ||

है नहीं जिसमें कदर

है नहीं जिसमें कदर ,  वह नर नहीं जनवर खड़ा ॥ टेक ॥  मनुज तन यह पायके ,  दिलमें कपट जिसके रहा ।  क्या कहूँ , उसको अटक  जमराज से मिलता बड़ा ॥ १ ॥  लूटकर जिंदगी किया ,  नौकर बना धन - मालका |  छोडंकर तनकी लंगोटी ,  कालके घर जा पड़ा ॥ २ ॥  काहेको यह धन दिया ,  नहि दीनको पाला कहीं ।  मौतमें सब छोडकर ,  फिर नर्कके घर जा अड़ा ॥ ३ ॥  संतको पूजा नहीं ,  ईश्वर न दिलमें भर लिया ।  कहत तुकड्या ऐसियोंको ,  दूसरे डरना पड़ा ॥ ४ ॥ 

प्यार करना ईशका

प्यार करना ईशका ,  जो हर जनम साथी रहे ॥ टेक ॥  चोरके संगसे फंसे ,  कैएक जोगी बादशा ।  संगती ऐसी करो जो ,  अंशसे जाती रहे ॥ १ ॥  बाप , बंधु , मात , दारा ,  पलभरेमें जायेंगे ।  कुछ नहीं साथो रखे ,  फिर मौतमें माती रहे ॥ २ ॥  धन - खजाना पलभरेका ,  अंतमें नहि आयगा |  साथ कर ईश्वर - भरोसा ,  छाँव सिर आती रहे ॥ ३ ॥  छोड़ संगत चोरकी ,  जो लूटने पैदा हुए थर ॥ १ ॥  दास तुकड्या सद्गुरू के ,  चरणका नाती रहे ॥ ४ ॥ 

खोपिया होकर मजा देखे

खोपिया होकर मजा देखे ,  जगत - परिवारकी || टेक ॥  खुब तेरी लीला बनी है ,  साजसे बाहर भितर |  सब जगह कुदरत भराकर ,  ले लिया नादारकी ।। १ ।।  क्या तमासे हो रहे ,  तेरे जिगर - आधारसे ।  मरना - जीना कर दिया ,  माया करे करतारकी ॥ २ ॥  दूर सब परिवारसे  बैठा अजर गोदीहिमें | भक्तको दर्शन दिलाकर ,  दे रहा आधारकी ॥ ३ ॥  मायाके आधीन हैं  जोगी - जुमत अरु बादशाह ।  दास तुकड्या आस लेकर ,  कर रहा भवपार की ॥ ४ ॥

क्या खुदा तुझसे जुदा , प्यारे

क्या खुदा तुझसे जुदा , प्यारे !  जरा खोलो नजर || टेक ||  ढूंढ़ते साधू हिमाचल  बन बनोंमें जायके ।  पासका हीरा भुला और  पूजते जाके पत्थर ॥ १ ॥  पुस्तकों में क्या भरा ?  पढते मरे पंडीतभी लाखमें बिरला कोई ,  अमृत पीवे जा अधर ॥ २ ॥  संत - संगत के बिना ,  कोई न देखे खासको ।  धर चरण उसके तभी ,  आती उसे तेरी कदर ॥ ३ ॥  नींद में क्यों भूलते ,  अंधे बने मायीन में ।  दास तुकड्या सद्गुरू के ,  चरणपे धरता यह सर ॥ ४ ॥ 

हर जगहकी रोशनी में

हर जगहकी रोशनी में  दिलभुलैय्या तुम्हीं तो हो ॥ टेक ॥  अगर तुम्हारी छटा न होती ,  तो सारि खिलकत मरी हुई थी ।  कहाँ छुपाते हो हुस्न अपना ,  चेत - चितैय्या तुम्हीं तो हो ॥ १॥  तुम्हीं हो देवल , तुम्हीं हो मसजिद ,  तुम्ही हो मूरत , तुम्हीं पुजारी ।  ढँकाया परदा करम करमका ,  सबर शुकरिया तुम्हीं तो हो । २ ॥  तुम्हारि कुदरतहि छा रही है ,  वह पूरे आशक को पा रही है ।  नहीं तो योंही दफा रही है ,  झूल - झुलैय्या तुम्हीं तो हो ॥३ ॥  कहाँपे पर्वत , कहाँ समुंदर ,  कहाँपे बादल , कहाँ फँवारे ।  लाखो घटाता लाखो बढाता ,  खेल खिलैय्या तुम्हीं तो हो || ४ || कहाँपे लैला , कहांपे मजनू ,  कहाँ बादशा , कहाँ फकीरा ।  कहाँपे आशक कहाँपे माशुक ,  प्रेम पिलैय्या तुम्हीं तो हो ॥ ५ ॥  वह दास तुकड्याको आस भारी ,  न नाम तेरा भुलूं मुरारी ! |  नशा चढादो हुजूर ! पूरी ,  डोल डुलेय्या तुम्हीं तो हो ॥६ ॥   

खड़ा हो प्यारे ! क्या सोया रे

खड़ा हो प्यारे ! क्या सोया रे ,  सोनेसे बदनाम हुआ || टेक || मकानको तो आग लगी है ,  राम - जगहमें काम हुआ ।  क्यों जलता है इस झूठे जगमें ,  कमी नहीं आराम हुआ ॥ १ ॥  सोते सोते राज गमाया ,  दीन गया अब शाम हुआ ।  मरनकी गोली चलेगी तुझपर ,  जमके घर बेफाम हुआ ॥ २ ॥ यह दुनिया तो रंग रंगीली इसके फंदेमे भ्राम हुआ है नही कुछभी भरोसा यह न हुआ फिर वह न हुआ || ३ || मानले कहना समझकर सोना यह रोनाहि हुआ कहत तुकड्या यह सोच करले राम भजो निजधाम हुआ || ४ ||

प्रेम प्रभूते लगा पिया रे

प्रेम प्रभूते लगा पिया रे !  काहेको गोते खात रे ?  प्रेमबिना तोहे चैन न पावे ,  झूठ जगतके नात रे || टेक ||  भरपुर - धार अपार बहुत है ,  आखिर बहते जात रे ।  भोगत जन्ममरण दुखभारा ,  आखिर मरघट पात रे || १ ||  काहेको साधत साधन आसन ,  बिकट पडी यह मात रे ।  राम - भजनमें ध्यान लगादे ,  टूटे यह अधःपात रे ॥ २ ॥  कलजुगमे महिमा नहि दुसरी ,  संतबचन यह गात रे ।  छोड़ भरोसा झूडे जगतका ,  फीर अकेला जात रे || ३ ||  संतसंगतबिन प्रेम न मिलता ,  जा गुरुचरण नमात रे ।  तुकड्यादास गुरुपद जाने ,  गुरु तोड भव- ताँत रे ॥ ४ ॥