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जानेवारी, २०२३ पासूनच्या पोेस्ट दाखवत आहे

हमारा प्यारा हमें जगतसे

हमारा प्यारा हमें जगतसे ,  अखेर पालनवार है ।  पूरा भरोसा लिया है दिलमें ,  यही भजनका सार है ॥ टेक ॥  न हमको करना कवीसरीको ,  न ज्ञान हममें यार ! है ।  बने है बंदे मगजके पूरे ,  हुए जगतसे न्यार है ॥ १ ॥ न हम समझते किसीकी चर्चा ,  खुशीसे बेडा पार है ।  न हम लड़ेंगे किसीसे बातें ,  सदा धरे निर्धार हैं || २ || न हम पढेंगे किताब पोथी ,  गुरुचरणपर प्यार है ।  रखा भरोसा उसीका दिलमें ,  हमें वही दिलदार है || ३ ||  चाहे बनालो लगे वहीसा ,  सभी तुम्हें अधिकार है ।  वह दास तुकड्या बना है पागल  जगतसे खाई हार है || ४ ||

अमरपुरीमें बजती हैं नौबत

अमरपुरीमें बजती हैं नौबत ,  आओ सखी ! मिल जायेंगे ॥ टेक ॥  त्रिकुट शिखरपर जोगि मनोहर ,  नित उत दर्शन पायेंगे ।  भ्रमर - गुंफा में गहरि है नदिया ,  सब सखियाँ मिल न्हायेंगे ॥ १ ॥  हृदयकमलमों निर्मल ज्योती ,  नित उत ध्यान लगायेंगे ।  नाभिकमलमों खड़ि है नैया ,  सीधी राह मिलायेंगे ॥ २ ॥  निर्मल जान दरसका भूखा ,  पाते वहि मिल जायेंगे ।  तुकड्यादास पिया -घर जावे ,  वापिस नहि फिर आयेंगे ॥ ३ ॥ 

हे यार ! मेरी नज़र में आना

हे यार ! मेरी नज़र में आना ,  काहेको जाता दूर रे ?  बने हैं आशक दरसके तेरे ,  करो अरज मंजूर रे ॥ टेक ॥  वह तेरा जलवा कहाँ छुपा है ?  लगी हमें हुरहुर रे ।  बिना दरसके चैन न पावे ,  काहे छुपावत नूर रे ॥ १ ॥  सुना है मैंने ' दयालु तू है ' ,  बना अभी क्यों क्रूर रे ? ।  करम हमारे फूटे पड़े हैं ,  आडा पड़ा भवपूर रे ॥ २ ॥  क्या तेरे मतमे खडी है आडी ,  लगादि है झूरझूर रे ।  वह दास तुकडया बना दिवाना ,  नहीं रहा यह शहूर रे ॥ ३ ॥ 

कहाँ बनाऊँ मैं गर्ज अपनी

कहाँ बनाऊँ मैं गर्ज अपनी ,  कौन सुने बिन प्रभू ! तुम्हारे ।  सभीके अर्जीपे ख्याल देकर ,  तुम्ही करोगे निकाल सारे ॥ टेक ॥  न बाप भाई दया करेंगे ,  कहे वे स्वारथके गीत प्यारे ।  मुझे तराना किसे पसंद है ,  जो तारता है ये भक्त सारे ॥१ ॥  बडा कठिन है रचा पसारा ,  न प्रेम पलभी लगे तुम्हारे ।  इसीमें मरना है काम मेरा ,  सिखाते अपनीहि राह सारे ॥ २ ॥  कई गये और कई चले हैं ,  न राह अपनी जगह सुधारे । !  हे नाथ ! हमपर करो दया अब ,  त्यजे सभी बस रहे सहारे ॥३ ॥ यह शान शौकत को जाल मेरी ,  लगादो राखहिको अंग मेरे ।  वह दास तुकडया मिला तुहीमें ,  ये अर्ज पेशीमें हैं निछारे ॥ ४ ॥  

किसे मैं देखूं बिना तुम्हारे

किसे मैं देखूं बिना तुम्हारे ?  औरन के संग रीत नहीं है ।  न ज्ञान मुझमें किसे सुनाऊँ ,  अगर कहूँ तो प्रीत नहीं है । टेक ॥  यह आस मनमें लगी हुई है ,  प्रभू चरणपे जगी हुई है ।  दिदार देना खुशी तुम्हारी ,  प्रीतमके संग जीद नहीं है ॥ १ ॥  लगे रहेंगे वह नाम पीकर ,  जगे रहेंगे सबर- शुकरमें ।  न चाह राखूँ जगत्‌की दिलमें ,  कामनके घर नीत नहीं है ॥ २ ॥  जहाँ फिराऊँ नजरको अपनी ,  सभी लगे हैं अपन में सारे ।  न कोउ किसपर रहम करेंगे ,  यह बात मोमन होत नही है ॥ ३ ॥  वह दास तुकडयाको आस तेरी ,  भली समझ या बुरी रहे फिर ।  न कोउ चालक रहा हमारा ,  बिना प्रभू एक मीत नहीं है ॥४ ॥ 

हे यार ! क्योंकर सता रहे हो

हे यार ! क्योंकर सता रहे हो ?  न कोई हमको बिना तुम्हारे || टेक ||   ये सारे स्वारथके सारथी हैं ,  नजरमें दिखते जो आज मेरे ।  बिना तुम्हारी दया प्रभूजी !  सभी भगेंगे अखेर प्यारे ॥१ ॥ यह सारी दुनियाकी राह झूठो ,  सभी दिखे मतलबीपियारे  न कोइ मुझको तरानेवाला ,  बिना तुम्हारी दया निहारे ॥ २ ॥  न देख मेरी चुकीभुलीको ,  ले पास अपने दिजो सहारे ।  वह दास तुकड्याकी लाज राखो ,  ये तोड़करके विनास सारे ॥३ ॥ 

मेरे किस्मत टूट पडे है क्या,

  मेरे किस्मत टूट पडे है क्या,  या मेरा तकदिर घुमा रहा है || टेक ||  न हमने देखा कमीमी तीरथ ,  न हमने पूजी कभीभी मूरत ।  न हमने देखी खुदाकी सूरत ,  बेहाल दिलपर रमा रहा है || १ ||  न साथ लीनी किसोकी संगत ,  कभुं न बैठे किसीकी पंगत ।  हमेशा खाना पीना औ सोना ,  यह ख्याल मनमें जमा रहा है ॥ २ ॥  कभू न कीना धरम - करमको ,  कभू न राखा किसी शरमको ।  बढ़ा रहा हूँ खुदी भरमको ,  औ दुर्जनोंसे नमा रहा है ॥ ३ ॥  कहाँ लगेगा हमें ठिकाना हे यार !  किसकी गलीमें जाना ' ।  वह दास तुकड्या बना दिवाना ,  गुरुचरणको कमा रहा है ॥४ ॥   

जगे रहो हर हमेशा प्यारे

जगे रहो हर हमेशा प्यारे !  बिना लगे प्रभु- प्रेम नहीं है ।  जगे हुए जो हुशार बंदे ,  उन्हें किसीका नेम नहीं है || टेक ||  यहाँपे देखो वहाँपे देखो ,  प्रीत बिना परतीत नहीं है  सभी जगहमें वह प्रेम देखो ,  जिस प्रेममें हार-जीत नहीं है ||१||  वह प्रेम पाकर जगा कबीरा ,  जहाँ किसीकी भीत नहीं है ।  सदा रहो अनमस्त निरामय ,  बिना प्रभूकोई मीत नहीं है ॥ २ ॥  जो प्रेमसे लौ लगी रहेगी ,  तो प्रेममे प्रभु रीत नहीं है  वह दास तुकडया उसी का प्यारा ,  बिनागुरु कहि होत नहीं है ||३||

दीननके दुखवार प्रभु

दीननके दुखवार प्रभु ,  इक प्रेमहिके संग खेल रहा है ||टेक||  जात न देखत पाँत न देखत ,  देखपना सब भूल रहा है ।  अर्जुनके संग सारथ में खुब ,  चाहके साथ सुडोल रहा है ॥ १ ॥  द्रव्य न चाहत मान न चाहत ,  चाहपना सब छोड़ रहा है ।  धन्य सुदामा के चावल खावत ,  मित्रनके सुख बोल रहा है ॥ २ ॥ ज्ञान न देख अजान न देख न देख पुजा अरु कर्म कहाँ है कहे दास तुकड्या वह तो एक निर्मल प्रेमसे झूल रहा है || ३||

यहाँ वहाँ क्या कहाँभी देखो

यहाँ वहाँ क्या कहाँभी देखो  तो मेरे प्यारे का नूरही है ।  मस्जीदभी क्या ढँढोलो देवल ,  जिंधर उधर वह हुजुरही है || टेक ||  जिन्होंके नैनों में रंग छाया ,  उन्हींको प्यारा दिखे समाया |  जो जीव उसको न जानते हैं ,  हुजूर हाज़र तो दूरही है ॥ १ ॥  भला पुकारो जो नाम लेकर ,  यहाँ पुकारो या दूर जाकर ।  वही रँगीला है सबके अंदर ,  वह आशकोंका जरूरही है ॥ २ ॥  यह सारी झूठोंकी बातमी है ,  वह सार हक़ में कहाँ कमी है ।  यह दास तुकड्याकी लौ जमी है ,  तो इश्क मेरा अख़ ज़ूरही है । ॥३ ॥ 

हमारे दिलको वही पछाने

हमारे दिलको वही पछाने ,  जो खास अपनेही दिलको जाने ।   या प्रीतसे हो चुके दिवाने ,  या द्रोहके घरको जाल छाने ॥  न जिसको हककी जमानती है ,  न प्रेम ईश्वरका भी रती है ।  कहाँ वह जाकर किसीको माने ,  जो द्रोहके भेदमें दिवाने ॥ १ ॥  न ज्ञान जिनको हुआ हुजुरका ,  न प्रेम जिनमें कहीं गुज़रका |  वे हैं जगतमें रहे - नहींसे ,  सदा हुशारीकी बात ताने ।  अगर किसी के वतनको जानो ,  तो खास अपने जतन पछानो ।  वह दास तुकड्या उन्हीं का प्यारा ,  मिटे है जिनके दुई - निशाने ॥ ३ ॥ 

जो प्रीतके घरको पाचुके हैं

जो प्रीतके घरको पाचुके हैं ,  यह पार से भी वह पार वे है ।  कुफर कफरको दफा चुके हैं  दवा मोहब्बतको खा चुके है || टेक ||  न कम धर्मोका बंध उनको ,  न भेखकी कुछ भी लालसा है ।  लडे हुए हैं जिगरसे अपने ,  उज़रकी जूं को सफा चुके हैं ।। १ ।।  न द्रोह करनेको फुरसदी है ,  न लोभ करनेको वक्त फावे ।  हुए दिवाने जो धुनमें उनकी ,  नशा उन्हीं कीहि छा चुके हैं ॥ २ ॥  न ख्याल तनके वज़ा - वजूका ,  न देखे दिनको न रैन जिनको ।  वह दास तुकडचा उन्हींका प्यारा ,  जो प्रीतसे लौ लगा चुके हैं ॥ ३ ॥

उन्हींकि दुनिया बँधी हुई है

उन्हींकि दुनिया बँधी हुई है ,  जो देखकर भूलते नहीं है ||टेक ||  कहीं तो देखा राजमहलको ,  कहीं तो तुंबडी खात सही है ।  कहीं तो बैठे है हाथि घोडा ,  कहीं जुती पगहुमे नहीं है ॥ १ ॥  कहीं तो ज्ञातीमें ज्ञानचर्चा ,  कहीं तो शूरोंमे हाथ फर्चा ।  कहीं तो लडकोंके संग हर्षा ,  कहीं तो दीवाने नुरही है ॥ २ ॥  कहीं तो बादलके साथ खेला ,  कहीं तो देखा पड़ा अकेला ।  कहीं तो प्यारेका मार झेला ,  कहीं बिगारोहि हो रही है ॥ ३ ॥  कहीं तो पीरोंके साथ डोले ,  कहीं तो हकके दिदार खोले ।  कहीं तो बैठे बने है भोले ,  जो मौज आई वही सही है ॥ ४ ॥  सभी में रहकर रहे नियारे ,  ये ख्याल जिनके बने हैं पूरे ।  वही खुदाके बने है प्यारे ,  कभू न हारे जीते नहीं है ॥ ५ ॥  हुशारसे भी हुशार वे है ,  यह पारसे भी वह पार वे है ।  यह दास तुकडयाका सार यों है ,  जहाँपे दुनियाहि है नहीं है ! ॥ ६ ॥

रहे सभीमें वह सबसे न्यारा

रहे सभीमें वह सबसे न्यारा |  वह हक़से प्यारा रहे हमारा ||टेक||  न किनसे माँगे न कुछभी त्यागे ,  रहे उसीमें करे गुजारा ।  न द्रोह करता न लोभ धरता ,  बना बनाया यह खेल सारा ॥ १ ॥  कभू न जागे कभू न सोवे ,  न दिल खुशी है न द्रोह देखा ।  कहाँ रहे फिर वतन उसीका ,  सभी जगहमें भरा पियारा ॥ २ ॥  न ओढता कुछ न छोड़ता कुछ ,  ग खौंफ धोखा रखे शहूरा ।  न साधनोंकोभी मानता है ,  औ साधनोंसे रहे न न्यारा ॥ ३ ॥  अजब तन्हा इक उसीकी देखी ,  न बेदमी कह सके बिचारा ।  यह दास तुकड्याको आस उसकी ,  जो तीन तालोंसे नैन मोरा ॥४ ॥

न हम मजोंमें न हम सजोंमें

न हम मजोंमें न हम सजोंमें ,  न हम हमारे न हम तुम्हारे ॥ टेक ॥  न हम किसीसे बँधे गये है ,  न हम किसीसे छूट गये हैं ।  जो कोइ जैसी नज़रसे देखे ,  वह गुण हममें दिखाय सारे ॥ १ ॥  न हम मरेंगे न हम तरेंगे ,  न हम भरेंगे ये दुःख सारे ।  भरना भराना पहलेहि भोगा ,  अब सब हमारे हम उनसे न्यारे ॥ २ ॥  जहाँकी कुदरत समा रही है ,  वह धार हमपर रमा रही है ।  न अब कमाना न अब गमाना ,  वह दास तुकड्याके तुम पियारे ॥ ३ ॥ 

अजब तमाशा जिसने बनाया

अजब तमाशा जिसने बनाया ।  वह राम मुझमें में राममें हूँ ॥ टेक ||  वेद - पुराण अठराहि गावे ,  अंत न पावे ' नेति ' कहावे ।  उद्धारे ये भक्त सारे   वह राम मुझमें , में राममें हूँ ॥१ ॥ जोगि जपी और योगि संन्यासी ,  लगगये फाँसी नहि परकाशी ।  जिसने ये तारे दुनिया में सारे ,  वह राम मुझमें में राममें हूँ || २ || शेष थका वह खोज़ न पाया ,  संतन गाया गान भुलाया ।  जिसकी यह सूरत दिखनी है मूरत ,  वह राम मुझमें मैं राममें हूँ || ३ || सूरज औ तारे जिसने उजारे ,  जिसने निकारे जिसने ये मारे ।  तुकड्याके प्यारे जो कि नियारे ,  वह राम मुझमें में राममें हूँ | ॥ ४ ॥

ये आशकों के नजर में हरदम

ये आशकों के नजर में हरदम |  खुदा हमारा समा रहा है ॥टेक ॥  न किसको पाया घुमेसे काबा ,  न किसको पाया घुमेसे बुतखाँ ।  वह यार लूटा मला उसीने ,  जो संतसेवा कमा रहा है ॥ १ ॥  न किसने देखा नज़रसे अपने ,  न किसने देखा सपन में अपने ।  नज़रसे देखा उसीने उसको ,  जो धूनमें दिल रमा रहा है ॥ २ ॥  न तीरथोंमें बसा हुआ वह ,  न मुरतों में फँसा हुआ वह |  है आशकोंके सदा मगज़में ,  वह तेज सबमें भ्रमा रहा है ॥ ३ ॥  अगर तुम्हें हो खुदाकी आशा ,  क्यों जानते हो झूठा तमाशा ?  वह दास तुकड्याको लागा फाँसा ,  गलेमें मेरे घुमा रहा है ॥ ४ ॥ 

हमारा प्यारा कहाँपे हारा

हमारा प्यारा कहाँपे हारा ?  खोज नहीं क्या छुपा है न्यारा ?||टेक|| मकानढूंडा दुकान ढूंढा  यह देवल सभी निहारा ।  अजब तमाशा बना है उसका ,  कहाँ निकारा वहाँपे सारा ॥१॥ मजीद देखा सजीद देखा देखलिया सब नदि किनारा पता नही है कहाँपे बैठा न है हमारा न है तुम्हारा  ||२|| ये दोनों मजहबके टंटे झूठे ,  कहाँका कीन्हा यह ढोंग सारा ?  खुदा खुदीसे जुदा न होवे ,  सभी जगहमें वह राम मेरा ॥ ३ ॥  न उसकी कहाँपे बनी है सूरत ,  वह सूरतीमें बना उजारा ।  वह दास तुकड्याके बैठा दिल में  कहाँ ढुंढोगे बहार सारा ॥ ४ ॥ 

हरि - चरण कमल मुझे दावना रे

हरि - चरण कमल मुझे दावना रे !  यह बिगडी आस मिटावना रे ||टेक|| भवसागर - जल दुस्तर भारी ,  कैसे जाऊँ उससे पारी ?  मच्छ मगरकी मार ,  दूर हटवावना रे ॥ १ ॥  काम क्रोध लपटे तनमाँही ,  दाब दिनी मेरी चतुराई ।  कैसा पार लगूं ?  दिनपे चित लावना रे ॥ २ ॥  आशा मरघटमें भी जीती ,  रात - दीन कबहू नहि सोती ।  तनको खार किया ,  विषयोंमें भावना रे ॥ ३ ॥  चरण पकर अब आस धरूँ में ,  तुझबिन दूजा भास हरू में ।  तुकड्या को बर दे ऐसो ,  रुप पावना रे ॥ ४ ॥ 

मेरो ईश्वरमें मन राजी

मेरो ईश्वरमें मन राजी दूजा छोड़के रे !  कोई कुछ भी कहे  मोहे जगमें रे ! ॥ टेक ॥ आसन साधन करना छोडा ,  भेख जोगसे दिलको मोडा ।  नाम रिझावत जाऊँ ,  दिलके छोड डेरे ॥ १ ॥  जंगल बनमें घुमना छोडा ,  गुरुचरणोंपे चितको जोडा ।  धन - संपतको मार जुते ,  गुण गायके रे ॥ २ ॥  शरणागत ईश्वरके जाऊँ ,  जोग जापको दूर हटाऊँ  आत्मस्वरूप ब्रह्मरस  गुरुजी पासमें रे ॥ ३ ॥  पूजापाती दूर हकाला ,  पूजन करनी , स्वरकी माला ।  तुकड्यादास आसरा तेरा ,  श्वासमें रे ||४|| 

हरि - चरण स्मरण कर

हरि - चरण स्मरण कर पापिया रे !  फिर भवसागर तर आपिया रे || टेक ||  क्या इन अंधपनोंमें भूला ,  मौत आय जब जात अकेला ।  जम - घरकी धर बाट ,  घाट वह साँपिया रे ॥ १ ॥  विषयन में क्यों जान रमाता ,  जम - घरकी फिर लाते खाता ।  कौन छुडावे आकरके ,  तेरो बापिया रे ॥ २ ॥  मायामों जाकरके लटका ,  विषयनका सुख देखत अटका |  काल बजावे फटका ,  हर भज जा पियारे ! ॥ ३ ॥  पैसा पैसा पल्ले गाँठा ,  अंतकाल सिर ढोबर फूटा ।  तुकड्यादास कहे अब  सुधरो मापिया रे ! ॥ ४ ॥ 

हरि - भजन भजत खुण पायगा रे

हरि - भजन भजत खुण पायगा रे !!  घटअंदर राम समायगा रे || टेक || नाभिकमल मणिपूर निवासा ,  उन्मन तार चले वहँ खासा ।  जो योगि धरे ध्यान ,  जनम मिट जायगा रे ॥ १ ॥  धूनि जले हिरदेके अंदर ,  जगमग ज्योत चले निज सुंदर  श्वास - बाल डोले  सुख जो अजमायगा रे ॥ २ ॥  सुंदर नदियाँ गहरा पानी ,  गंगा - जमुना संग त्रिवेणी ।  जोगी स्नान करे पलमें तर जायगा रे ॥ ३ ॥  खुण पावे जो भजे भजनको ,  बिरला क्या जाने गुण इनको  तुकड्यादास आस धरके  गुण गायगा रे ॥ ४ ॥ 

प्रभु - भजन करत मन

प्रभु - भजन करत मन मारना रे !  फिर जनम मरण दुख सारना रे ||टेक|| मनहीते भोगत दुःख सारा ,  जन्म - मरण भटकावत प्यारा ।  मनको भजनरूप करके ,  तन तारना रे ||१|| बाहार कर्म करनको त्यागो ,  अंतर्मुख होकरके जागो  नरका धर्म यही ,  गुरु बेद बिचारना रे ॥ २ ॥  अंतर्मुख बिन मुक्ति न पावे ,  सब संतनसंग यही बतावे  छोड़ विषयकी कास ,  आस यह जारना रे ॥ ३ ॥  भवसागर जिसे पार उतरना ,  उसने आतमजोत पकरना ।  तुकड्यादास कहे मत - भूल ,  विसारना रे ॥ ४ ॥ 

प्रभु अरज सुनत तन तारिया रे

प्रभु अरज सुनत तन तारिया रे !   नर ! भजन करत  सब हारिया रे || टेक ||  घर का काम भुले नहि प्यारा ,  देवलमें तप करत बिचारा  कैसा हो भव - दुख - निवार ,  तिहारिया रे ॥ १ ॥  बाहरसे मुख ' ईश्वर ' बोले ,  अंदर चलते विषय - गलोले  ऐसे नर जमराज - सदनबिच ,  मारिया रे ॥ २ ॥  मातापिताका लोभ न छूटा ,  क्या परमेश्वर भजता झूठा  अंत - काल तन फूटा ,  होत बिगारिया रे ॥ ३ ॥  जो नर अंतर निर्मल होवे ,  वहि प्रभुके गुण निशिदिन गावे ।  तुकड्या तिनको सीस नमावत ,  बारिया रे ॥ ४ ॥  

मन यह मत भटकाना बे

मन यह मत भटकाना बे !  फिर खुले भाग सब तेरे ॥ टेक ॥  स्थीर रहो निज घटके अंदर ,  कुफर - कफर नहि करना  क्या तेरी नज़रोमे आवे ,  नज़र अजरमें धरना ॥ १ ॥  रंगरूप बिन झलके ज्योती ,  जो चैतन्य समाना ।  मनका मन राजा बन जावे ,  जब वह ज्योत पछाना ॥ २ ॥  शंख मृदंग घनन घडियाला ,  दस आवाज सुहाना ।  जिस गंगाके बूंद उपरसे ,  गंगामें बिसराना || ३ ||  इन तन अंदर खंब खंबमें ,  निकले शब्द बिराना ।  उसी शद्वपर स्थीर रहो तो ,  मोक्ष वहीं मनमाना ॥ ४ ॥  कहता तुकडया मस्त जिगर ,  अब करले साक्षी बाना ।  वहि संगतसे भला रहेगा ,  नहि तो नर्क उठाना ॥ ५ ॥

नर नारायण बनना बे

नर नारायण बनना बे !  एक सहज बात है भाई ॥ टेक ||  आजहिसे भूला उसको ,  जिससे नारायण होगा ।  मृगजलमें फसके बैठा है ,  करके फेरा भोगा ॥ १ ॥  मनका मूल जायकर देखो ,  कौन ठिकान उसीका ।  मनके पार देखकर पलमें ,  हो जा वहि रुप बाका ॥ २ ॥  छोडं सभी खटपट करनेकी ,  नैन उलट कर जाना ।  साक्षी होकर इस इंद्रियका ,  समझो सारा सपना || ३ ||  नित्यरूप सब तनमें झलके ,  ख्याल करो पल घटमे ।  कुफर कफर को मारो जूते ,  दिखे , निरंजन तटमें ॥ ४ ॥  जहाँपे रंग - रूप नहि पावे ,  अलक्ष बन मस्ताता ।  कहता तुकडया क्या कहता अब ,  छोडो ऊपर - बाना ।। ५ ।। 

कैसे तुझको समझाना

कैसे तुझको समझाना ,  है उलट नज़रिया तेरी || टेक || सत्य रूपको छोड़ दिया ,  तू झूठ मायामों भूला |  जमका डंडा बैठे सिर जब ,  झटके खावे खुला ॥ १ ॥  हाथी घोडा माल खजाना ,  इनपे आशा जोडी मौत आय जब पछतावेगा ,  गाँड लँगोटी छोडी || २ ||  साले भाई मेरे ' कहकर ,  इनमें भूली पाया मौत आय जब चला अकेला ,  धन डाकूने खाया ॥ ३ ॥  कहता तुकड्या ख्याल कराकर ,  भजले अब तो साँई ।  मस्त रहेगा जन्म - जन्म फिर ,  जमका धोखा नाहीं ॥ ४ ॥ 

वहि है माया प्यारे

वहि है माया प्यारे !  तूने काया क्यों समझा रे || टेक ||  माया काया - रूप बनी जब ,  जगत नजर में आवे ।  नहि तो कुछ नहि काया ,  माया , सब चैतन्य समावे || १ ||  अनंतरंगी सबकी संगी ,  जिसे त्रिगूण कहावे |  ब्रह्मा विष्णु रुद्र इनके तन ,  मायासे बतलावे || २ || जैसी खास मकाश उपरमें ,  ठग तैना चमकावे |  पलमें है और पलमें नाहीं ,  चंचल रूप दिखावे || ३ || काया यह मायारुप  सम तू इनका करनेवाला ।  कहता तुकड्या साक्षी हो अब ,  जानो रूप निराला || ४ ||

है कोई ऐसा प्यारा

है कोई ऐसा प्यारा ,  निज - घटमें खुदा बतलावे ? ॥ टेक ||  ज्ञान - अग्नि तनमें बढवाकर ,  द्वेत - भास जलवावे ।  जानपनाकी खाक कराकर ,  तनमें भस्म रमावे ॥ १ ॥  जहाँ रंगबिन झलके ज्योती ,  जैसे मोती पावे ।  जिवनकला वर्षाव करे जब ,  रंग - तरंग उठावे ॥ २ ॥ चढे अगन दरबार दसव पर ,  जिम जल - बूंद समावे । '  अस्ती भाती प्रीय '  सच्चिदानंद रूप बन जावे || ३ || बिन क्रोधी जल भरा शांतिसे उसमें स्नान करावे ।  जीवदशा अपनी धुलवाकर आत्मरूप बन जावे || ४ || आपहि आप शयन की माला ,  तन अंदरमें गावे ।  कहता तुकड्या वही गुरू कर ,  नहि तो जन्म फिरावे  || ५ ||

खिलकत घूमा सारा

खिलकत घूमा सारा |  खालिक न नज़र आता है ॥ टेक ॥  कहाँ उसोका पता मिलेगा ,  वही पूछता तुमको |  मिले जिगर दिलदार यार जब ,  मारूँ जूते जमको ॥ १ ॥  दिया दगा है बहुत दिनोंसे ,  कछु न कदर कर मेरी ||  संतसाधुसे यहि बर माँगूं ,  टुटे जन्मकी फेरी ॥ २ ॥  शास्त्रपुराणहि बाच - बाचकर ,  उमरी सारी खोई ।  उसमें , गर्व चढ . मनमाँही ॥ ३ ॥  काशी मथुरा जाकर देखा ,  सार्थक भूले मेरा |  देख पुजारी यों कहता है , '  तरा बाप अब तेरा ' ॥ ४ ॥  मेरी फिक्र अब उसको होगी ,  जो निजरूप बतावे ।  कहता तुकड्या सद्गुरु के बिन ,  बिरजा जनम गमावे ॥ ५ ॥ 

गुरुपद बिन जगमें साधन कोई

गुरुपद बिन जगमें साधन कोई ,  सिद्ध नहीं होवे || टेक ||  मूल अधार गुरुपद जानो ,   वहि सबको धोवे ।   कुछ न धरा पुस्तक में कोई ,   क्या पंडित रोवे ॥ १ ॥  छोड जगतकी आस दास ,   जब गुरुको बन जावे ।   साधन क्या , साधनको कर्ता ,   पलमें बर देवे ॥ २ ॥   सीधा मारग छोड़ा ,   अब क्यों मूल मटक रोवे ?   मान अरज अब मेरी ,   गुरु भज , पलमें तर जावे ॥ ३ ॥   बिना भाव बैठे कैसा ,   भव - पार चला जावे ?   तुकड्यादास कहे गुरुके बिन ,   मूरख भ्रम पावे ॥ ४ ॥