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मार्च, २०२२ पासूनच्या पोेस्ट दाखवत आहे

प्यार ! हिंमतसे बेड़ा यह पार है ।

 ( तर्ज - नागनी जुल्फोंपे दिले ० )  प्यार ! हिंमतसे बेड़ा यह पार है ।  गरचे सोवे तो  खोवेगा सार है || टेक || मैं तो चाहूँ के , निर्भर रही जगतमें ।  जीतो मनको , करो योगको सख्तमे झूठ कामोंसे  बचना सुधार है || १ || प्रेम प्रेमीसे राखो , न मगरूर हो नेमसे नेम अपना वह महशूर हो ।  दुष्ट हो कालभी करदो वार है  मुखसे गोविंद गोविंद गाओ सदा ।  आँखे अपने हि रँगमें रँगाओ सदा ।  दास तुकड्या कहे ,  तो उद्धार है ॥ ३ ॥ 

प्यारे ! दुनियामें जीवन गमाय दिया रे ।

 ( तर्ज - नागनी जुल्फॉपे दिल ० )  प्यारे ! दुनियामें जीवन गमाय दिया रे ।  खास घटमें दुईको  समाय दिया रे || टेक || तूने अपनी न कीमत जराभी किया ।  खास विषयोंसे बाँधे ,  गुलामी लिया ।  मौत-जीनेनें तुझको  भ्रमाय दिया रे ॥१ ॥  काल बाजा बजाता है  सिरके उपर ।  मौत आकर भिडी है  कराती सफर ।  हुक्म दुश्मनका सिरपर  रमाय लिया रे ॥२ ॥  साध साधे जो कुछ ,  जो रही सो रही ।  ऐसी बक्ती न आवेगी  फिरके कहीं ।  कहता तुकड्या गुरु भज ,  कमाय लिया रे ॥३ ॥ 

गति कौन भई ?

 ( तर्ज - गुरु ! तुमहि तो हो ० )  गति कौन भई ? गति कौन भई ? ।  गति कौन भई  उनकी जनमों ? ॥ टेक ॥  रावणने सतिया चुर लाई ,  दस मुंडी गई माटिनमों  || १ || कंस असुरने कर अभिमाना ,  नाश किया है जीवनमो  || २ || दुर्योधनकी बुरी करनिसे ,  फना हुये हरिसे रणमों || ३ || तुकड्यादास कहे कश्यपुके ,  प्राण लिये हरिने छनमों || ४ ||

क्यों भूल पड़ा ?

 ( तर्ज - गुरु ! तुमहि तो हो ० )  क्यों भूल पड़ा ? क्यों भूल पड़ा ?  क्यों भूल पड़ा बिरथा बंदे ! ॥ टेक ॥  कृष्णकृष्ण ' कहो पलपल मुखसे ,  रँगजा भज भज गोविंदे ॥ २ ॥  जिसकर बंधन पडत जिवनमें ,  मत करना ऐसे धंधे ॥ १ ॥  कृष्णकृष्ण ' कहो पलपल मुखसे ,  रँगजा भज भज गोविंदे ॥ २ ॥  मत भूलो संसार विषयमों ,  झूठे हैं इनके फंदे ॥ ३ ॥  तुकड्यादास कहे जागा हो ,  ग्यानका अंजन ले अंधे ! ॥४ ॥

चल खोल नयन ,

 ( तर्ज - गुरु ! तुमहि तो हो ० )  चल खोल नयन , चल खोल नयन ।  चल खोल नयन ,  भ्रम हकला दे ॥ टेक ॥  ऊठ मुसाफिर ! क्यों सोया है । ?  नींद भरी यह ढकला दे ॥१ ॥  रामभजन बिन सब कुछ झूठा ,  भेद यही सब सिखला दे ॥ २ ॥  जनम मरण सब भ्रमसे बाँध्यो ,  ग्यान उचारनको साधे ॥३ ॥  तुकड्यादास कहे सत्‌मारग ,  धरकर जीवन जिलवा दे ॥४ ॥ 

नर क्यों भटका ?

 ( तर्ज - गुरु ! तुमहि तो हो ० )  नर क्यों भटका ? नर क्यों भटका ?  नर क्यों भटका भूले भूले ? ॥ टेक ॥  झूठ पसारा देखत भूला ,  आखिर मरघट में झूले ।। १ ।।  जो जन हरिसे प्रीत न जोरे ,  पछताये खूले खूले ॥२ ॥  काल - बला वह सबपर बीते ,  नहि छूटे कोई चेले ॥ ३ ॥  तुकड्यादास कहे हरि सुमरो ,  तर जाओगे जग - मेले ॥ ४ ॥ 

बंदे ! क्यों दिल भटकाता

 ( तर्ज - भले वेदांत पछाने हो ० )  बंदे ! क्यों दिल भटकाता ?  अंतमें खावेगा गोता ॥टेक ॥  संत समागम दुर्लभ भाई !  रख उनसे नाता ।  मोल न होवे , अमोल काया ,  नर ! क्यों भटकाता ? ॥ १ ॥  पुराण - पोथी बाच - बाचकर ,  मन चंचल होता ।  बिना हरीके नामको सुमरे ,  प्रेम नहीं पाता ॥२ ॥  यह दुनिया तो अजब तमासा ,  नहि जाने जाता ।  रोना - धोना पलभर करके ,  समझ नहीं आता ॥३ ॥  कहता तुकड्या चित्त शुद्ध कर ,  भजले रघुनाथा ।  छोड सभीका गाना भाई !  क्यों दिल भरमाता ? ॥४ ॥ 

जग स्वारथका भाई

 ( तर्ज - भले वेदांत पछाने हो ० )  जग स्वारथका भाई !  तनका साथि नही कोई ॥टेक ॥  साधु - संतने  अमर कमाया ,  जान यदुराई | नाम जपाकर घटके अंदर ,  दुनियाहि दुराई || १ ||  अकल जगत्‌का कर्ता स्वामी ,  नहि है इनमाँही ।  वह तो सबमें रहके निराला ,  बिरला लख पाई ॥ २ ॥  ईश्वरसे मन जोडो अपना ,  छोडो बहिराई ।  नर-तन चीज करो इसहीसे ,  यहि साथी आई ॥ ३ ॥  कहता तुकड्या , अलख निरंजन ,  संतोंने गाई ।  उनका अनुभव पाओ बंदे !  फेर जनम नाही ॥ ४ ॥ 

बंदे ! सावध होना है ,

 ( तर्ज भले वेदांत पछाने हो ० )  बंदे ! सावध होना है ,  नही तो आखिर रोना है || टेक||  इस दुनियामें कौन रहा है  किसके खातिर जीना ? ।  बडे बडे जो पीर - अवलिया ,  उनका नही ठिकाना ॥१ ॥  साधु संत और योगि तपस्वी ,  उनको लगी समाधी ।  खाक हुआ है चोला जलकर ,  टूटी सारी व्याधी ॥ २ ॥ कालका दर्गा बड़ा जबर है ,  सबको अंदर लेता ।  जैसे करनी वैसी भरनी ,  फल सबहीको देता ॥३ ॥  कहता तुकड्या , गुरु- भजनसे ,  हो जाओ भवपारा ।  लगाओ धूनी दिलके अंदर ,  तोड़ सकल परिवारा ॥४ ॥ 

क्या खुदा कुदरतसे जादा

 ( तर्ज - मानले कहना हमारा ० )  क्या खुदा कुदरतसे जादा ,  धन जमानेका है प्यारा ? ॥  सब जगत्‌में धनहि बंदा ,  बेसुमारो धनका धंदा ।  धन बिना आदमी है मंदा ,  क्या कहूँ धनका उजारा ॥१ ॥  जोरु लड़के धनके साथी ,  धन नही तो घर न आती ।  धनसे बढ़ती जगमें कीरत ,  जिंदगी धनका पसारा ॥२ ॥  धन बिना व्रत नेम नाही ,  धन न हो तो तीर्थ नाही ।  धन बिना तन शक्ति नाही ,  धन अजब दे चीज यारा ! ॥३ ॥  धन बिना जगमें न चैना ,  धन रहा तो पूछे मैना ।  धनहि तनकी तीजि नैना ,  धन चमर चौरी डुलारा ॥४ ॥  ऐसा है दुनियाका धंदा ,  धनसे पापीभी आनंदा ।  कहत तुकड्या , धन जो गंदा ,  अंत देवे नर्कद्वारा ॥५ ॥ 

क्रोध है जिनमें भरा

 ( तर्ज - मानले कहना हमारा ० )  क्रोध है जिनमें भरा ,  उन्हें बोधका नहि योग है ॥ टेक ॥  लीनता जिसपासमें ,  वहि बोधकी है आसमें ।  जो मिराते गर्व हैं ,  उन्हें बोधका नहि योग है ।। १ ।। संगती जो पायगा ,  वहि प्रेम - भक्ती छायगा ।  जो लोभ करते देहका ,  उन्हें बोधका नहि योग है || २ || धाम तीरथ न्हायगा ,  वहि पाक दिल बनवायगा ।  जो खुदीकी तानते ,  उन्हें बोधका नहि योग है ।  कहत तुकड्या छोड यह ,  मैं हूँ बड़ा कहना नहीं ।  जो न नीचे सिर झुक ,  उन्हे बांधका नहि योग है ॥ 

होयगा घरका पता जव

 ( तर्ज - मानले कहना हमारा ० )  होयगा घरका पता जव ,  आजका घर खोयगा तू ॥टेक ॥  कामक्रोधहिको जमाकर ,  पंच विषयनमों रमाकर ।  खो दिया अपना तुने घर ,  मल यही जो धोयगा तू ॥१ ॥  देहका अभिमान भारी ,  धन जमानेसे है यारी ।  विषय -तृष्णा मनमें जारी ,  ना इसीमें सोयगा तू  || २ || जोरु लडका कौन तेरा ?  किसने दीन्हा मोक्ष - थारा ? ।  नाहकहि कहता है ' मेरा '  बस इसीसे रोयगा तू ॥३ ॥  पंच तत्वों से निराला ,  पंच कोशोंसे सजीला ।  पंच परदोंसे अगीला ,  कहत तुकड्या होयगा तू ॥४ ॥ 

खो दिया हमने उमर सब

 ( तर्ज - मानले कहना हमारा ० )  खो दिया हमने उमर सब ,  ना सुनी कहि संतकी ॥ टेक ॥  बुजरुगोंने ग्यान लेकर ,  लिख रखा है ग्रंथ में ।  अब याद आती है हमे ,  वह ना सुनी कहि संतकी ॥ १ ॥  बालपन खाली गया ,  और ज्वानिभी बिरथा गयी ।  हूँ पडा बेफाम अब ,  वह ना सुनी कहि संतकी ॥ २ ॥  पाप करने के बखत ,  मीठा लगा दिलजानसे ।  जूतियाँ अब पड रहीं ,  वह ना सुनी कहि संतकी ॥ ३ ॥  कहत तुकड्या जो गये ,  यहही सुनाते चलगये ।  ' तुम साधलो , सुख पाओगे '  वह ना सुनी कहि संतकी ।।४ ।। 

सब खोइ उमर , सब कोइ उमर

 ( तर्ज - गुरु ! तुमहि तो हो ० )  सब खोइ उमर , सब कोइ उमर ।  सब खोइ उमर बिरथा प्यारे ! ॥टेक ॥  जो करना था , कुछ नहि कीन्हा ,  विषयनमों चित्तको डारे ॥१ ॥  मानवजन्म मिला बड़भला  कर करनी तनको तारे ॥२ ॥ कर सत्‌-संग रंग ले अपना आतमग्यानमों चित्त ला रे || ३ || तुकड्यादास कहे मत भूले सुमर सदा ' जगदीश हरे ' || ४ ||

दिन जाय रहे , दिन आय रहे

 ( तर्ज - गुरु ! तुमहि तो हो ० )  दिन जाय रहे , दिन आय रहे ।  दिन जाय रहे , फिरके नावे ॥टेक ॥  बालापन सब खेल गावे ,  तारुण विषयनमें खावे || १ || बूढेपन फिरसे गप छोडे ,  भजन बने नहि मन भावे || २ || आये वैसे मरे जगत् में ,  जमके फिर डंडे खावे  || ३ || तुकड्यादास कहे , क्या कीन्हा ?  आये जैसे चले जावे  || ४ ||

अब जाग जरा , अब जाग जरा

 ( तर्ज - गुरु ! तुमहि तो हो ० )  अब जाग जरा , अब जाग जरा ।  अब जाग जरा ,  सुन भाई रे ! ॥टेक ॥  कर करनी कुछ जन्म मिटनकी ,  सुंदर नरतन पाई रे || १ || मत सोवे इस झूठे जगमें ,  जमके मार न खाई रे || २ || बख़त गई फिर नहि आनेकी ,  प्रभुसे कर सु - मिताई रे || ३ || तुकड्यादास कहे गुरु भजले ,  वहि मारग बतलाई रे || ४ ||

जग झुकता तो झुकवा दे

 ( तर्ज - भले वेदांत पछाने हो ० )  जग झुकता तो झुकवा दे ,  हरिके गुणमें भुकवा दे ॥ टेक ॥  क्या करना है मठ - मढियोंका ?  ले मत , ढकला दे ।  जैसे आये वैसे जगमें  रहना सिखला दे ॥ १ ॥  हर्ष - शोक अरु भयको सारे ,  घरसे हकला दे ।  लाथ मारकर लोभ - दंभको ,  मनसे निकला दे ॥२ ॥ ग्यान - ध्यानकी नीती प्यारे !  जी को सिखला दे जगको बतला दे,  पर उसके - माथे मत लादे || ३ ||  कहता तुकड्या हरी - नाममें ,  जी को रंगवा दे  मत छोडे आठों घड़ियोंमें ,  सबको गुंगवा दे || ४ ||

साधो ! सुनले कहना रे !

 ( तर्ज - भले वेदांत पछाने हो ० )  साधो ! सुनले कहना रे !  सहजमें सहजी रहना रे ॥टेक ॥  भोग कर्मका चुका न किसको ,  तनपे सहना रे !  अच्छा हो या बूरा हो ,  विपरीत न कहना रे ॥ १ ॥  राज मिले या मिले गरीबी ,  निर्मल रहना रे !  सदा हरीके नाम - मंत्रकी ,  धुनमें बहना रे ॥२ ॥  सब दुनिया है रंगरँगीली ,  दुरसे डरना रे !  काम - धाममें रहना ,  नेकी करके मरना रे || ३ ||  आगे पीछे जो कुछ होवे ,  नहि सँग धरना रे !  तुकड्यादास कहे सुन बंदे  भवमें तरना रे ॥ ४ ॥ 

धनपर करते हैं चैना ,

 ( तर्ज - भले वेदांत पछाने हो ० )  धनपर करते हैं चैना ,  गया धन फेर खुले नैना ।  बापवडाने माल कमाया ,  दिखता आँखों माँही ।  सटर - पटरमें पैसा खोया ,  आखिर तुंबडी आई || १ || दया धरम तो कुछ नहीं कीन्हा ,  लोभ चढा मनमाना ।  रोने लागे चोर लुटे जब ,  सुन्न पडेगा गाना ॥२ ॥  साधुसंतकी कीन्ही निंदा ,  धनकीऽहंकारीमें ।  लगे सभी अंगार धनोंको ,  पडता है जारीमें ॥ ३ ॥  कहता तुकड्या पछताओगे ,  धन जानेपर सारा ।  कोई नही पूछेगा फिरके ,  साधो अबसे यारा ! ॥४ ॥ 

दिवाने ! खोल नयन भाई

 ( तर्ज - भले वेदांत पछाने हो ० )  दिवाने ! खोल नयन भाई !  नजरभर धर लेना साँई || टेक || बहुत दिनोंसे विषय चला है ,  क्या है उसमाँही ?  समझ गया है अनुभवियोंको ,  सुख उसमें नाही || १ || तन मंदिरमें खोज कियाकर ,  चित्त स्थिरवाई ।  सद्गुरु - ध्यान लखे साक्षीसे ,  शांति उसे पाई || २ || लगा आँख और लखो गगनमों ,  तारे चमकाई ।  कंठ ओठ विन जाप चला है ,  संगममें भाई ! ॥३ ॥  कहता तुकड्या सत्‌-संगतसे ,  नीरंजन गाई अनुभव लेना आकर जगमें ,  सार्थक कमवाई || ४ ||

प्रेम रस जो चख लेता है

 ( तर्ज - भले वेदांत पछाने हो ० )  प्रेम रस जो चख लेता है ,  वही भव - सिंधू तरता है || टेक || कौन किसीका साला - जोरू ?  पलका नाता है ।  अंतकालमें कोउ न साथी ,  आपहि जाता है || १ || सब बंधनको तोड तोडकर ,  हरको गाता है ।  गुरु - चरणकी नशा चढाकर ,  नाम रिझाता है || २ || चंचल मनसे प्रेम न पावे वही बिगराता है चित्त थिराकर घटके अंदर ,  जो कोई जाता है || ३ || कहता तुकड्या , अमरनदीका ,  अमृत पीता है ।  ' ओहँ सोहँ ' तनके अंदर ,  जाप जपाता है || ४ ||

पीयगा अमृत वही

 ( तर्ज - मानल कहना हमारा ० )  पीयगा अमृत वही ,  जो सद्गुरुकाही हा बंदा || टेक || छोड़कर जग - भावको ,  घर ली समाधी मस्तने ।  विश्वमय बुद्धी करी ,  प्रभुके गुणोंका पाय धंदा ॥१ ॥  चित्त सोहॅमें धराया ,  ध्यास कोहँका हराया ।  प्रेम ओहँमें लगाया ,  ना रखा कुछ और फंदा ॥२ ॥  दिल किया उन्मन सदा ,  कुर्बान कर तन मन सदा ।  मस्त छाया है नशा ,  हर श्वासमें है वहहि धंदा ॥३ ॥  एक रुपको जानकर ,  रहता खुशी हर वक्तमें ।  कहत तुकड्या तब मिले ,  गुरुकी दया आनंद - कंदा ॥४ ॥

लीजो खबर मेरी प्रभू

 ( तर्ज - मानले कहना हमारा ० )  लीजो खबर मेरी प्रभू  यह दास दरपे है पड़ा  || टेक || धीर मनमें हैं नहीं ,  पलपलही जाता वर्षसा।  गर चलगयी ऐसी घडी ,  तब दुःखही होता बडा ॥१ ॥  ' पतितपावन ' नाम सुनकर ,  द्वारपर हाजिर हुआ ।  ' खबर हो दिनकी तुम्हे ,  वस आम लेकर हूँ खड़ा || २ || सैकडोंही भक्तको ,  तुमने दिलाया दर्श है ।  मुझसे गरीबोंपरभी हो ,  ऐसी दया , करके अडा ॥३ ॥  दोषि हूँ गर जन्म का ,  तब भोग भोगूंगा पिछे ।  कहत तुकड्या इस समय ,  मेरी फिकर लेलो , जड़ा ॥४ ॥ 

भक्तके हितकार हो ,

 ( तर्ज - मानले कहना हमारा ० )  भक्तके हितकार हो ,  क्यों दाससे दुर होत हो ? ॥ टेक ॥  नाम मैं सुनता सदा ,  ' तुमको भगतकी है खुशी ' ।  द्रौपदीपर वक्त थी ,  जब दौरते आजात हो ॥ १ ॥  ' है नही छोटा - बडा ,  तुमको कहीं समझा मुझे ।  बन गया जब धृव बालक ,  दे दिये अमरत्व हो ॥ २ ॥ हारके गज ने पुकारा ,  नाथ तुम आय वहा ।  बंधको छोडे , किये ब्रिद ,  आपने ही सत्य हो || ३ || भक्तके खातिरहि मारा ,  कंस मामा जानसे |  कहत तुकड्या , हम गरीबोपर  दया हरवक्त हो ॥ ४ ॥ 

क्यों नहीं मिलते मुझे

 ( तर्ज - मानले कहना हमारा ० ) क्यों नहीं मिलते मुझे ?  श्रीकृष्णजी बनवारिया ! ॥टेक ॥  ' असुर - मर्दन ' नाम तेरो ,  जन सभी बतलावते ।  भक्तके संकट - विमोचर !  द्रौपदी - उद्घारिया ! ॥१ ॥  काम - शत्रू क्या करे ?  तुम्हरे इशारे से भगे ।  तू कालकाभी काल है ,  जब ' कालिया मर्दारिया ॥२ ॥  भक्तका प्यारा सदा ,  अरु प्रेमका भूखा सदा ।  प्रेमसे चावल चवे ,  ऐसा सुदामा प्यारिया ॥ ३ ॥  शूरसे तू शूर है ,  रण युद्ध किन्हो घोर है ।  कहत तुकड्या , कंसको ,  मारा किया जग - पारिया ॥४ ॥ 

छोड़कर चलता मुसाफिर

 ( तर्ज - मानले कहना हमारा ० )  छोड़कर चलता मुसाफिर !  अंतमें संसारको  || टेक || दीनको लूटा बडा ,  अरु द्रव्यका कीन्हा घड़ा ।  छोडकर सारी पिडा ,  खाता अकेला मारको ॥१ ॥  चोरने गठडी लिया ,  नहि आखरी कुछभी दिया ।  पाप माथेपे लिया ,  ऐसे किया व्यवहारको ॥ २ ॥  जोरु लडके मित्र द्वारा ,  यह सभी झूठा पसारा ।  ना यहाँ मिलता है प्यारा ,  रामही एक सारको || ३ ||  कहत तुकड्या , जान प्यारे !  धर गुरुका ध्यान प्यारे !  चोरकी मत मान प्यारे !  नहितो मिलेगी हारको ॥४ ॥ 

तू है बड़ा कठिन जमघाट ,

 ( तर्ज - पिया मिलनके काज आज ० )  तू है बड़ा कठिन जमघाट ,  मिलेना बाट चढनको तेरी || टेक || चंचल मनकी दौड बुरी है ,  फिरे विषयको घेरी ।  जरा न ठहरे सत् - संगतमें ,  खींचे कुमति हमारी ॥१ ॥  साथि - संगाती मित्र - दोस्त सब , बहलावे दिस चारी ।  सत् - मारगपर कोउ न खींचे ,  देत विषयकी तारी ॥२ ॥  कहाँ जाऊँ , करुँ कैसे अब मैं ,  तुम्हरे रुपको छोरी ? ।  तुकड्यादास कहे , मुझ दीनको ,  लो चरणन गिरिधारी ! ॥३ ॥ 

कौन बिधी तुम्हरे गुण गाऊँ ?

 ( तर्ज - पिया मिसके फाज आज ० )  कौन बिधी तुम्हरे गुण गाऊँ ?  प्यारे राम ! हमारे  || टेक || स्तुती करनेको क्या है मेरा ?  सभी माल है तेरे ।  किसे यहूँ और किसे बहाऊँ ,  बुझे न मगज हमारे || १ || सब तन तेरा , कोउ न मेरा ,  ऐसे ख्याल हमारे ।  बिरथा है यह ' में में ' करना ,  दंभ भगजके सारे  || २ || कहता तुकड्या , जो कुछ करता ,  सभी समर्पण तेरे ।  दिलमें मेरे यही रहा अब ,  ' तुमसे हम नहि न्यारे ॥३ ॥ 

आज मेरी बिनती सुनके ,

 ( तर्ज - पिया मिलनके काज आज ० )  आज मेरी बिनती सुनके ,  गुणवंत ! सुधी लीजे ।  बारबार कर जोरत स्वामी !  दान यही दीजे ॥ टेक ॥  फेर फेरकर जन्म दिलावे ,  नहि जीवन सूझे ।  जिस कारणसे राम मिलेगा ,  वहि मारग दीजे ॥ १ ॥ शास्त्र पुराणा अनेक मतके ,  क्या त्यजि क्या लिजे हम गरीबको पार न लगता ,  कहो कैसे कीजे  || २ || कहता तुकड्या तुम हो तारक ,  गुरुसे प्रभु रोझे ।  कहो कहाँ सत्संग मिलेगा ?  चरणनमे लिजे ॥३ ॥ 

दिल भटके विषयनमें ,

 ( तर्ज - पिया मिलनके काज आज ० )  दिल भटके विषयनमें ,  हरिके , गुण गाता नहि है ।  बार बार समझाऊँ तोभी ,  नहि माने कहि है  ॥टेक ॥  चली जा रही आयू पलपल ,  खबर उसे नहि है ।  बिगड रही यह काया प्यारी ,  जमके घर वहि है ॥१ ॥  सद्‌गुरु हमरे ! कहो क्या करें ?  खबर हमें नहि है ।  तुमरि दयाविन व्यर्थ भार सव ,  मेरे मन गहि है ॥२ ॥  क्या जाने किस समय प्राण यह ,  जमके घर जै है ? ।  तुकड्यादास कहे सुधि लीजो ,  थोरि उमर रहि है ॥ ३ ॥ 

ऊठ मुसाफिर ! क्यों सोया है

 ( तर्ज - पिया मिलनके काज आज ० )  ऊठ मुसाफिर ! क्यों सोया है  अंधेरे बनमें ? ।  गरज रहा है अवाज सिरपे ,  सोच जरा मनमें ॥टेक ॥  झूठ पसारा देखत भूला ,  नाश होय छिनमें ।  आया वैसा चला जायेगा ,  चित्त देता क्यों धनमें ? ॥ १ ॥  देखत देखत कई मरगये ,  मायाके बनमे ।  काल - शेर डखरे सिर ऊपर ,  फाड खायगा पलमे ॥२ ॥  गुरुनामकी लगाले दिवटी ,  ग्यान - शस्त्र ले करमें ।  तुकड्यादास कहे , चल मारग ,  चढ जा ऊँचे घरमें।।३ ।। 

भक्ति रखे दिलके अंदर

 ( तर्ज - पिया मिलनक काज आज ० )  भक्ति रखे दिलके अंदर ,  जब नर वह तरता है ।॥ टेक ॥  प्रेम - भावसे राम पुकारो ,  प्रेम साथ करता है ।  बिना प्रेमके कोउ न बुझे ,  प्रेम रंग भरता है ॥ १ ॥  संत तुका ' जव लगा हरीसे ,  नहि पीछे हटता है ।  ' नामा दरजी ' प्रेमभक्तिसे ,  मंदिरमें डटता है ॥२ ॥  प्रेम हरीमे लगाके ' गोरा ' ,  लडका तुडवाता है ।  प्रभु आयकर उसे सम्हाले ,  दुख सारा हरता है | ॥ ३ ॥  तुकड्यादास कहे , कर प्रेमा ,  भव जब यह सरता है ।  भाव - भक्तिसे भजे तो उसकी ,  जानहि उद्धरता है ॥ ४ ॥

कौन तरे भवपूर शूर

 ( नज - पिया मिलनके काज आज ० )  कौन तरे भवपूर शूर ,  तरनेवाला न्यारा ॥  लाख हजाराम ही कोई ,  विरला है प्यारा ।  इस मायाके घूँघटमांही ,  नाचे यह जग सारा ॥१ ॥  पुरब जनमके सुकृतसे ,  जिनमें भक्तीकी धारा ।  कर्म धर्म सय प्रेमरूप हैं ,  बोधनसे मन मारा ॥२ ॥  महान पंडित बड़े बड़े जो ,  उनको विकट किनारा  जो कोई ग्यानी गुरुसे लागा ,  उसे मिला है थारा ॥३ ॥  काम क्रोधको कर कायूमें ,  मनको अंदर मारा ।  तुकड्यादास कहे , वह तरगये ,  ' मैं तू ' भेद बिसारा ॥४ ॥ 

क्या बातोंसे जाने भाई !

 ( तर्ज - पिया मिलनके काज आज ० )  क्या बातोंसे जाने भाई !  अनुभव न्यारा है ॥ टेक ॥  जोगी जोग बढावत सारे ,  उन्हें न थारा है ।  विरला कोई दर्दी इसका ,  जिन्हें उजारा है ॥ १ ॥  पुराण - पोथी साथ न आती ,  मुखमें भारा है ।  शुद्ध भावसे करे करनिको ,  वहिको तारा है ॥२ ॥  रहे जगतमें जगसे न्यारे ,  ध्यान संभारा है ।  अंतर दृष्टी लगी है जिसको ,  वही पियारा है ॥ ३ ॥  कहता तुकड्या अलक - पलखमें ,  ध्यान सँवारा है ।  सुख - दुख तनपर झेल रहे ,  अलमस्त बिचारा है ॥४ ॥

भोलानाथ ! दयाल ! दया कर

 ( तर्ज - पिया मिलनके काज आज ० ) भोलानाथ ! दयाल ! दया कर ,  तार मुझे भवसे ।  तुमही हो दीननके दाता ,  प्रीय हमें सबसे ॥टेक ॥  आस लगी दर्शनकी मनमें ,  द्वार खडा कबसे ।  आन मिलो दीननके दाता !  नैन लगे तरसे ।। १ ।।  व्याघ्रांबर आसन तनु शोभे ,  भुजपर सर्प बसे ।  अंग बभूत जटा सिर ऊपर ,  गंग - धार बरसे ।। २ ।।  तिलक कपाला , चंद्र विशाला ,  तिसरो नैन लसे ।  शंख त्रिशूल बिराजे डमरू ,  नंदी स्वार कसे ।। ३ ।।  तुकड्यादास कहे मन भावे ,  अवधुत भेख जिसे  राम रटे जिनकी जिंह हरदम ,  अर्ज हमारि उसे ॥४ ॥ 

कौन दूजा यहाँपर ?

 ( तर्ज - क्यों नहीं देते हो दर्शन ० )  कौन दूजा यहाँपर ?  सोच कर इस बातका ॥टेक ॥  सब तेरे सम हैं जगतमें ,  एकही जीके बने ।  जीव अरु जो ब्रह्म है ,  नहि भेद उनमें जातका ॥१ ॥  कर्मसे न्यारा हुआ ,  अभिमान धरके देह पर ।  जब जान लेगा ग्यानको ,  तब भय मिटेगा मौतका ॥२ ॥  तम भरा अग्यानसे ,  दिखती अँधारी आँखमें ।  प्रभुके भजनका जब नशा ,  आवे मजा फिर भाँतका ॥३ ॥  कहत तुकड्या भूल मत ,  इस द्वैतके अंधियार में ।  तू एकहीसा है समझकर ,  लौ लगा उस नाथका ॥४ ॥ 

गर्व मत कर देहका ,

 ( तर्ज - क्यों नहीं देते हो दर्शन ० )  गर्व मत कर देहका ,  यह स्वप्न सम  जग - बाग है || टेक ||  फूल फूलनको लगाया ,  फूलने फूले बनाया ।  एक क्षणमें फूल सूखे  लग गयी जब आग है ॥ १ ॥  अजब दुनियाकी घडन ,  मालुम नहीं किसने करी ।  क्षण एकमें है बादशाह ,  अरु एक क्षणमें फाग है ॥२ ॥  कोइ ना जगमें रहे ,  जोगी तपी और बादशाह ।  हो गये सारे फना ,  निकले निराला लाग है || ३ ||  कहत तुकड्या मौज है ,  देखो निराली आँखसे ।  इसका बनैया कौन है ,  यह मोहिनीका सुहाग है ॥४ ॥ 

मस्त होता है उजारा

 ( तर्ज - क्यों नहीं देते हो दर्शन ० )  मस्त होता है उजारा ,  खोल देखो आँखियाँ ।। टेक ॥  लाल अरु पीला निला है ,  श्याम बादल छा रहा ।  मोतियोंसम फूल बरसे ,  रंगसे रंग है नया ॥ १ ॥  आँख मिचके देख लो या ,  जान लो आँखों खुली ।  नैन आवे जब भितर ,  परकास तब होता भया || २ || सुन्न होता है बदन ,  अरु बंद होती खिडकियाँ ।  तब गर्जता दिखता अनाहद ,  जैसि मीटी बंसियाँ  || ३ || कहत तुकड्या मार्गमें ,  प्रभुके मिला करती तऱ्हा ।  चढने लगे मन उन्मनी ,  तब रंग रहते पीछिया ॥४ ॥ 

मानले साधो ! कही ,

  ( तर्ज - क्यों नहीं देते हो दर्शन ० )  मानले साधो ! कही ,  क्यों बन - बनोंमें  फिर रहा ? ॥ टेक ॥  भेद दिलका छोड दे ,  अरु दंभ मनका मोड दे ।  विषय - मारग खोड दे ,  क्यों कालके घर गिर रहा ? ॥ १ ॥  नीच उँच नहि जानना ,  सब दुःख सुख सम मानना ।  नाम जप हरिका सदा ,  संसारसे तव तिर रहा || २ ||  कुछ नही बनता है करनेसे ,  तिरथ अरु धामभी ।  शुद्ध कर दिलका कपट ,  क्यों भूल भ्रममें गिर रहा ! || ३ ||  कहत तुकड्या , प्रेम हरिका ,  जब तलक जीमें नही ।  सब फोल है बन दौडना ,  क्यों तूभि नाहक  शिर रहा ? || ४ ||

राम सबमें है भरा फिर

 ( तर्ज- क्यों नहीं देते हो दर्शन ० )  राम सबमें है भरा फिर  क्यों ढँढोले जाताको ? || टेक || नर ! जन्म सबका एक है ,  उनके स्वरूप अनेक है ।  नाम यदि कोई लाख है ,  पर भेद क्यों सच बातको ? ॥१ ॥ रंक - राजा जोगि - भोगी ,  रोगि अरु एक चोरभी ।  बाहरीका रंग है पर ,  आतमा सम साथको ॥२ ॥  जीव - सृष्टीकी बनाई ,  वर्ण अरु यह जात है ।  ढूँढलो सत् - संगसे , नाता ,  इन्हें क्या नातको ? || ३ ||  कहत तुकड्या योगियोंकी ,  जात न्यारी हैं सदा ।  वे चाहते हैं शुध्द दिल ,  अरु ब्रह्म सबकी भाँतिको ॥४ ॥

धीरे धीरेसे चलना

 ( तर्ज लीजो लीजो खयरिया ० )  धीरे धीरेसे चलना  सम्हलके गडी !  बहते जाओगे ,  लाटें उछलती बड़ी  || टेक || काम क्रोध ,  मगर - मच्छ ये सतायेंगे ।  लोभ , मोह ,  दंभ जियाको दुखायेंगे ।  तेरी किस्मत सभी  होगी आडी पड़ी ।। १ ।।  जगत मायाकाहि बना ,  ना सम्हल सके ।  होयगा बदनाम तू ,  ना फेर रुक सके ।  फिसले पैर विषयमें  तो देहि नडी ॥ २ ॥  सोच सोचकर उठा  कदमको नेकिसे ।  लौ लगा हरीके  भजनमें जिया जिसे ।  कहता तुकड्या  गुरुके संग प्रीत जड़ी ॥ ३ ॥ 

संगमें चोरोंका काहे बजार किया

 ( तर्ज लीजो लीजो खवरिया ० )  संगमें चोरोंका काहे बजार किया ?  माथे पापोंके गंज  बढाय लिया ॥ टेक ॥  दुश्मनोंकी संगती  यह नाश कर रही ।  यह नाश कर रही  ना कभी प्रभु - भक्तिमें  रंगा दिया सही ।  अपने जीवनकी  काहे धुलधान किया ? ॥ १ ॥ संगतो सत्‌की करो ,  रहो खुशी सदा ।  है नहीं धोखा कभी ,  मरे जिये सदा ।  सेतो बातें ना मेरी  तू मान लिया ॥२ ॥  छोड़ दे वैमानिको  न पार पायगा ।  अंतमें वह काल  बडाही दुखायगा ।  कहता तुकड्या समझ ,  घर ग्यान दिया ॥३ ॥ 

प्यारे ! उमरीया खो मत , मान मेरा

 ( तर्ज लीजो लीजो खबरिया ० )  प्यारे ! उमरीया खो मत , मान मेरा ।  करले नेकी जगतमें ,  न सोचो बुरा ॥ टेक ॥  भागसे पाया जनम न खो बुराइमें ।  साधले प्रभुकी दया तू इस हुशारिमें ।  काहे भटक भटक  जीया देत हरा ॥ १ ॥  खेलके जुगार ,  माल - धन गमा दिया ।  चोरि जारि कर हमेश  नाक कट लिया ।  गठरी पापोंकी संगमे  यह काहे भरा ? ॥२ ॥  भूलके विषयों में  उमर यार ! खो दिया ।  पल कहीं उपकार  किसीपे नहीं किया ।  कुलको दाग लगा ,  किया नाश पूरा ॥ ३ ॥  अब रही जो साधले ,  गईको भूलके ।  नेकि कर जगतमें  प्रभू - नाम ले लखे ।  कहत तुकड्या ,  जनम यह सुधार तेरा ॥ ४ ॥ 

मेरा प्यारा किधर गया

 ( तर्ज लीजो लीजो खबरिया ० )  मेरा प्यारा किधर गया ?  भूल परी ।  मोरे नैनोंमें कैसी  यह नींद भरी ? || टेक ||  वक्तमें कोई न खडा पूछने जावे ।  याद तो प्यारेकी हमें आय सतावे |  कबसे ढूँढ लिया तनकी नगरी ॥ १ ॥  है नहीं दुनियामें सार प्यारेके बिना ।  कुछ नही जग-जालमें  हमने लिया चिन्हा ।  उसको आँखो  दिखाओ जरा हमरी ॥२ ॥ अब तो नही है चैन ,  जिया बावला बना ।  पाया कभी तुम्हें तो ,  आओ , दो बताओना ।  कहता तुकड्या मिलादो  मोहे कृष्णहरी || ३ || 

मोरे नैनोंमें रामजीके नूर खडे

 अप्र( तर्ज लीजो लीजो खवरिया ० )  मोरे नैनोंमें रामजीके नूर खडे जब लंकामें जायकेवह  जंग लडे || टेक ||  जब दैत्य चुराकर  सिता बनवार ले गया  खूली हुई थी झोपरी  और कोई ना रह्या सिता सतियोंकेभी  यों है हाल बडे  || १ || भक्त रामकेहि  अधिक राम - नामसे ।  शक्ति है उनमें वडी ,  बस राम - प्रेमसे ।  सोही धन्य हैं ,  जिनके भाव जड़ ॥२ ॥  हनुमान मारके उड्डान  सेतु बँध लिया ।  दैत्य भार ठार कर ,  अँगूठी दे सिया ।  सीता - चरणों मे  जायके प्रेम बढ़ || ३ ||  नाश करके रावणकी  शक्तियाँ सभी ।  रामने उडाये शीर  थे दशों तभी ।  कहता तुकड्या ,  विभीषण के भाग जुड़े ॥ ४ ॥ 

गुरुनाम , प्रभुनाम , नहि भेद या में

 ( तर्ज - इस तन धनकी कॉन ० )  गुरुनाम , प्रभुनाम , नहि भेद या में ।  दोनों भी समभाव  पाव जियामें ॥ टेक ॥  गुरु भेद दे कर्म बैराग ग्याना ।  प्रभु प्रेम दे एकही भक्ति थामे ।। १ ।।  अदृश्य प्रभु - रूप , हैं दृश्य गुरुदेव ।  निज तत्व एकीके हैं जामें तामें ॥ २ ॥  साधकको गुरु मान्य ,  संतोंको प्रभु धन्य ।  अपने करम ऊँचे  पावे निशाने || ३ || कहे दास तुकड्या ,  सभी एक माला ।  धागा हो , मनिया हो ,  नहि भेद वामें ।। ४ ।। 

राम - भजन सबसे अति प्यारा

 ( तर्जनधनकी कौन ० )  राम - भजन सबसे अति प्यारा ।  राम - भजनने  कई जीव तारा ॥टेक ॥  मूरख जानत नाहीं मरमको ।  सो दुख भोगत जमके दुवारा ।। १ ।।  ' राम ' कहत हनुमान उद्धरे ।  कूद पड़े , लंका हर डारा   || २ ||  रामके नामसे तरी अहिल्या ।  वाल्मिक ऋषि ले नाम उद्धारा ॥ ३ ॥ तुकड्यादास कहे तुम सुमरो ।  तबहि कटे भवसागर सारा ॥ ४ ॥ 

ऐ नाथ ! सुन हमारा

 ( तर्ज उँचा मकान तेरा ० )  ऐ नाथ ! सुन हमारा ,  घर दुर्जनोंने लूटा ।  कबसे सुना रहा हूँ ,  कफसे अवाज टूटा  || टेक || मालिक है तू जगत्का ,  इन्साफ कर दे मेरा ।  कितना अभी सहूँ मैं ?  सहनेका वक्त खूटा ॥ १ ॥  तूने अगर बनाई ,  दुनियाकी यह बगाई |  फिर पाप क्यों बना है ?  हमरा नशीब फूटा  || २ ||  पल नाम मुख न आवे ,  विषयोंमें मन लुभावे ।  साथी न कोई आवे ,  जब काल दे चपेटा || ३ ||  काया बिखर रही है ,  तुमको खबर नहीं है ।  तुकड्या कहे यह सुध लो ,  तेरी कसम , न झूठा ॥ ४ ॥

ईश्वर न मानता हूँ

 ( तर्ज - उँचा मकान तेरा ० )  ईश्वर न मानता हूँ ,  तो मैं बुराहि होगा ।  हंकारके जलनमें ,  मेरा चुराहि होगा  || टेक || दुनिया भटक भटककर ,  नहि सौख्य - शांति पाई ।  कुछ तो कसूर मेरा ,  मुझमें धराहि होगा || १ || ना प्रेमसे निभाया ,  जीवन किसी गरिबका ।  तो मैंन जीके आखिर ,  पातक कराहि होगा || २ || नहि ने किसे चला मैं ,  धनमें लगाया मनको ।  लूटा गरीव जनको ,  जमसे घिराहि होगा ॥३ ॥  कुछ संतका न माना ,  विषयों में था दिवाना ।  तुकड्या कहे यह बेशक ,  मेरा गुन्हा हि होगा || ४ ||

क्यों सोरहा दिवाने !

 ( तर्ज - उँचा मकान तेरा ० )  क्यों सोरहा दिवाने !  उमरी सभी गमाता ।  गोते लगाके भ्रममें ,  फिर काल - घर भ्रमाता ॥टेक ॥  सुध ले जरा गुरूकी ,  पुछ ग्यानकी निशानी । ।  प्रभु है भरा सभीमें ,  ' ये जान उनसे बाता ।। १ ।।  एकांत बैठकरके ,  कर स्थीर चित्त अपना ।  दृष्टी बनाके उलटी ,  आनंद क्यों न पाता ? || २ ||  दस - नादकी मधूरी ,  बजती है एकतारी ।  अलमस्त रंग पाता ,  वह प्रेम क्यों न छाता ? ॥३ ॥  तुकड्या कहे गुरूकी ,  जाके शरणमें , भाई ! ।  पावन बनाके जीको ,  उद्धार क्यों न पाता ? ॥ ४ ॥

ऐ विश्वनाथ स्वामी !

( तर्ज - उँचा मकान तेरा ० )  ऐ विश्वनाथ स्वामी !  सुनलो पुकार मेरी ।  द्वारपर खडा में ,  क्षणही करो न देरी ॥ टेक ॥  है विश्व द्वार तेरा ,  जो कुछभि ले उठाले ।  सामान सब भरा है ,  रचना निराली तेरी ॥ १ ॥  हरएक रंग - ढंगसे ,  जो खेल खेलते हैं ।  मुझको जरा न भावे ,  यह शानकी नजारी ।। २ ।।  मै चाहता हूँ तेरा ,  दर्शन मुझे मिले वह ।  बस आस यह लगी है ,  करदो फिकरको पूरी ॥३ ॥  तुकड्या कहे मेरा मन ,  विषयोंमें ना घुमाओ ।  खींचो चरणमें अपने ,  यह अर्ज है हमारी ॥४ ॥ 

तेरी लिला प्रभुजी !

 ( तर्ज - उँचा मकान तेरा ० )   तेरी लिला प्रभुजी !  मुझसे कही न जावे ।  बेहद है समझना ,  इस दृष्टि में न आवे  || टेक || खूबी तेरी निराली ,  तेरेहि मस्त पावे  || १ || हर एक जी निराले  है शान - मान ढँगसे ।  अपनाहि मत लगाव ,  किसका कहा न भावे  || २ || कर्तव्य भी निराले ,  लडते हैं योंहि जगसे |  तुकड्या कहे गुरुविन ,  नहि बेद जान पावे || ३ ||

ऐ दीनबंधु मेरे !

 ( तर्ज - उँचा मकान तेरा ० )  ऐ दीनबंधु मेरे !  सुनलो खबर हमारी ।  भूले हैं हम जगत्में ,  नहि याद भी तुम्हारी || टेक || दिनसे कई फँसे हैं ,  भवजालमें घुसे हैं ।  अब ना करूँ यह आसा ,  बस लाज रख मुरारी ! ॥१ ॥  खुब कामने सताया ,  नहि सो करा - कराया ।  मेरा जनम गमाया ,  तुम जानते हो सारी ॥२ ॥  अभितक न संत - सेवा ,  मुझको मिली कहाँपर ।  उमरी गई बितीही ,  अब ना करीये देरी ॥३ ॥  तुकड्या कहे , मुरारी !  वस बुद्धि दे निराली ।  ना मैं भुलूँ तुम्हारी ,  आग्या कहीं पियारी || ४ || 

किसको सुने न आवे

 ( तर्ज - उँचा मकान तेरा ० )  किसको सुने न आवे ,  भ्रम - भूलमें भुले है ।  माने न कोई सत्का ,  जम - ओर सव चल हैं ॥ टेक ॥  भव - जाल यह विछाया ,  इसमें भराय जादू |   मायाके खेल माँही  सब जीवनभी ढले है  || १ || साधू सुना रहे हैं   जगको जगा रहे हैं ।  पर कौन मानता है ?  मृगजलमें ये इले हैं ॥ २ ॥ अपना किया भरनको ,  फिर दुःख भोग पावे ।  लगता है दु : ख जी को ,  तव भक्तिमें झुले है  || ३ || तुकड्या कहे अनुभव ,  संतोंने ले लिये है ।  करके सुना रहे हैं ,  मानो , भला खुले हे ॥४ ॥ 

करना देहहिको सारा

 ( तर्ज - संगत संतनकी करले ० )  करना देहहिको सारा ,  आतमा है सबसे न्यारा ॥टेक ॥  देहहिको कर कपडे लत्ते ,  जरतारीका बाना ।  एक दिन देही चल जावे तो ,  मिट्टी होगा सोना ।। १ ।।  देहहिको कर माडि हवेली ,  सबसे उँच ठिकाना ।  एक दिन देहहि सुन्न पडेगी ,  पडा रहेगा ठाना ॥ २ ॥  घोडा , जोडा , गाढ़ी - तकिया ,  देहहिको है पाना ।  देहहिसे जब प्राण भगेगा ,  होगा दानादाना ॥ ३ ॥  कहता तुकड्या थोडेसेको ,  क्यों करता है खोडी ?  पड़ रहो निर्बान मस्तिमें ,  करो प्रभू - से जोडी ॥४ ॥ 

वही है संत पुरा भाई

 ( तर्ज - संगत संतनकी करले ० )  वही है संत पुरा भाई !  आपमें अपना रुप पाई || टेक ||  परनारी और परधन देखत ,  दूरसे घबराई ।  दुनियामें क्या हालचाल है ,  उसे खबर नाही ॥१ ॥   अस्ती भाति प्रीय ' रूपमें ,  रँगके धुन पाई ।  तनका भेद - भाव सब भूले ,  चित्त अंदर लाई ॥२ ॥ सत्य वचन नित कहे जवाँसे ,  होवे सचताही ।  काम क्रोधको वशमें कीन्हा ,  नहि लालच कोई || ३ ||  राजा - रंक समान उसीको ,  सर्व ऋतुओं में एक सरीखे ,  दूजेपन नाही ।  निरस - हरसमाँही ॥४ ॥  कहता तुकड्या वही गुरू कर ,  मोक्ष मिले भाई !   उसकी संगत सव दुनियाको ,  होवे सुखदायी ॥५ ॥ 

हमसे क्यों करते बातें

 ( तर्ज - संगत संतनकी करले ० )  हमसे क्यों करते बातें ?  हमको पागल कहवाते || टेक || नही हमारा मँगना किसको ,  फिर क्यों दुखवाते ?।  आये फिरते फिरते यहाँपर ,  खुशी उधर जाते || १ || पंच कोशका महल हमारा ,  बिच उसके रहते ।  दिल - दरगेकी खिडकी भीतर ,  दुनिया लख पाते ॥२ ॥  पूजा - पाती , नाक पकरना ,  कभू नही पाते ।  कुदरत जैसी बखत दिलावे ,  उसमें गुण गाते ॥३ ॥  जाती , पाँती , नाती इनसे  दूर सदा रहते ।  सद्गुरुसे लौ लगाके अपनी ,  उसमें डुल रहते ॥४ ॥  हमपर ताबा है न किसीका ,  हम सबसे न्यारे ।  कहता तुकड्यादास गुरूका ,  आपहि उजियारे ॥५ ॥ 

बाँके लडते जगमाँही

 ( तर्ज - संगत संतनकी करले ० )  बाँके लडते जगमाँही ,  पता तो एकहिको नाही ॥ टेक ॥  सार बिचारा सबने छोड़ा ,  अहंकारके साथी ।  आप आपमें करे लडाई ,  संग नही कुछ आती ॥ १ ॥  एक कहे ' सुनो पंथ हमारा ,  सबसे उँचा जाके ' ।  एक कहे ' तू कौन कहाँका ?  बेद पढ़ाओ लाके ' ॥२ ॥  पंथ - पंथसे लगी लडाई ,  लंगोटीका तंटा ।  परमेश्वर तो न्यारा सबसे ,  यही बजाते घंटा || ३ ||  हिंदू और मुस्लिमकी खूनें ,  पडती है इसमाँही ।  ' सब दुनिया तो एक बापकी  इनको नहि कबुलाई || ४ || कहता तुकड्या खोज किये पर ,  होगी यह चतुराई ।  पता लगेगा ' ईश्वर सबमें ,  ' नाही दूजा भाई !  || ५ ||

गफलत क्यों बैठा बंदे !

 ( तर्ज - संगत संतनकी करले ० )  गफलत क्यों बैठा बंदे !  झूठ ये चोरनके फंदे || टेक ||  इस फंदम्याने रहा न कोई ,  इसने सबको लूटा ।  बडे बडे साधक औ योगी ,  इनसे कोउ न छूटा ॥१ ॥  आजतलक जो उमर गई सो ,  गई , साध ले आगे ।  गुरु - नामकी ले लो माला ,  मत फिर भागे भागे ॥ २ ॥  नहि कुछ मौल जगतके माँही ,  सत्‌का कहना ऐसा ।  अलख - रूप अविनाश पछानो ,  करलो अंदर बासा || ३ ||  दिलमें धर प्रभु - ध्यान भजनकर ,  लौ लगवाके भाई !  कहता तुकड्या दास गुरूका जब ये चोर हटाई ॥४ ॥ 

सचको क्यों भूले भाई

 ( तर्ज - संगत संतनकी करले ० )  सचको क्यों भूले भाई !  झूठ संगतको पाई  || टेक ||  जो जाने मन - वात ,  उन्हीको संत कहा करते हैं ।  किसने यह बतलाया तुमको ?  नाहक क्यों बहते हैं ? ॥१ ॥  भूत - खेतको करे दूर जो ,  उसको ‘ साधू ' कहते ।  लडके - लडकी माँगे उसको ,  उससेही खुश रहते ॥२ ॥ आग लगी विषयनकी उसमें ,  क्या वह शांति देवे ? ।  वह तो खुद संसारी है ,  और तुमको लूटा लेवे ॥३ ॥  कला पाठ कर , नजरबंदसे ,  लोगनको ठगवावे ।  तुकड्यादास कहे , बिन सोचे ,  क्यों नर मरना पावे ? ॥४ ॥ 

कुफरको हटा अभी प्यारे

 ( तर्ज - संगत संतनकी करले ० )  कुफरको हटा अभी प्यारे !  देख दिलदार पास तेरे || टेक || काशी मथुरा क्यों जाता है ?  तीरथ क्या तारे ?।  मन मैला नहि जबतक धोवे ,  कहीं न सुख है रे ॥१ ॥  चार धाममें उमर गुजारी ,  नहि प्रभु पाया रे ।  दिलका कपट हटा संगतसे ,  प्रभु प्रगटाया रे || २ ||  वेद , पुराण , कुराण , पढकर ,  पंडित सव हारे ।  इस मायाके झगडे म्याने ,  बह जाते सारे ॥३ ॥  कहता तुकड्या सद्गुरुकेबिन ,  कौन दुजा तारे ?  उनकी दीक्षा लेकर भाई !  रटो नाम जा रे ॥ 

तनको मलमल न्हाया है

 ( तर्ज - संगत संतनकी करले ० )  तनको मलमल न्हाया है ,  उसे दिल मैल बढाया है ॥ टेक ॥  सुगंध अत्तर खसकी साबू ,  खूब लगाया है ।  दिलका मैल बढे दिन - दिन में ,  झूठी माया है ॥ १ ॥ पेचपाचकी पगडी बांधे ,  ढाल घडाया है ।  नजर हमारी परधन देखे ,  जनम गमाया है ॥२ ॥  शाल दुशाला जरि - पैजामा ,  गोफ लगाया है ।  पर स्त्री देखत जलता मनमे ,  नर्क उठाया है  || ३ || कहता तुकड्या सब बाहरका ,  पहिना बाना है ।  काम क्रोधको वश नहि कीन्हा ,  सारा रोना है  || ४ ||

उठो खोलो नैना भैया

 ( तर्ज - संगत संतनकी करले ० )  उठो खोलो नैना भैया !  जतनकर नरतन जो पाया ॥ टेक ॥  लख चौऱ्यासी घटके भीतर ,  खूब पडा था सोया ।  काम क्रोधने लूटा बंदे ,  घरकी गठडी खोया ।। १ ।।  अजब करामत है मायामों ,  सबको भूल गिराया ।  न्यारा न्यारा रंग बनाकर ,  बाजिगरी बनवाया || २ ||  पुरव जनमकी रही कमाई ,  फिर मानवतन पाई ।  अबतो नींद तजो मेरे भाई ,  भजलो दिलसे साँई ॥३ ॥  सत् संगतमें जाकर करले ,  अपनी खास कमाई ।  तुकड्यादास कहे प्रभु भजले ,  पुरी कमाई पाई ॥ ४ ॥ 

चल कदम बढाकर आगे

( तर्ज - नैनोके भीतर नीला बीच ० )  चल कदम बढाकर आगे ,  दिल रँगवाके काम कर ॥ टेक ॥  क्यों विषय - लोभमें चटका ?  फिर काल बजावे फटका ।  मिले जनम मरणका झटका ,  कहना मेरा मानकर ॥ १ ॥  क्या जरा लगाता नाता ?  अंतमें अकेला जाता ।  बिन हरी जिया घबराता ,  भज हरिगुणको जान कर ॥२ ॥  बालापन खेल गमाया ,  तारुण विषयनमें खोया ।  वूढापन रोग सताया ,  माया लपटी आनकर ॥३ ॥  कहे तुकड्या सबकी रीती ,  ये मिलती है परतीती ।  तू जान मिला मजबूती ,  हरि - गुण गा ले ध्यान कर ॥४ ॥ 

तुमबीन कौन है हमें

 ( तर्ज - किस देवतानें आज मेरा ० )  तुमबीन कौन है हमें ,  ए नाथ ! आखरी ? ।  पूरी न साथ देयगी  दुनियाकि चाकरी  || धृ. || संसारके इस चक्र - जालमें  फँसा हूँ में ।  बस , याद तेरे कष्टकी है  आस कर पूरी ॥१ ॥  तुझसा न प्रीय जगतमें ,  दूजा मिले हमें ।  बस , दे दिदार आयके ,  यह अर्ज है भरी ॥२ ॥  कोई न मेरे पास है  कि मेरी अर्ज दे ! ।  दरबार में में पेश हूँ ,  सुनवा होजा मेरी  || ३ || तुकड्या कहे , कहो न कहो ,  यहही है लगन ।  भये है मगन नाममें ,  न प्यास दूसरी ॥४ ॥

ऐ कृष्ण ! तेरा नाम तो

 ( तर्ज - किस देवताने आज मरा ० )  ऐ कृष्ण ! तेरा नाम तो ,  मुझको अधार है ।  तेरा भरोसा है ,  तेरी महिमा अपार है  || टेक || ना रहे मन धीर  जगत - जाल मालमे  बस , ध्यान तेरा  जानसे लगाही तार है  || १ || मोर - मुकुट कुंडल  गले वैजयंति हो ।  आँखें लगी रहे ,  यही देखूँ दिदार है   || २ || और तो सभी भरे  है कामके गड़ी ।  बस , रूप तेरा चक्र  बेडा करत पार है ॥३ ॥  तुकड्या कहे प्रभू !  हमें न छोडिये कभी ।  तेरी लगनमें चूर हो ,  यह तन निसार है || ४ || 

मनमें नही अब धीर

 ( तर्ज - किस देवतानें आज मेरा ० )  मनमें नही अब धीर ,  वो रघुबीर कब मिले ? ।  वह भक्तके अधार प्राण ,  जानसे भले ॥ टेक ॥  उमर जा रही , न याद आती है कभी ।  क्या करे किसे धरे ,  वो श्याम कब मिले ? ॥१ ॥  कहो कोई जडीबुटीको ,  पीके मर गये ।  व्यर्थ जिया है मेरा ,  वो श्याम कब मिले ? ॥२ ॥  दम न रहे दममें ,  चित्त भौंर खा रहा ।  तुकड्या कहे वो भक्तका ,  रघुवीर कब मिले ? ॥ ३ ॥

इस जगमें श्रीगुरु पावन है

 ( तर्ज - दर्शन बिन जियरा तरसे ० )  इस जगमें श्रीगुरु पावन है ।॥ टेक ॥  नर ! कर सत्‌संगत दिलहीसे ।  सुख पावे भर जीवन है ।। १ ।।  जो जो सुनत करत या तनसे  पद पावे वह पूरण है ॥ २ ॥  देव ऋषि मुनि गुरुके सीखे ।  बिन गुरु फिरते बन बन है ॥ ३ ॥  तुकड्यादास कहे जा वहँही ।  जहाँपर बिसर जात मन है ॥ ४ ॥

इस जगमें कोइ न साथी है

 ( तर्ज - दर्शन बिन जियरा तरसे ० )  इस जगमें कोइ न साथी है ॥ टेक ॥   सोच समझकर अपने हित को ।  बख्त घडी पल जाती है ।। १ ।।  सब मतलब के गर्ज बताते ।  आखिर होवत घाती है ॥ २ ॥  जबतक पैसा तबतक नाता ।  धन - हिन होत फजीती है ॥ ३ ॥  तुकड्यादास कहे बिन हरिके ।  कोउ न शांति सुहाती है || ४  ||

नर ! सोच , कि अपना

 ( तर्ज - दर्शन बिन जियरा तरसे ० )   नर ! सोच , कि अपना  कौन यहाँ ? ॥टेक ॥  मात पिता है कष्टके प्यारे ।  बिन कष्ट मोहे ' दूर ' कहा || १ || जोरू तो ज्वानीकी साथी ।  धनके खातिर देत गहाँ || २ ||  लड़का तो चाहता है अरामी ।  वहि भगता है जहाँ वहाँ  || ३ || तुकड्यादास कहे बिन हरिके ।  आखिर अपना कौन रहा ?  || ४ ||