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फेब्रुवारी, २०२२ पासूनच्या पोेस्ट दाखवत आहे

चाल चला

  चाल चला  ( तर्ज : ना मानूं , ना मानूं रे ... )  चाल चला , चाल चला ,  चाल चलारे ! ।  फेर आखरी में कुंजन की  चाल चलारे ॥  मेरे दिलको चुराये  भली चाल चलारे ! || टेक || पीछे चुराई थी गोपी हजारो ।  तेरा चोरी का धंदा  तू नही भूलारे , मोहन ! ॥१ ॥  कितने गोपालोंको मारा बगल में ।  हम - जैसे को भी  तो मोह डालारे , मोहन ! ॥२ ॥  तू भी अजब ,  तेरी बन्सी अजब है ।  दिखने को काला ,  तेरी वैसी कलारे मोहन ! || ३ ||  मैंने कहा की अब होगा सीधा ।  भगतों के मनमें  मार डालारे , मोहन ! ॥४ ॥  हमको तो तेरे बिना ,  सूझे ना कोई ।  तुकड्याको घेर लिया ,  बन्सिवालारे , मोहन ! || ५ ||   तिरोडा ; दि . ४-१०-६२

बात करो

  बात करो   ( तर्ज : ना मानूं ना मानूं ना मानूं रे ... )  बात करो , बात करो , बात करोना ।  काहे रूठ गये हमसे  तो बात करोना ।।  जरा सुंदर नजर से  मुस्कान भरोना ! ॥ टेक ॥  दुनिया भले कोई माँगा धन है ।  मैं तो तुम्हारे आये  पैर परोना ! ।। १ ।।  लडका ना होना तिरीया न होना ।  ना होना सत्ता का  पोज बहाना ! ॥२ ॥  मुक्ति ना माँगू , मैं स्वर्ग ना जाऊँ ।  तुम्हरी ही भक्ती से  रंग देवोना ! ।। ३ ।। कब से हो ठाडे मंदर में मोहन ।  अभी चूप रहने का  नहीं जमाना ! ।। ४ ।।  तुम नहीं बोलो तो बोलेगी माया ।  तुकड्या को मुस्किल से  होगा निभाना ! ॥ ५ ॥  तिरोडा ; दि .५. १०. ६२ 

ओ ! स्वर्ग के गामी

  ओ ! स्वर्ग के गामी ??  ( तर्ज : जो निर्दयी प्रीतम ... )  ओ ! स्वर्गके गामी , अंतरयामी ??  मोहे न भुलाओ ,  तुम हो मेरे स्वामी ! ॥ टेक ॥  मैं हूँ तुम्हारा भक्ती - पतंग ।  फिर हो क्यों मेरा मन तंग ?  जंग नहीं , यह विरहवान है ।  लगे खुलेगा रंग ॥   नैन लगेगी , नीर बहाने ,  हो प्रीत न बेकामी! ओ! ||१|| झाडू लगाऊँगा द्वारे ।  अटल जगाऊँगा पहरे  तुमरे काम करूँगा मैं सारे ||  रूखी - सुखीको , खाकरके  मैं-नाचुंगा निज धामी ॥ओ ॥२ ॥ तुम्हरे भक्तों में बल है ।  वो न करे किसके छल है ॥  उनको भाँता जंगल है ।   पर मेरा मन चंचल है ॥  मेहर नजर तो करदो अपनी   हो जाऊँगा प्रेमी ! ॥ओ ! .. ॥ ३ ॥  तुम्हरे चरणों की गंगा ।  रहूँ उसीमें मैं चंगा ।।  न्हाऊंगा मन धोऊँगा ।  नारे भले लगाऊँगा ॥  तुकड्यादास करो अब अपना ,  ले लोना हमरी हामी ! ओ ।।४ ।। 

अब तो बदलो ये

  अब तो बदलो ये  भारत की शान समझलो ।  अपने जिम्मे जो आये वो  काम समझलो ! ॥ टेक ॥  आलसी न रह पाये  जीम्मेदार आदमी ।  सबको लेके चले वो ही  होगा प्यारा आदमी ।  अपना- परका देखे वो है  बेकार आदमी ।  सबके लिये मरता वो है  सरदार आदमी  जनता को फँसावे ,  हैवान समझलो ! ॥१ ॥  पंचायत राजमें वही  कामयाब है न्यायसे ही चले देता  माकूल जुबाब है ।  ऊँचा चरित्रवाला हो  उसका ही दबाव है ।  भाई है ना साला ,  कोई मित्र है ना साब है ।  सभी मिलके रहो  तो आराम समझलो ! ॥२ ॥ हर किसकी बाणी बाजार घुमेगी ।  अनुभव की छानी दीवार बनेगी ।  सेवा की सूरत दीदार बनेगी ।  होनहार युवकों की कतार बनेगी ।  सामूहिक जीवन ही प्राण समझलो  वही धर्म होगा ,  जो सबको ईमान दे ।  वही धर्म होगा ,  जो शुद्ध खारपान दे ।  वही धर्म होगा ,  जो देशको बलिदान दे ।  वही धर्म होगा ,  जो भूखेको काम दे ।  कहे दास तुकड्या ,  निर्माण समझलो ! ॥४ ॥  वरुड ; दि .१. १०. ६...

मनमुराद पाप करो

  मनमुराद पाप करो   ( तर्ज : दो हंसो का जोडा ... )  मनमुराद पाप करो  जीवोगे कैसे ?  थोडा हुआ कैन्सर  तो खाओगे कैसे ?? || टेक || याद रखो नेकी से जीता आदमी ।  जनम जनम कीरत से  खाता आदमी ॥  रहनेवाला नहीं ये जाता आदमी ।  मगर किया जो - जो  बताता आदमी ॥  दिया है दिलवरने  तो पाओगे कैसे ? ।। १ ।।  किसके लिये पाप करो ,  जिन्दगी कितनी ।  उतने दिन जीवोगे बन्दगी जितनी ॥  समझ नहीं आवे जवानी है कितनी ।  बुढापेमें आस करे रानीयाँ कितनी ॥  डाले हुये पानीसे  न्हावोगे कैसे । ? ।।२ ।।  इसीलिये कहता हूँ ,  पाप ना करो ।  भाई- बंदगीसे रहो ,  ताप ना करो ॥  जहाँ रहो वहाँका  खा के साफ ना करो ।  नागानी ही जान को  संताप ना करो ॥  कहे दास तुकड्या ,  फिर  आवोगे कैसे ? ॥ ३ ॥  वरुड ; दि . १-१०-६२ 

मोरे हाथ पकड नाथ

  मोरे हाथ पकड नाथ  ( तर्ज : मोहे पनघट पे नंदलाल  )  मोरे हाथ पकड नाथ ,  त्रिकुट घाट गयो रे ।  जहाँ सुन्दर थी सेजपे  निवास कियो रे ! ॥ टेक ॥  द्विदल के चक्र लगे ,  भ्रमर - गुंफासे बिलगे ।  दंभ - दर्प जाय भगे ॥  मोहनी स्वरूप प्रेम  बाँध लियोरे ।। मोरे ..|| १ ||  अनहद की बीन बजी ,  अति मधुर सुंदर थी ।  मस्त भई दिल भर थी ॥  छाई नशा घोर ,  बडा शोर भयो रे ।। मोरे ..॥२ ॥  संत समागम ही मिला ,  जीवनका फूल खिला ।  सत्गुरु से हाथ दिला ॥  तुकड्याकी प्रेम - भक्ति ,  रास भयोरे ।। मोरे ... ॥ ३॥ 

अपने मतलब का गाना

  अपने मतलब का गाना  अपने मतलब का गाना  तो सभी कहेंगे ।  भाई । सेवाका बाना  अब कौन सहेंगे ? ॥ टेक ॥  रावण भी राजा था ,  तुमने भी सुना ।  कैसा हुआ रामजीसे  उसका धिंगाना ॥  जनता को धोखा देके  कौन रहेंगे । ? ॥ १ ॥  कौन - कौन राजे हवे ,  कौन - कौन गुण्डे ।  कौन - कौन सन्त हुये ,  कौन कौन बण्डे ॥  कौन - कौन शूर रहे ,  किसके रहे झण्डे ।  कौन - कौन कराल दाढी  सबही बने ठण्डे ||  मगर एक कीरत से  सबहि जीयेंगे ! ॥२ ॥  रघुकुल नीती की डींग मारते ।  मगर दूध बेचे में पानी डालते सारे अगुआ बनने में  नाम पुकारते ।  मगर बखत पड़े  जब पैर पसारते ॥  ऐसा करने से भार  क्या सुखायेंगे ? ॥३ ॥  पैर मिलाकर के चलो  तो है भलाई ।  खेति - किसानी में मलो  तो है भलाई ॥  भाई - भाई बनके खेलो  तो है भलाई ।  आपसी की बात झेलो  तो है भलाई |  कहे तुकड्यादास  अब तो वही रहेंगे ।।४ ।।  वरुड , दि . १-१०-६२

ओ ! भक्ति की ज्योति ??

  ओ ! भक्ति की ज्योति ??   ( तर्ज : ओ निर्दयी प्रीतम ... )  ओ ! भक्ती की ज्योति ,  मोह की मुक्ति !  दास बनाके , हमको ,  करो प्रचीती ॥ टेक ॥  हम हैं तेरी शरणांगत ,  निर्मल मनसे होनेको रत ।  अब नहीं है अभिमान बदनका ,  निश्चयसे कहते हैं मत ।  ज्यादा समय न लगने दो ,  पल - पल बीती जाती ! ॥ १ ॥  आज चढी है वृत्ति अखंड ,  कल क्या जाने होगा  षड्विकारकी झुंड बढे तब ,  होगा आपसमेंही बंड  इसीलिये करता हूँ अर्जी ,  गयी समय नहीं आती ||२|| बिना दर्शनके शान्ति नहीं ,  शान्ति बिना गयी भ्रांति नहीं ।  बिना भ्रांति गये ये मनकी ,  कभू बनेगी क्रांति नहीं ।  क्रांति बिना मन स्थीर न होता  है यह हमपर बीती ! ।।३ ।।  सुंदर अवसर यह आया ,  प्रभुने हम पर किया दया ।  पशु - पक्षीका जन्म छुडाकर ,  यह मानवका तन पाया  तुकड्यादास कहे , यह साधन ,  छोडके होगी बुरी गती ! ॥४ ॥  गोंदिया ; दि . ६-१०-६२

ओ ! शस्त्र के धारी ?

  ओ ! शस्त्र के धारी ?  ( तर्ज : ओ ! निर्दयी प्रीतम ... )  ओ शस्त्र के धारी ! प्रीय मुरारी !!  सुनो हमारी ,  बन्सि काहे बिसारी ?? ॥ टेक ॥  बन्सिसे नहीं काम बना ,  संकट क्या ही था इतना ?  हमने देखा , इस बन्सी से ,  सब गोपी हो गयी जमा ॥  ऐसा सबको मोहित करता ,  तबतो होती बलिहारी ! ॥१॥ किस पर शस्त्र चलानेसे  काबिज वह होता कैसे ?  दिल तो उसका जलता रहता ,  छुपकर रहता है वैसे ॥  सही काबिज तो वह होता है ,  अनन्यता जिसमें भरी || २ || जिसके बम्ब् गिरानेसे ,  दुनिया क्या जीती उनसे ?  वह तो मरके फिर जीयेगी ,  बदला लेनेको तुमसे !!  इसीलिये है तुकड्या कहता ,  अर्ज सुनो मेरी ! ॥३ ॥  देसाईगंज :  दि . ६-१०-६२ 

वो सन्त की बानी !

  वो सन्त की बानी !   ( तर्ज : ओ निर्दयी प्रीतम ... )  ओ सन्त की बानी ,  घर घर जानी ॥ कौन है ऐसा ?  नहीं जानेगा ! प्राणी ! || टेक || सब प्रदेश मे संत हुये सब भाषामें गीत कहे ।  एक्का अर्थ यहीं निकला है ,  सबके सँग बंधुता रहे ।।  फिर क्यो जनता , कहीं नहीं मानी ,  क्यों रहती अज्ञानी ? ॥१ ॥  संत तुकोबा यौ बोला ,  नीच ऊँच जो भेद चला ।  सब सारथ का धंदा है ये ,  ईश्वर तो सबमें है खुला ॥  जात - पात जो यों लड़ती है ,  है कारण अभिमानी ! ॥२ ॥  संत सावता भक्त बडा ,  खेती में ही रहे खडा ।  मूला - प्याज बनाकर सबको  दिखा दिया था मार्ग बड़ा ॥  यही हमारी प्रभु - भक्ति है ,  नाज उगे मनमानी ! ॥३ ॥  संत कबिरका था डंका ,  मत मानो कोई शंका ।   सभी धरमका एकही कहना ,  सेवा कर सबका ॥  शास्त्रको तो हमने छाना ,  कोई दुखाओ न प्राणी ! ॥४ ॥ तुकड्यदासका कहना है ,  यही बातें फैलाना है ।  जाता है , न आना है ,  सबमें समझ बढाना है ।  मानको जगाओ , सेवामें लगाओ ,...

ओ ! भाग्य निर्माता

  ओ ! भाग्य निर्माता   ( तर्ज : ओ निर्दयी प्रीतम ... )  ओ ! भाग्य - निर्माता ??  ग्यानके दाता , कर हमसे भी ,  जो कुछ थोडा बनता ! || टेक || समय नहीं अब बननेकी ,  फिरभी गरज हमें उनकी ।  बिना भाग्यके नहीं चलेगी ,  गती - विधी पूरी मनकी ॥  प्रयत्न से ही , सब लडते पर ,  सफल नहीं होता || १||  गली - गली नहिं भाग्य पडा ,  चाहे कोई लेके उडा ।  ऐसा हो तो सब बनते थे ,  भारी नेता बडा - बडा ॥  इनमें होना दोनों बाते  करनी और पूर्व गीता || २ ||  हमतो हैं कर्तव्यधारी ,  लेकिन किरपा बिन तेरी किसकी नहीं चली थी जगमें ,  आज चले नहीं पुरी ॥  इसीलिये यह समझाना है ,  दर्शन में दो बाता || ३ ||  ग्रंथ - संग सब जगा मिले ,  पर गुरु - किरपा नहीं फुले  इसका कारण हमने पाया ,  संतन मिलते कहीं भले ॥   तुकड्यादासने यौं ही गाया ,  जहाँ मिले मैं जाता ! || ४ ||  वडसा , दि . ६.१०.६२ 

कई बार बोला

  कई बार बोला  ( तर्ज : सौ साल पहिले ... )  कई बार बोला हमने ,  नाथ ! तारना ।  पिछले जनम को तारे ,  आजभी उद्धारना ! ॥  हमीं हो पक्षी सुंदर ,  हमीं हाथी - मोर ना ।  पिछले जनम को तारे ,  आजभी उद्धारना ! ॥ टेक ॥  तुम छोडा ना करो , अरे वो ,  अरे वोही अखरता दिलको ।  चाहे छोडे कोई , वो ,  अरे वो न पकडता दिलको ॥  यही लगा करता हमको ,  करके किया प्यारना ?  पिछले जनम को तारे ! ।। १ ।।  जिंदगी है सपना , मोरा ,  ये मोरा अनुमान है ।  चार - दिनके खेल - कुद में  यही ना तुफान है ? ?  दूर रहे इनसे अब ,  चाहिये दीदार ना !  पिछले जनम को तारे ! ॥ २ ॥  विषयों का लंदा फंदा ,  फंदा बडी जादू है ।  मन को मार - मार धोले ,  धोले करे स्वादू ये ॥  ऐसी जगह हम चाहते  होयेगा विकार ना ।  पिछले जनम को तारे ! ॥३॥  तुम सधे तो सध जाये ,  सध जाये आखरी ।  अमर सुख पावे हम ,  हमने तो आस धरी ।  तुकड्या मेरे ,  दिन ये सधे चार ना !  पिछले जनम ...

सारी दुनिया का कौन बोलो

  सारी दुनिया का  ( तर्त : - सौ साल पहिले ... )  सारी दुनिया का कौन बोलो  जीम्मेदार है ।  सामने उसीके बाबा !  मेरी तकरार है !!  सभी को बनाया है फिर ,  वही क्यों फरार है ?  सामने उसीके बाबा !  मेरी तकरार है ! || टेक ||  अगर उजागर है वो तो ,  वो तो , मुझें बोल दे ।  अपने छुपे जाने का ,  हाल हमसे खोल दे ॥  किससे पूंछे हम हमारे  जान के सुधार है ।  सामने उसीके बाबा !  मेरी तकरार है ! ॥१।।  तुम्हारे ही पंडितोंने ,  धर्म किया है महँगा ।  जोरू - मर्द राजी है  पर राशी का है अडंगा ॥  बिना धनके शादी नहीं ,  वार ये बेपार है !  सामने उसीके बाबा !  मेरी तकरार है ! ॥२ ॥  सीने को मशिन नाही ,  नाम कैसे दर्जी ?  चमारों का धंदा करता ,  नाम कहता मर्जी ॥  जनम भर पाप करे ,  चाहता उद्धार है !  सामने उसीके बाबा !  मेरी तकरार है ! || ३ || अगर मेरा दर्शनों  पाप होता नाश है ।  झूठ मिलावट क्यों करता ?  फेर कहता दास है ।  तुकड्य...

नौ तार वाली

  नौ तार वाली  ( तर्ज : सौ साल पहिले ... )  नौ तार वाली मेरी  प्यारी ये सितार है ।  बजे जब , तो आती ,  उसकी बडी ही बहार है ।  एक - एक तार उसका ,  विश्व का अधार है ।  बजे जब , तो आती  उसकी बड़ी ही बहार है । टेक ॥  एक तार कानों से ही  सुने सारी बातें ।  एक तार नैनों से ही  लगाता है नाते ॥  एक तार है जबाँमें ,  बोले करता प्यार है ।  बजे जब , तो आती  उसकी बडी ही बहार है ! ।।१ ।।  एक तार नाकों से ही  बदन को जिलाता ।  एक तार हाथों से ही  जिन्दगी बनाता ॥  एक तार बुद्धि में है ,  करता सुधार है ।  बजे जब , तो आती  उसकी बडी ही बहार है ! ॥ २ ॥  एक तार पेट में है ,  अन्न को पचाता ।  पैर में है , विश्व में घुमाता ॥  एक तार एक तार सारे मन में ,  लगा देता घोर है ।  बजे जब , तो आती  उसकी बडी ही बहार है ! ॥३ ।।  सारे तारका है मेरा  प्यारा बजवैय्या ।  उसीने चलायी मेरी ,  बजा बजा नैय्या ॥  कहे दास तुकड्या ,  मेरा ...

तुम्हारे लिये ही

  तुम्हारे लिये ही  ( तर्ज : सौ साल पहिले ... )  तुम्हारे लिये ही हमने  छोडे घरबार है ।  इसीके लिये ही बाबा !  तेरा इंतजार है ।  काम - क्रोध दंभ सारे ,  लडके करने पार है ।  इसीके लिये ही बाबा !  तेरा इंतजार है ! || टेक || आँखे लगा न करो प्रभुजी !  मेरी छाती दुख पाती है ।  मेरे लिये आँख खोलो ,  मूर्ति नैन भाँती है ॥  जीते रहेंगे हम इसीपर ,  चढा तेरा तार है ।  इसीके लिये ही बाबा !  तेरा इंतजार है ! ||१||  पूजा ना हमारी कोई ,  कोई सिवा याद के ।  खजाने हमारे कोई ,  नहीं बिना नाम के ॥  मस्ती है खुराक दिलमें ,  बाबा के दीदार है ।  इसीके लिये ही बाबा !  तेरा इंतजार है ! ||२|| बिछाई है कम्बल ये ,  दिल में प्यार सोचके ।  हटेंगे नहीं हम - चाहे  वर्ष भर भी हो चुके ॥  यही किया हमने ,  दिल में तेरा इकरार है ।  इसीके लिये ही बाबा !  तेरा इंतजार है ! ||३|| सभी संत एकही है ,  एकही है ग्यान में ।  मित्र सभी के बनो ,  बनाओ तूफान में...

लिया , ले लियाजी !

  लिया , ले लिया जी ?    ( तर्ज : जिया ले गयोजी , मोरा सांवरिया )  लिया , ले लियाजी मैंने मोल लिया ।  कछु दिया नहीं धन , मैंने प्रेम किया  ये सही है , ये सही है ।  सुना नहीं मैने , दिल -मनसे लिया ॥  देखा तो पास गया , मैं चमक गया ।   सुन्दर साज था मीठा , ओ बाज था ।  वो था , जो दिलमें ही  छाय गया ॥ लिया ... ॥१ ॥  कौन कहे , कौन कहे ?  नहीं मेरा प्यारा वो मोहन भया ।  होता न न्यारा हमसे , मैं जान गया ।  मीठी सी बाँसरी , हाथोंमें थी धरी ॥  तुकड्याने उसको समाय लिया ॥  लिया ... ॥ २ ॥  मालेगाँव ; दि . २२-७-६२

जबकि नेकीसे जीता

  जबकि नेकीसे जीता   ( तर्ज : तेरे दया - धरम नहीं मन में ... )  जबकी नेकीसे जीता है ।  तब तू शराब क्यों पीता है ? ॥ टेक ॥  तुझे पता है , आजतलक ये ,  शराब किसने खायी ?  माँसाहारी औ व्यभिचारी ,  उनकी यह बाता हैं ।  तब तू शराब क्यों पीता है ? ।।१ ।।  तीनों भी है मित्र सदा ये ,  चौथा मित्र है चोरी ।  राक्षस के ये घरमें रहते ,  इनके गुरु अघोरी ॥  तब तू शराब क्यों पीता है ? ॥२ ॥  धर्मवान् तू माला पहिने ,  चन्दन सिरपे लावे ।  छोड़ आजसे शराब पीना ,  बिगडे पथ ना जावे ॥  तब तू शराब क्यों पीता है ? ॥ ३ ॥  सुनो ऊठ और स्नान बनाकर  सुमरण कर सद्गुरुका ।  तुकड्यादास कहे , तब पावे ,  जगा तुझे सुर नरका ॥  तब तू शराब क्यों पीता है ? ॥४ ॥  मेहेंदीवाडा ; दि . २२. ९. ६२ 

कहाँ ? किसने देखा

  कहाँ ? किसने देखा  ( तर्ज : तूं कर्ता आणि करविता ... )  कहाँ किसने देखा , कहाँ किसने देखा ?  हमारी नजर का तारा ! ॥ टेक ॥  उसके मिलने को , दिल तडफत है ,  कोई मिलादो प्यारा ।  आफत है नहीं तो इस दिलमें ,  होगा सभी अँधियारा ॥  इस कारण कहता - चिल्लाता ,  दर्द मिटा दो सारा ! ॥१ ॥  वाटल में छूपी है ज्योति ,  मोति कहाँ है हमरा ?  उसके दर्शनसे दुख जाये ,  यहि हमरा निर्धारा ॥  आओ मिलाओ कोई तो सुजनो !  तुकड्यादास पुकारा ॥२ ॥   नागपुर - सेवाश्रम ;  दि . १४-१९०-६२

तुम्हीं हो प्रेरक

  तुम्हीं हो प्रेरक   ( तर्ज : तूंचि कर्ता आणि करविता ... )  तुम्हीं हो प्रेरक हम दासों के !  शरण तुम्हारे हम हैं ॥ हो ऽऽ ॥ टेक ॥  संत सद्गुरु आडकोजी से ।  हमरी प्रार्थना तनसे - मनसे ॥  उन्नत हो हम इस जीवन से ।  चरण सहारे हम है ! ॥१ ॥  योग याग नहि हमसे बनता ।  जप - तप करना बड़ा अखरता ॥  तुमरी सुमरण नाव धरी हैं ।  लगे किनारे हम हैं ! ॥२ ॥  स्वॉस - स्वाँस , में तुमरा चिन्तन ।  अवण - मनन तुमरा निजध्यासन ॥  यहि है आसन , यहि है साधन ।  तुम पर हारे हम हैं ! ॥ ३ ॥  हर कामों में झलक तुम्हारी ।  हर चीजों में नजर तुम्हारी ॥  तुकड्यादास का निश्चय है ये  प्रेम के प्यारे हम है ! ॥४ ॥  नागपुर - सेवाश्रम  दि . १४-१०-६२ 

जय मंगल गुरुदेव हमारे !

  जय मंगल गुरुदेव हमारे !  ( तर्ज : भाग्य कुणा लाभे ऐसे ... )  जय मंगल गुरुदेव हमारे ।  तुम्हरे दर्शन में सुख सारे ! ॥ टेक ॥  तुम्हरा ज्ञान अमंगल हारी ।  शुद्ध चरित्र - मानस उपकारी ॥  भक्ति - युक्ति के तुम हो दाता ।  निर्मल प्रेम सुभाव तुम्हारे ! ॥१ ॥ भुला -भटका विषयी आवे !  तुम्हरी सत् - संगत गर पावे ॥  अग्यानों का तिमिर नाशकर ।  होत प्रकाश हृदय संचारे ! ।।२ ।।  ब्रह्मा - विष्णु - महेश ये तीनों ।  ये सब तुमरे रूप बखाने ||  तुमही हो सत् - चित् आनन्दा ।  सगुण - निर्गुण - के  मिलवारे ! ।। ३ ।।  तुम्हरी किरपा पावे जिनको ।  तीन लोक धोखा नहिं उनको ।  तुकड्यादास गुरु -किरपासे  हमरे तो सबही जग प्यारे ! ।।४ ।। 

रख मृत्यू की याद , बावरे !

  रख मृत्यू की याद , बावरे ! ,   रख मृत्यू की याद ॥ ॥ टेक ॥  जितना लोभ किया है तूने ,  होगा सब बरबाद । बावरे !  रख मृत्यु की याद ! ॥१ ॥  जितना खाया , पहिला सोया ,  अन्त बनेगा खाद । बावरे !  रख मृत्यू की याद ! ॥२ ॥  साथ रहेगी नहिं यह तन भी ,  क्यों लेता आस्वाद ? बावरे !  रख मृत्यु की याद ! ॥३ ॥  सत्कीर्ती सेवाकी पूंजी ,  यह ही देगी साथ ! बावरे !  रख मृत्यू की याद ! ॥४ ॥  तुकड्यादास कहे सुध लेले ,  प्रभु भज हो आबाद ! बावरे !  रख मृत्यू की याद ! ॥५ ॥  सेवाश्रम नागपुर ; दि . १४-१०-६२ 

चल देख सुरत अब तेरी

  चल देख सुरत अब तेरी ,  मुरदा बन गयो बदन बिचारी ! ॥ टेक ॥  जबसे तूने शराब पीना  सीखा है ,रे भाई !  जला दिया सब रक्त - मासको  हड्डी गयी पिसाई ! ॥१ ॥  मान - मरातब सब खोया  और हँसते जन मुंह ताके |  पडता है गलियोंमे जाकर ,  मक्खीसे मुंह झाँके ॥२॥  पास रही ना कवडी ,  सारा उधार कर - कर खोया ।  औरत लडके - बच्चेका भी  जेवर तोडके खाया ! ||३|| घर बेचा , संसार भी बेचा ,  बेची इज्जत अपनी जम आया तब तन भी बेचे ,  पहन अग्निकी कफनी ||४|| कौन है तेरे , साथी - संगाती ,  जिसने तुझे बिगाडा ?  उसने तो ऐसाही मारा ,  तेरा सब कुछ गाडा ! ॥५ ॥  तुकड्यादास कहे , सुन मेरा ,  ऊँची नजर तो कर ले ।  देख कहाँ तू था और अब है  अपना जिवन सुधर ले ! ॥६ ॥  मुझंड फार्म ; दि . २१-१-६२

मेहमान है तू

  मेहमान है तू   ( तर्ज : ओठों में हँसी , पलकों में ... )  मेहमान है तू , अरे दो दिन का ,  यहाँ कौन हमेशा रहता है ? ॥  बतला तो सही , तेरे और कहाँ ?  तू नाम जिन्होंका कहता है ! टे ।  तू तेरा है की औरोंका ,  माँ - बापका है गैरोंका ।  सब सुनके चला ,  सच क्या निकला ?॥  यहाँ कौन ..॥ १।।  जैसा ही करे वैसा ही भरे ,  यहाँ नेकका बदला नेक मिले ।  शक्कर जो दिये शक्कर ही मिले ।  यहाँ कौन ...॥ २ ॥  दिखने को अटारी है भारी ,  जरतारी पहने है नारी ।  सब ठाट पड , जब प्राण उडे ।  यहाँ कौन ...॥ ३ ॥  तेरि आँखोंमें धूर दिया किसने ?  मैं चाँद - सुरज तक रहता हूँ ।  कहता तुकड्या , भज राम सदा ॥  यहाँ कौन ॥४ ॥  मालेगाँव , दि . ७ - ९ -६२

बातें ना बताओ

  बातें ना बताओ  ( तर्ज : जावो , ना सतावो रशियाँ ... )   दोहा-१ :किसकी छाती है बडी ,  कभू न बोले झूठ | चाहे मुसिबत आ पड  प्राण जाये यदि छूट | दोहा- २ : हम हैं परींदे स्वर्गके खाते  गर्व गुमान  सच बोले , सचही चले ,  उन्हें निछावर जान  भजन : बातें ना बताओ मेहमान !  उसमें हो साची शक्ति महान् ! ॥ भले कोई काव्य करता हो ,  भले कोई लेख लिखता हो  असर करती न जनपे तान ,  बातें ना बताओ मेहमान ! ॥१ ॥  भले कोई भेख बनवाये ,  भले कोई अर्थ बतलाये ।  व्यर्थ ही रहता है सारा बयान ,  बातें ना बताओ मेहमान ! ।।२ ।।  भले सत्ता रहे करमें ,  भले भत्ता मिले घर में ।  असर ये चीज है निर्बाण ,  बातें न बतओ मेहमान ! ।। ३ ।।  इसी कारण से कहता हूँ ,  अलग दुनियाँ से रहता हूँ ।  तुकड्या कहे , नहीं अरमान ,  बातें ना बताओ मेहमान ! ।।४ ।।  मालेगाँव रेल्वे प्रवास ;  दि . ७ - ९ -६२ 

हसते है कोई

  हसते है कोई  ( तर्ज : होटोंपे - हँसी , पलकों में . )  हसते हैं कोई , करते न शरम ।  गरिबों की रहम नहीं आती है ।  एक दिन उन पर , कभु बीत चले ।  फिर रोते ही रह जाते है ॥ टेक ॥  हैं कौन मेरे , जो साथ करें ।  नहिं मुझको नजर सिर हाथ धरें ॥  यह हो कैसे , तब तुम वैसे गरिबोंकी रहम नहीं आती है ||१|| दुसरो को सता , अब तूहि बता ।  तेरा कौन पता , कोई देगा जता ॥  तुझे होंगी कदर , तब जाये सुधर  गरिबोंकि रहम नहीं आती है ||२|| हैं खून किसीका शमदम का ।  उसको ही मजा पाये गमका ॥  जिसमें है नसा , अपने तमका ।  गरिबोंकि रहम नहीं आती है ||३|| नत मस्तक है , सत् से जिनका ।  उनको ही ठिकाना है गमका ||  तुकड्या कहता , सबमें रहता ।  गरिबोंकि रहम नहीं आती है ||४|| मालेगांव , दि .७. ९. ६२

गावोना , रिझावो ,

  गावोना , रिझावो ,  ( तर्ज : जावो , ना सताओ रसिया ... )  दोहा -१ : प्रीत गयी , नेकी गयी ,  सारा गया ईमान ।  अबतो मिलावट , घूंस है ,  झूठोंका थैमान ।।  दोहा -२ : हाँजी - हाँजी रह गयी ,  करो न चाहे काम ।  ऐसे भारत - भूम की  तुम पत राखो राम ॥  भजन : गावोना , रिझावो भगवान !   लेकिन न छोडो  दिलसे ईमान ! ॥ टेक ॥  भले चाहे न पूजा हो ,  मगर सत्‌का तकाजा हो ।  दिलमें हो प्रीति  सबकी समान ||  गावोना ... ||१|| गले चाहे न माला हो ,  मगर संयमको पाला हो ।  दुःख हो न किसको ,  बस हो , ये ग्यान ॥ गावोना ...॥ २ ॥  बदनपर हो न हो न चन्दन ।  मगर हो मन करुन - क्रन्दन ।  नहीं हो सिफारस ,  जो मुझमें गुमान ॥ गावोना ... ।।३॥  भले चाहे न हो साथी ,  मगर हो दिल मेरा हाथी ।  कहे तुकड्या ,  सुनो मेरा ज्ञान ! ॥ गावोना ... ।।४।।  मालेगांव , रेल्वे प्रवास ;  दि . ७ - ९ -६२ 

दुःखसे रोती है

  दुःखसे रोती है  ( तर्ज : गेला हरी कुण्या गांवा ... )  दुःख से रोती है माता ,  उसे रोना नहीं सम्हलाता ।  घरका पुत्र नहीं आता  दिखता सोता ,  सोता कहीं रोता ! ॥ टेक ॥ जाती दौड - दौड धरने ,  ' बेटा ! चलो ' कहे घरमें ।  क्यों पड़ता इस नाली में ,  गंदी बुरी दुखाली में ॥  मक्खियाँ मुंहपर घुमती है ,  बातें जरा नहीं करता ।  दिखता सोता ,  सोता कहीं रोता ! ।।१ ।।  बेटा धीरेसे बोला ,  माता पिला जरा प्याला  में हूँ रँग में अलबेला ,  पक्के गुरुजी का चेला ॥  मेरि तू आशा क्यों करती ?  चाहे इसमें हूँ मरता ।  दिखता सोता ,  सोता कहीं रोता ! ॥२ ॥  दुनिया हँस हँसकर कहती ,  तुझको शरम नहीं आती ।  पीता शराब भलिभाँति ,  बनाता जीवन की माती ॥  माता घबडाके बोली ,  उसको होश नहीं आता ।  दिखता सोता ,  सोता कहीं रोता ! ॥३।।  बेटा जनम दिया मैंने ,  काला किया मूंको तूने ।  बकता गाली मनमाने ,  मेरा दुख तू क्या बे जाने ??  वो चिल्लाकर समझाती ,...

भोला किसान !

  भोला किसान !   ( तर्ज : गेला हरी कुण्या गांवा ... )  भोला किसान है मेरा ,  जिसका प्रभुपर निर्धारा ।  न जाये शराब से घेरा ।  वो है प्यारा ,  प्यारा सदा हमरा ! ॥ टेक ॥ पहिले टूटा है तनका ,  दुखीया रहता है मनका |  बदनपर कपडा नहीं सणका ,  फिरकर करता है जीवनका ||  सदा खेतों में है रहता ,  उसका फिरता है डेरा ।  वो है प्यारा , प्यारा सदा हमरा ॥१।।  सीधा स्वभाव है उसका ,  मुफत में खाता नहिं किसका ।  हमेशा साथ करे सचका ,  सच्चा खून उसके नसका ।  करता श्रम हरदम जसका ,  उसीपर जीवन है सारा ।  वो है प्यारा , प्यारा सदा हमरा ॥२ ॥  उसने चैन नहीं देखा ,  बलके नहीं पढा- लीखा ।  नाजको उपजाता बाका ,  बनाता सुन्ना खेती का ॥  बैल और गावोंसे नाता ,  उसीपर प्रेम करे सारा ।  वो है प्यारा ,  प्यारा सदा हमरा ॥३ ।।  आजकी दुनिया मनरंगी ,  न उसको करे कोई संगी ।  फँसादे कहीं नशा गुंगी ,  करादे जिंदगी ही नंगी ॥  दास तुकड्या का परिवारा ,  ऐसा भा...

गलेमें क्यों पहनी माला !

  गलेमें क्यों पहनी माला !  ( तर्ज : गेला हरी कुण्या गांवा ... )  गलेमें क्यों पहनी माला ?  बदनपर भस्म चढा डाला ।  लगाया चन्दन का टीला !!  पीता प्याला !  प्याला शराबवाला ! ॥ टेक ॥ करता तीरथ जा - जाके ,  नहाता गंगामे बाके | दर्शन साधू संतोंके ,  करता सीर झुका करके ।  फिरभी अक्कल नहिं आयी ,  पीकर पड़ता है नाला ।  पीता प्याला ,  प्याला नशेवाला ||१|| जिसने शराब घर लाया ,  उसने घरही उजड़ाया ।  किसने इन्सानी पाया ?  पिया तो जिन्दगिसे खोया ।  तुझको किसने सिखाया हैं ?  घरका मुंह करने काला ।  पीता प्याला ,  प्याला नशेवाला ! ॥२ ॥  किसको तुझे फँसाना था ,  तेरा सब धन लुटाना था ।  तुझे दुनियाँसे मिटाना था ,  चारोंमें नाक कटाना था !  इसी कारणसे छंद दिया ,  वारे तू भोला - भाला ॥  पीता प्याला , प्याला नशेवाला ॥३ ॥  तेरा घर नहिं था ऐसा ,  तमाशा तुने किया कैसा ।  गँवाया शराब में पैसा ,  फिरता मुरदे के जैसा ॥  तुकड्यादास कहे , सुनले !  लगा दे ...

नशा पीना छोड

  नशा पीना छोड   ( तर्ज : राधे - कृष्ण बोल मुखसे ... )  नशा पीना छोड ,  तेरा तभी बढेगा मोल ,  प्यारे ! मेरी बाते तोल ! ॥ टेक ॥  तेरा सुंदर बदन पियारा ,  खोखला बना है सारा ।  सब किया है धन को गोल ,  मुझसे चार बातें बोल ॥ १ ॥  तूने बापका नाम गमाया ,  था भला कीर्ति को पाया ।  सब कुलका फोडा ढोल ,  भाई ! अबतो आँखें खोल ॥२ ॥ सब बच्चे घर - घर रोते ,  भाई शरमके मारे लजाते । कहे तुकड्या सत्‌को जोड ,  अब तो फोड नशाका फोड ॥३ ॥ 

तन दिया मन दिया !

  तन दिया मन दिया !  ( तर्ज : हम भी हैं , तुम भी हो ! )  तन दिया , मन दिया !  और जो बच गया ,  धन दिया !||टेक|| अब तो रहा प्रेम ही पास में ।  क्यों करके दुखिया रहूँ आज मैं ।  जो किया सो किया ,  प्रभु भक्तिमें जीवन गया ! ॥१ ॥  किसको दुजा अब कहूँ खास में ।  सब हैं मेरे जबकि मुझम न मैं ॥  जग गया , लग गया ,  मेरे प्यारे से नाता भया !||२ || अन्दर - बाहर अब तो है एकही ।  कोई पून या पाप छुपा नहीं ।  त्याग भी , भोग भी ,  त्यागका त्याग भी तो किया ! ॥३ ॥  सबकुछ बने वो ये प्रारब्ध है ।  क्रियमान के बीज ही नष्ट हैं ।  साक्षी मैं , सर्वका ,  रंग - रूपोंसे न्यारा भया ! ।। ४ ।।  अभी मौतने भी मुझे बाग दी ।  सोयी थी किस्मत , खडी जाग दी ।  मिल गया , धुल गया ,  दास तुकड्या रहा ना नया ! ॥ ५ ॥  सूरत : दि . १३. ९. ६२

आवो ना बताओ

  आवो ना बताओ  ( तर्ज : जावो , ना सताओ रसिया ... )  शेर -१ : दिलकी धडकन क्या कहूँ  जो देखा है तुफान ।  मन नहीं माने ,  समझाये करता पाप महान् ।  शेर -२ : खैर करें मनमें कभी  मगर न हो जग जान ।  इनसे तो मरना भला ,  कौन कामका ज्ञान ?  भजन : आवो ना बताओ मोहे ग्यान !  फिरसे न पाऊँ ये दुख महान् || टेक || घडी में शान आती है ,  घडी में दिल दुखाती है ।  अरे वा ! कैसी है ये जान ! ॥  आओ ना ... ।। १ ।।  घडी में कामकी स्वारी ,  घडी में क्रोध ने मारी ।  अजब है षड्रिपुकी तान ! ॥  आओ ना ... ।।२ ।।  घडी में साधुता आवे ,  घडी में बैर मन भावे ।  न इसका कोई ले इल्जाम ॥  आओ ना ... ॥३ ॥  मिले जो - जो भी कहते हैं ,  ये दुख सबकोही रहते हैं ।  मगर इसपर हो सबका ध्यान ।  आओ ना ... ।।४ ।।  बिना सत् - संगती पाये ,  ये दुख किसीसे नहीं जाये ।  तुकड्या कहे , मैं हूँ हैरान ॥  आओ ना ... ॥५  ॥  मालेगाँव रेल्वे प्रवास ;  दि .७. ९. ६२

भयी - भयी मोरी अखिया

  भयी - भयी मोरी अखिया ( तर्ज : छोडो छोडो मोरे सैया बावरे ... )  भई - भई मोरी अखियाँ बावरी ॥ टेक ॥  अबही सुनी संतन से बाते ।  प्रभू - दर्शन से सब तर जाते ।  हमको भी तारोना हरी ! ॥१ ॥  मानव - जन्म लिया सुनने को ।  ज्ञान नहीं थोडा भी हम को ॥  नम्र न बोले मेरी वैखरी ! ॥२ ॥  विषय भोगको मन ललचावे ।  सत्संगत करने नहीं जावे ॥  उमर होगयी है आखरी ! ॥३ ॥ कब पायेगी प्रभू अब शान्ति ?  तुकड्या कहे दुःबधा नहिं जाती ।  सुना - सुना तेरी बाँसरी !  गुरुकुंज आश्रम ; दि . १५. ९. ६२

आओ आओ , प्रभु - चरण रिझायेंगे

  आओ आओ , प्रभु - चरण रिझायेंगे  ( तर्ज : छोडो छोडो मोरे सैया बावरे ... )  आओ आओ ,  प्रभु - चरण रिझायेंगे  || टेक || " हम गरिबनको को साधन है ?  ब्रह्म - भोज करने नहीं धन है ।  दिल - मन से गुण गायेंगे !  || १ || उमर भयी अब योग न साधे ।  आसन - प्राणायाम उपाधे ॥  हम सुमरण कर पायेंगे ! ॥ २ ॥  पूजा-विधी नाना परकारा ।  चलत दिमाग नहीं अब मोरा ॥  भजन - भक्ति उर लायेंगे ! ॥३ ॥ तुकड्यादास सुगम मारग से ।  सत्गुरु - देव दिये साधन से ॥  पद- पद पर चढ़ जायेंगे ! ॥४ ॥  गुरुकुंज आश्रम ; दि . १५ - ९ -६२ 

नैनन नीर बरसे

  नैनन नीर बरसे  ( तर्ज : ज्योति कलश छलके ... )  नैनन नीर बरसे !   || टेक || बिछुड गये जबसे मनमोहन ।  दिल भडके सारा ही बन - बन ॥  जी न लगे घरसे !   || १ || जैसी बात बनी गोपिन की ।  ग्वाल - बाल बछडे गौवन की ॥  क्यों रूठे हमसे ? ।। २ ।।   नीन्द नहीं , छाती धडकावे ।  ना जाने प्राणही उड जावे ॥  दिल कापे डरसे | ॥ ३॥   तुकड्यादास कहे , फिर आओ ।  एक बार फिर दर्श दिखाओ |  जब तन मन हरषे ! ।। ४ ।।  बम्बई से बडोदा प्रवास ,  दि . १०. ९. ६२

महँगी करो नहीं

  महँगी करो नहीं   ( तर्ज : मेहंदी लगी मोरे हाथ रे )  महँगी करो नहीं साथ है ।  हम भक्तों भक्त हमारे ।  यही तुम्हारी बात है ! ॥ टेक ॥  भिल्लीनीने जब तुमको पाया ।  झूठे बेर तुम्हे खिलवाया ||  किया न कुछ जप - जाप है ! ॥१ ॥  कुबजा के संग रंग गये तुम ।  रंग गये नही , संग गये तुम ।  ये कैसी खैरात है !     ||२|| बिदुरी के घर छिलके खाये ।  केले को नहीं कीमत लाये ।  गोपी भी नाच नचात है ! ॥३ ॥   योग-याग औं जप-तप करना ।  अहंकार में जाकर मरना ।।  ये नहीं हमरी जात है !   ||४|| हम हैं पागल उस सूरत के ।  कुंजन-बन की उस मूरत के ।।  तुकड्या को यही भाँत है ! ॥ ५ ॥  बम्बई , दि . ९ - ९ -६२

रहेगा हमेशा याद !

  रहेगा हमेशा याद !  ( तर्ज . मेहंदी लगी मोरे हाथ रे )  रहेगी हमेशा याद है तुम ही आये थे सपने में ।  दिया भक्ति का साद है !  ॥ रहेगी ॥ टेक || श्याम शाम का बदन तुम्हारा ।  हाथ रखा मेरे सिर पर प्यारा ॥  बात किया फिर बाद है ! ||१|| कोटि - कोटि कामों का रस था ।  कोटि चन्द्र चेहरे का बस था ।  चरण कमल आबाद हैं !  ||२|| मैं था विषयों के चक्कर में  खाता था मेवा शक्कर में ॥  सुना बन्सि का नाद है ! ||३|| मैं आनन्द से भोर हुआ , फिर ।  कामों पर सिरजोर हुआ फिर ॥  तुकड्या कहे तू अगाध है ! ||४|| बम्बई ; दि. ९. ९.६२

सुधबुध गयी

  सुधबुध गयी  ( तर्ज : मेहंदी लगी मोरे हाथ रे ... )  सुधबुध गयी मोरी श्याम से ।  खुल गये ताले अंतरंग के  लग गयी धून प्रभू - नाम से ! ॥ टेक ॥  वृन्दावन की कुंज - गली है ।  मधुबन की शृंगारवली है ॥  प्रेम लगा निज- धाम से ! ॥ १ ॥ जमुना की गहरी है धारा ।  गौओं का ग्वाला है प्यारा ॥  दर्शन पाये अराम से !  सूझे नहीं संसार , कहाँ का ?  तार चढा मोरे दिल में गम का ॥  तुकड्या यो लगा काम से ! ॥३ ॥  नाशिक , दि . ८ . ९. ६२

गले तुलसी की माल है

  गले तुलसी की माल है ( तर्ज : मेहंदी लगी मोरे हाथ रे ... )  गले तुलसी की माल है ।  भूल न जाऊँ ; इन बातों को ॥  ना करूँ काम जहाल है ! ॥ टेक ॥  इस कारण पहनी है माला ।  जल जाये इस दिल का काला ॥  होऊँ प्रभू से निहाल है !  झूठ की संगत पल नहीं भावे ।  हरदम दिल प्रभू - नाम रिझावे ।  झूठ  भव जंजाल है ! ॥ २ ॥  ममता माया मोह न व्यापे ।  अंत समय कहीं काल न कोपे  तुकड्या कहे , सच हाल है ! ॥३ ॥  नाशिक : दि . ८ - ९ -६२ 

सुनी , ओ सुनी जी

  सुनी , ओ सुनी जी  ( तर्ज : जिया ले गयो जी मोरा . )  सुनी , ओ सुनी जी !  मैंने बाँसुरियां ।  तब से ही तो  मन मस्त भया ! || टेक || जाग गया , जाग गया ।  सब विषयन से भाग गया ।  रंग गया मोरा चोला नया ।  अंतर में तार है ,  बजता सितार है ।  आँखियों में छाँय गया ,  साँवरिया || १ || नीर बहे , नीर बहे  मन उन्मन भये ,  प्रेम दिया ॥ सब रस- अमृत पान किया | उसकी है बाँसुरी , मेरी है खंजडी ॥  मिलजुल कर बजे झाँजरिया ॥२ ॥  याद रहे याद रहे ,  हम नहीं जुदे , सब भेद गया ।  दुही का परदा निकाल दिया ।  हम में भी ओ है , उस में भी हम हैं ।  तुकड्याने अनुभव सार किया ! ॥३ ॥  नाशिक , दि . ८-९-६२

गुरु बिना कौन है

  गुरु बिना कौन है .  ( तर्ज : मजसवे बोलरे माधवा ... )  गुरु बिना कौन है ज्ञान दे ।  वहि छोडे अज्ञान के परदे ॥ टेक ॥  सब जन जाने स्वारथ अपना ।  विषयन के सुख का जो सपना ।  कौन हैं- इन से मुक्त करा दे ॥ १ ॥  तन - मन - धन का मोह बड़ा है । ।  पल - पल दिलसे ही जखड़ा है ॥  जीवन नहिं रहने दे साधे ॥२ ॥  मेरा - मेरा कर अभिमाना ।  परम - सूख इनसे ही खोना ।।  यह नहिं मानव - धर्म जगा दे ॥३ ॥  कौन हूँ मैं ? किस कारण आया ?  क्या साधना है , नर - तन पाया ॥  तुकड्यादास कहे , यहि साधे ।।४ ।।  बालाघाट ; दि . २१. ९. ६२

यही करो नाथ !

  यही करो नाथ !   ( तर्ज : मज सवे बोल रे माधवा ... )  यही करो नाथ ये दासको ।  तन न रहे ,  पर मन लो पासको ॥ टेक ॥  मन जब तुम्हरे चरण में आवे ।  तब कहीं तन भी दौर लगावे ॥  मन - विकल्प ही  करत नाशको ॥१ ।।  जब सत्संग में मन जावे ।  साधन तब भक्ती के पावे ॥  कुसंग से मन होत न बसको ॥२ ॥  जिनके मन प्रभु- सुमरण भाया ।  उनको नहिं व्यापे यह माया ॥  वहि चाखत हैं अमृत रसको ॥३ ॥  परिवर्तन हृदयों का होना ।  सत्गुरु बिन अधिकार कहीं ना ।  तुकड्या कहे ,  पूरण हो आसको ॥४ ॥  विवेक बालाघाट ;  दि . २१ - ९ -६२

मन बसा एकही आखरी

  मन बसा एकही आखरी  ( तर्ज : मज सवे बोल रे माधवा ... )  मन बसा एकही आखरी ।  बिन सत्गुरु कोउ न तारी ||टेक|| सब चाहते स्वारथ ही अपना ।  जिधर -उधर है अपना रोना ॥  इसमें भूले हैं नर नारी !  ॥१ ॥ पर-उपकार की बात कहाँ है ?  बदला माँगे जहाँ -वहाँ है दे थोडा , पर माँगत भारी ! ॥२ ॥ प्राण पिताका उडने लागा ।  धनके खातर बेटा भागा ||  होय पिताकी मौत बिचारी ! ॥३ ॥  ऐसी दुनियाँ में क्या रहना ?  सतगुरु के चरणों में मरना ।।  तुकड्या कहे , अर्जी है हमारी ! ।।४ ।।  गोंदिया ;दि. २१. ९. ६२

बस ! चलो

  बस ! चलो   ( राग : देश ; तर्ज : मजसवे बोल ! )  बस ! चलो खेलने जायेंगे ।  वही सारा दिन बितवायेंगे ! ॥ टेक ॥  यहि नारा रहता लडकोंका ।  क्या जाने वह कालका धडका ??  कब आये जम उठवायेंगे ! ॥१ ॥  आयि जवानी फिर तो क्या है ।  बिन जोरूके कहाँकी माँ है ??  पल नहीं घरसे भग पायेंगे ! ॥२ ॥  बूढापन जबआजाता है ।  तब जानो सब मर फजिता है ।   कोई बुलाये नहिं आयेंगे ! ॥३ ॥  ऐसा समय गया अब बीता ।  सुमरी नहीं पल भी गुरु - गीता ॥  तुकड्या कहे , कब प्रभू गायेंगे ? ।।४ ।।  गोंदीया;दि. २१. ९. ६२

तुझे जरा खबर नहीं

  तुझे जरा खबर नहीं  ( तर्ज : तेरे दया - धरम नहीं मनमें ... )  तुझे जरा खबर नही आयी ।  तेरे यहाँ दुनिया नही भाई ! ॥ टेक ॥  तू है अपने अच्छे - बूरे  कर्मो का फल पाता ।  अच्छे कर्म से स्वर्ग मिले ,  जहाँ देव - लोक कहलाता ॥ १ ॥  पाप - कर्म जो बडी नीचता ,  धर्म - द्रोह जब होता ।  खून खींचना किसी गरिबका ,  लगे नरक से नाता ॥२ ॥  प्रभुका भजन करे दिल - मनसे ,  जो सेवा में रहता ।  सब पर प्रेम करे करवावे ,  परम धामको जाता ॥३ ॥  जो सत्संगी गुरू कृपा का ,  ज्ञान पात्र हो जावे ।  तुकड्यादास कहे वह फिरके ,  अमर मुक्ति को पावे ॥४ ॥  वारासिवनी ;  दि . २१ - ९ -६२

दियो , दे दियो जी मोहे

  दियो , दे दियो जी मोहे  ( तर्ज : जिया ले गयो जी मोरा )  दियो , दे दियो जी मोहे दर्श दियो ।  सत्गुरुचरण ही पार कियो ! ॥ टेक ॥  ध्यान कियो , ध्यान कियो ।  हिरदय बीच गुरु ठान लियो ।  मन से ही पूजन - पाठ कियो ।  प्रीत की ज्योति , नीत की भक्ति ॥  तन मन धन परसाद कियो ।। १ ।।  ना कछु रहो , ना कछु रहो ।  बिन गुरु - गम अब सब ही गयो ।  तारचढो ,मन मस्त भयो ।  सोऽहं तारी , अनहद बारी ।  अमृत - जल सुख पान कियो ।। २ ।।  आओ सभी , आओ सभी ।  गुरु - चरनन को ध्याओ सभी ।।  भूल न जा ओ ये मंत्र कभी ।  बेडा ये पार है भजते उद्धार है ॥  तुकड्यादास पुकार कियो ! ॥ ३ ॥  नाशिक , दि . ८ - ९ -६२

ये दुनियाँ

  ये दुनियाँ   ( तर्ज : ये हरियाली और ये रासता ... )  ये दुनियाँ प्रभू का स्थान है ।  इस दुनियाँ में हलन - चलन जो  प्रभु का वही गुण - गान है ! ॥ टेक ॥  पर्वत - वृक्ष है बेला उनकी ।  सागर - नदियाँ  शोभा उनकी ।  चाँद - सुरज है अँखियाँ उनकी ।  सन्त उनके जीवन के  प्रिय प्राण हैं ।।१ ।।  एक तरफ है असूर की शोभा ।  एक तरफ है देव औ ' रंभा ।  बीच गडा प्रकृति का खंबा ।  खेल चले , मेल चले ,  यही तो शान है ॥२।।  आते हजार हैं , जाते हजार हैं ।  रोते हजार हैं , गाते हजार हैं ।  तुकड्या कहे ,  नहीं उनका ये पार है  जो जाने , वही शाने ,  यही तो जान है ! ||३ || सूरत , दि . १२. ९. ६२

चलती के सब है प्यारे

  चलती के सब है प्यारे बिगडी को कौन सुधारे ? कोई मिले , सखी के लाल भले! ||टेक|| जब तक ज्वानी का भर है तब तक ही नारी तर है  अब इन्द्रिय पाँव पसारे तब कोई सुने न हमारे   कोई मिले , सखी के लाल भले! ||१|| जब जर जेवर है कर मे तब मित्र बने घर-घरमे धन गया - न कोई पुकारे सब भग जाते डर सारे कोई मिले , सखी के लाल भले! ||२|| जब सत्ता पास रहेगी  तब हाँजी -हाँजी होगी  जब चुनाव मे जा हारे कुत्ते नही जाय पुकारे । कोई मिले ,  सखी के लाल भले! ||३|| जब तप का बल हैं भारी ।  तब झुण्ड पडे नर- नारी तप भ्रष्ट भीख नही डारे  घुमते रहो मारे -मारे   कोई मिले  सखी के लाल भले! ||४|| यह तुकड्या ने कहलाया ।  सब प्रभु की छायी माया ।  जब सत्गुरु किरपा तारे ।  तब दुनिया चरण पखारे ।।  कोई मिले ,  सखी के लाल भले ! ॥५ ।।  सुरत ,  दि . १२ - ९ -६२

दिया , दे दियाजी

  दिया , दे दियाजी  ( तर्ज : , जिया ले गयोजी मोरा ,  )  दिया , दे दियाजी ,  मैंने प्राण दिया ।  अब नहीं रखा कोई  पास लिया ॥ टेक ॥  मैं नहीं हूँ ; मैं नहीं हूँ ।  सब में तो रघुबर छाय गया ।  आँख में वो मेरे रोशन दिया ।  सुन्दर निहारता , चरणों में सार था ।  कुछ था , जो दिल से  निकाल किया ||१|| शान्त भया , शान्त भया ।  काम - क्रोध में का  सारा जोश गया ।  पानी मिला पानी में  तो पानी रह गया ।  जीव - शिव एक है ,  देवभक्त एक है ।  तुकड्या ने ऐसो  मन ठान लिया  नासिक ; दि . ८ - ९ -६२ तेरा कदम ( तर्ज : तुम छलियाँ बनके आना ... )  तेरा कदम न आडा जावे ।  गर तू इन्सान कहावे ।  चल चढो ले रंग ,  धर दिल संतसंग ॥ टेक ॥  कोई शराब - गांजा पीते ।  कोई चलते जेब कटाते ।  यह भी तो नर कहलावे ।  पर पशु में भेद न पावे ॥  चल चढा ले रंग ;  धर दिल संतसंग ।।१।।  कोई दूध में पानी डाले ।  कोई गहूँ में कंकड घोले ।  और धर्मवान् कहलावे ।  फिर ऐसी...