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मे, २०२२ पासूनच्या पोेस्ट दाखवत आहे

छोड दे झूठोंका फंदा

 ( तर्ज - संगत संतनकी करले ० )  छोड दे झूठोंका फंदा ।  असत्‌का मारग है अंधा ॥टेक ॥  काम - क्रोधमें क्यों लपटा है ?  होता है हैरानी ।  किसि दिन जमका मार पडेगा ,  भूलेगी यह बानी ॥१ ॥  सत् मारगको धरले भाई !  सौख्य वहीं है अपना ।  बिना नामके कहुँ न रंग है ,  यह सारा है सपना ॥२ ॥  माड़ि - हवेली किसकी बैठी ?  कौन रहेगा इसमें ? ।  बाप बड़े तो भगे आखरी ,  गये कालके वशमें ॥३ ॥  साधु संतको पूज भावसे ,  ग्यान कियाकर बंदे ! ।  कहता तुकड्या समझ - समझसे ,  छोड़ झूठके फंदे ॥४ ॥ 

जौहरी होनेको चटका

 ( तर्ज - संगत संतनकी करले ० )  जौहरी होनेको चटका ,  जाकर फूगेसे लटका ॥ टेक ॥  खेचर - भूचर मुद्रा धारी ,  लाल रंगको पाई ।  सब लोगनको वही दिखाकर ,  सब दुनिया झुकवाई ॥ १ ॥  शिष्य बनाकर द्रव्य पछाड़ा ,  नर्कनिशान कमाई ।  काम क्रोध तो लपटे अंदर ,  बाहर बन गया साँई ॥ २ ॥ पूरक कुंभक पता नहीं पर ,  झूठ समाधी लाई ।  तनपर भार लिया मालाका ,  जपने समय न पाई || ३ || कहता तुकड्या छोड ढोंग यह ,  संतनके सँग लागो ।  सच्चा लाल तनूमें तुम्हरे ,  गुरू - ग्यानसे जागो ॥४ ॥ 

ख्याल कर जरा अपनी कायामो

 ( तर्ज - गुरुको देखो , अपने घटमाँही ० ) ख्याल कर जरा अपनी कायामो  दौरता क्यो है मायामो? || टेक || उलट कर नैना , चढा रंग अपना ।  छोड़ दे विषयनका बाना ।  भला नहि होगा , इसके सँग नाना ।  सुने मत मायाका गाना ।  गुरुको भजो , लगातार ध्याना ।  चढा मन प्राणको अस्माना ।  करो सत् - सेवा ,  सुख पा लो यामों । दौरता ० ॥१ ॥  गुरु - किरपाकी , लाग गई तारी ।  चढी नैननमों उजियारी ।  नशा मन भाई ,  क्या कहुँ बलिहारी ।  सुनी सोहंकी धुनकारी ।  अनाहद बाजे , बाजत अति प्यारी ।  हुआ मन मगन , सुधी हारी ।  खबर गई तनकी ,  सुख पा लो यामों । दौरता ० ॥२ ॥ गजबकी लाली , शुभ्र श्याम छाई ।  बीचमों नील रंग पाई ।  घटा बादलकी , भौर - भौंर आई ,  झडी अमृतकी टपकाई ।  भ्रमरगुंफासे , योगी सुख पाई ।  वृत्ति निवृत्ति भयी भाई !।  कहा ना जावे , सुख पा लो यामों ।  दौरता ० ॥३ ॥  अमर यह बातें , मिलती संतोंसे ।  भागके ऊँचे अवसरसे ।  मनुज तन माँही , जा पूछो गुरुसे ।  और अजमा लेना जी से ।  ध...

त्याग कर प्यारे , इस झुठे मनका

 ( तर्ज - गुरुको देखो , अपने घटमाँही ० )  त्याग कर प्यारे , इस झुठे मनका ।  साथ कर अपने आतमका || टेक ||  भरोसे मनके , जो गोते खाये ।  न वापिस देखे फिर आये  पुरे झटकाये , माया मन भाये ।  विषयसँग नाहक भरमाये  खबर नहि उनको ,  सुख क्या संतनका । साथ कर ० ॥  गौरकर देखो , क्यों दुनिया पाई ?  प्रभूने किसकारण भाई !  बताई तुमको , हमको सबकोही ?  बिना हरिसुमरण सुख नाही  सूख पावनको , कर मन स्थिर भाई !  तभी अँखियोंमें रँग पाई  मजा खुब पावे , चढे नशा उनका ।  साथ कर ० || २ || कसा आसनको , लगा तार अपना । छोड़कर दुनिया का सपना ।  ध्यान धर दिलमें , उलट जमा नैना ।  चला जा चितसे अस्माना ।  भ्रमरगुंफार्मे , निर्मल कर प्राणा ।  निशाना साध वहीं रहना ।  अमर हो जावे , संग करे तिनका ।  साथ कर || ३ || चढ़ा पन मौनी , निर्मल धारीमें । '  सत् - चित् ' की उजियारीमें ।  ध्वनी सोहंकी , रहती है जामें  रहे मन मगन सदा तामे कहा तुकड्याका ,  मान जरा दिलमें ।  जीव न रहे यह उलझनमें  सदा...

सोचकर चलो , समझ सुजानो हो

 ( तर्ज - गुरुको देखो , अपने घटमाँही ० )  सोचकर चलो , समझ सुजानो हो !  जगत यह अंधा ,  खुण पाओ ||टेक|| संत - साधूके , जाओ चरणोंमे ।  भरोसा रखकरके जीमें ।  बोधको पाओ , अपने अंदरमें ।  रटो दिल लगाय मंदरमे ।  नामजप - तारी , ना छोडो धीमे ।  मस्त हो जाओ उस लौमें ।  मजा फिर देखो , ना भूले जाओ ।  जगत यह ०॥१ ॥  बाचकर पोथी , खाली क्या होता ?  बनेगा पढ़ - पढ़के तोता ।  लपट हंकारा , अहंकार आता ।  प्रभूका प्रेम नहीं पाता ।  बिना संगतसे , झूठ सभी नाता ।  मिलेगा मायासे गोता ।  समझ यह पाओ , ना भूले जाओ ।  जगत यह ० ॥२ ॥  कृपालू स्वामी , दया करें तनमें ।  भटकते क्यों हो बनबनमें ? ।  चलो वा घरको , मत घबडो जी में ।  तरोगे भवसागर धीमे ।  यार ! सुध पाओ , ना भूले जाओ ।  जगत यह ० ॥३ ॥  संगती साधो , धीर धार मनमें ।  रोक लो मनको शम - दममे दास तुकड्याकी , खबर सुनो छनमें । तरोगे इसही जीवनमे कृपा हो जावे , निज-रुपमें न्हाओ ।  जगत यह ० || ४ ||

समझ यार तू , क्यों पगला बनता

 ( तर्ज - गुरुको देखो , अपने घटमांही ० )  समझ यार तू , क्यों पगला बनता ?  विषयमें काहे  डूब मरता ? || टेक || झूठ मायामें , किसे सूख पाया ?  जनमको आकर पछताया  दुःखकी व्याधी , नाहक लगवाया ,  प्रभूका नाम नहीं गाया  अंत जब आये , संगमें को आता ?  विषयमें ० ॥ १ ॥ दिवाना बनके , ' सब मेरा ' कहता ।  नींदमे गफलतमें सोता ।  खबर नहि आती ,  प्राण कहाँ जाता ?  लगाता मायासे नाता ।  कर्म करनेको , नेकी नहि पाता ।  पापकी गठडी बँधवाता ।  भूल यह ऐसी , काहे नहि तजता ?  विषयमें ० ॥ २ ॥  गुरुकी माया , अजब संग छावे ।  अमरपद भक्तनको देवे ।  छोड झंझटसे , निजरुप बतलावे ।  शरण जो चले उसे पावे ।  गुरुकी किरपा , क्यों नहि भरपाता ?  विषयमें ०॥३ ॥  नेक कर करनी , धर साधूसंगा ।  लगा ले अँखियोंमें रंगा ।  भजनकी लाली , चढा अमर गंगा ।  रहे मायासे निःसंगा ।  कहा तुकड्याका , क्यों नहि अजमाता ?  विषयमें ० ॥४ ॥ 

हुशारी रखो , तन - मंदर भाई

 ( तर्ज - गुरुको देखो , अपने घटॉ ० )  हुशारी रखो , तन - मंदर भाई !  पूनसे मानुजको पाई || टेक || महा दुर्लभ है , इसका मिलजाना ।  कष्ट कर कोट कोट नाना ।  तभी ना पावे , मानवका जीना  मिले संजोग तभी पाना  मनुजका होता , समझो दिलमाँही ।  पूनसे ० ॥ १ ॥  सजीली आँखे , मुखड़ेकी लाली ।  चमक मस्तकपर उजियाली  ग्यानकी धारा , अंदर अलबेली ।  हाथ पैर और बलशाली  हाथिसम शोभे , क्यों खोता भाई !  पूनसे ० ॥ २ ॥  रतनकी खानी , मिलि है किस्मतसे  यार ! तू पूछ खूब ' जी ' से कौल क्या क्या था , कबूल ईश्वरसे ?  कि ' मैं ना छोड़ेंगा तुमसे  किया था तुमने , क्यों भूला भाई !  पूनसे ० ॥ ३ ॥  साधले अब तो , कर नेकी जगमें ।  प्रभूके जा प्यारे ! पगमे  स्मरण कर उसका ,  रखो ख्याल जीमें ।  कहे वह तुकड्या क्या तुझमे पता कर लेना , फेर समय नाहीं ।  पुनसे ० ॥ ४ ॥ 

बना सत् - संग यह अंजन

 ( तर्ज - लगा ले प्रेम ईश्वरसे ० )  बना सत् - संग यह अंजन ,  कोई भी आँखमें भर लो ।  खुला लो पट जुदाईके ,  खुशी हो तो यही कर लो ॥टेक ॥  न दुनियामें दुजा कोई ,  बतावे धन यह आतमका ।  वही मशहूर बूटी है ,  खुशी हो तो अमल कर लो ॥ १ ॥  हरामी साँप जहरीले ,  टपे है काम - मद द्रोही ।  लुबाड़े जान जीवोंकी ,  खुशी हो तो कदर कर लो ॥ २ ॥ जगतमें धन समाया है ,  बिना गुरुके न पाया है उसीने खोज लाया है ,  खुशी हो तो उसे घर लो || ३ || करो निष्काम सत - संगत ,  बढाओ ग्यानकी तारी ।  वह तुकड्यादास कहता है ,  काल - घर फेरके हर लो ॥ ४ ॥ 

कहो कैसे रहें जगमें ?

 ( तर्ज - लगा ले प्रेम ईश्वरसे ० )  कहो कैसे रहें जगमें ?  बिकट यह काल आया है ।  बडा मुश्कीलसे रहना ,  हमें नहि यार ! भाया है ॥ टेक ॥  कोई कहते ' धरम खोजो ,  हटाकर और बातोंको ' ।  कोई तो ‘ धर्म यह झूठा '  खबर दुनियामें लाया है ॥१ ॥  कोई कहते ' बनो हिंदू कोई '  इस्लाम हो ' बोले ।  हजारो पंथ दुनियामें ,  बनाया है छुपाया है ॥ २ ॥  कोई कहते ' समय देखो ,  करो सब लोगका मेला ' ।  कोई कहते ' न बन सकता  अँधेरा वह उजारा है ' ॥ ३ ॥  कई हैं संत - मत जगमें ,  कई तो भोंदु बहलाते ।  वह तुकड्यादास कहता है ,  अजब यह नाथ ! माया है ॥ ४ ॥ 

सुना मैंने गुरू जनसे

 ( तर्ज - लगा ले प्रेम ईश्वरसे ० )   सुना मैंने गुरू जनसे  प्रभू सबके भरा घटमें ।  जिधर देखो उधर वह है ,  है मंदरमें , है मसजिदमें || टेक || अगर यह हाल जो सच है ,  तो हमको भूल क्यों ऐसी  कि ' हम हिंदू वह मुस्लिम है '  जुदा कैसे खुदा हकमें ? || १ || मेरा तो ख्याल यह होता ,  वही सब खेल करता है । प्रजा - राजा वही बनकर ,  मजा करता है झंझट में || २ || कहीं वह हाथि बनकरके ,  लजाता चीटियाँकोभी |  सुना था ' चिटियोंमें भी ,  भरा हूँ मँहि हट - दटमें ' ।।३ ।।  कहीं दिवाना बनकर वह ,  खुदी मस्तीको पाता है ।  कहे तुकड्या अनुभवसे ,  पता पाता है घट - घट में ।। ४ ।। 

स्वरुप पहिचान लो अपना

 ( तर्ज - लगा ले प्रेम ईश्वरसे ० )  स्वरुप पहिचान लो अपना ,  सहजमें वह समाया है ।  भटकते क्यों दिवानेसम ?  खोज लो अपनी काया है || टेक || अमोलिक जन्म मानवका ,  मिला अपनेको इस जगमें  गुरूबिन पार ना पावे ,  वही ' मारग बतैया ' है ||१|| पूछकर संतसे अपने ,  करो पहचान आतमकी । ‘  कौन मै ? क्या मेरा रुप है ?  कहाँ कैसे समाया है ?? || २ || भरम दिलका हटाकरके ,  चढो दरबार ईश्वरका  समा लो रूपमें उसको ,  हटाकर मोह - माया है || ३ || वह तुकड्यादास कहता है ,  बखत फिरसे नही आवे ।  समझलो खूब यह दिलमें , '  समय फिरके न आया है || ४ ||

अगर भवपार होना हो

 ( तर्ज - लगा ले प्रेम ईश्वरसे ० )  अगर भवपार होना हो ,  तो मत पंथोमें फँस जाना ।  चढाकर ग्यान की बूटी ,  प्रभूके नाम जप जाना ॥ टेक ॥  हजारो पंथ हैं जगमें ,  सभी हैं स्वार्थके साथी ।  कोई बिरला गुरु पावे ,  उन्हीसे रंग चढवाना ॥ १ ॥  चढो नहि रंग ऊपरका ,  चढाना वृत्तिकी लाली ।  सदा अलमस्त धुन प्रभुकी ,  उसीमें दिलको बहिलाना ॥ २ ॥ न वैष्णव हो , न हो शिवका ,  न हो कोई किसीका भी ।  तु हो अपनेहि आतमका ,  उसीका ग्यान कर जाना || ३ || सभी है एकही ईश्वर ,  ये ऊपर भेद हैं सारे ।  वह तुकड्यादास कहता है ,  समझ यह दिलमें भर जाना || ४ ||

अरे गाफिल ! कहाँ सोये

 ( तर्ज - लगा ले प्रेम ईश्वरसे ० )  अरे गाफिल ! कहाँ सोये ?  यहाँ तो चोर लूटेंगे ।  फँसाकरके तुम्हें जगमें ,  पहुँच जमद्वार पीटेंगे ॥ टेक ॥  तुम्हें नहि क्या खबर इसकी ?  कई तो देखते हो तुम ।  चले जाते हैं मरघटमें ,  तुम्ही फिर कैसे जूटेंगे ? ॥१ ॥  कई बूढे , कई ज्वाने ,  कई जोगी , कई उमराव ।  सभीका एकही रास्ता ,  न कोईभी हैं छूटेंगे ॥ २ ॥  न पैसाही बचावेगा ,  न साथी गोत आवेगा ।  धरो एक सद्गुरू - मारग ,  तो जमके द्वार खूटेंगे ॥३ ॥  वह तुकड्यादास कहता है ,  प्रभूके नाम ना भूलो ।  चढाओ ग्यानका अंजन ,  तभी तो काल ऊठेंगे ॥ ४ ॥ 

गुरूका नाम रट भाई

 ( तर्ज - भले वेदांत पछाने हो ० ) .  गुरूका नाम रट भाई !  पडेगा फिर उजाला है ।  हटेंगे कामसम बैरी ,  गुरू जब मंत्र डाला है || टेक ||  बचन सुन कर्णसे उनका ,  राह चल जगतमें वैसी ।  फटेंगे भेद आलसके ,  दिखेगा रूप आला - है ॥ १ ॥  गुरूबिन जोभी पढ़ जावे ,  वह बिरथाही समय खोवे ।  अगर गुरु ग्यान दे पावे ,  खुलेगी घटकि माला है ॥२ ॥ भ्रमरकी है गुफा प्यारी ,  लखो फिर नैन - उजियारी ।  चमकती है सदा तारी ,  गुरूबिन बंद ताला है ॥ ३ ॥  कहे तुकड्या समझ धरके ,  गुरूको पूछ यह पहलें ।  पिंडब्रह्मांडकी बाते ,  खबर कर हो निराला है ॥४ ॥ 

मरण - जीना तनूको है

 ( तर्ज - लगा ले प्रेम ईश्वरसे ० )  मरण - जीना तनूको है ,  आतमा है सदा न्यारा ।  न उसको बाध है कोई ,  सकलं उसकाहि उजियारा ॥टेक ॥ समझकर खूब यह दिलमें ,  धर्मके मर्म रख जीते ।  अगर कट जायगा उसमें ,  तभी तेरा न कुछ हारा ॥ १ ॥  लडे अर्जून जब रणमें ,  विमोहित देखकर मनमें  बताया ग्यान भगवनने ,  गिताकी टेर सुन सारा ॥२ ॥  जिवनभी इस तरहही है ,  रणांगण लाभ - हानीका ।  वह तुकड्यादास कहता है ,  न्यायसे सत्य कर प्यारा ॥३ ॥ 

कमाई ऐसी करता है

 ( तर्ज भले वेदांत पछाने हो ० )  कमाई ऐसी करता है ।  और जमके घर भरता है ॥ टेक ॥  भजन पुजन तो करे बडा पर ,  दुखसे क्यों डरता है ? ।  प्यासेको नहि देता पानी ,  ' मैं साधू ' कहता है ।। १ ।।  शिष्यजनोंकी सेवा लेकर ,  मौज बडी करता है ।  लोगोंको क्या ग्यान बताता ?  तूही तो मरता है ॥२ ॥  देख ' तुका ' का भजन रंगमें ,  अपने तनको भूला ।  ' विठ्ठल विठ्ठल ' कहते कहते  फना किया सब चोला ॥३ ॥  ऐसा भजन कियाकर प्यारे !  जिससे जम डर जावे ।  कहता तुकड्या प्रभू - भजनविन ,  काहे ढोंग बतावे ? ॥४ ॥ 

साधो ! खोज करो तनमों

 ( तर्ज - भले वेदांत पछाने हो ० )  साधो ! खोज करो तनमों ,  भटकते क्यों हो बनबनमों ? ॥ टेक ॥  क्षमा- शांतिका गंगाजल है ,  स्नान करोरे उनमों ।  अंदर कपट निकाले धोकर ,  आओ निर्मल बनमों ॥१ ॥  ग्यानाग्नीसे क्रोध , लोभ , मद ,  जलाहि डारो सारा ।  आसन निरालंबमें साधो ,  पिओ प्रेमकी धारा ॥ २ ॥  अजपाजाप जपो तनमाँही ,  लाओ सूरत - तारी । ‘  अस्ती भाती प्रीय ' रूपसे '  रँगजा हर परकारी ॥३ ॥  कहता तुकड्या सद्गुरु खोजो ,  पूछो मारग खासा ।  " साक्षी कैसे रहना जगमें ? '  तोडो झगड़ा झाँसा ॥४ ॥ 

बने मस्ताने अपने में

 ( तर्ज - भले वेदांत फ्छाने हो ० )  बने मस्ताने अपने में  मजा करते हैं दुनिया में ॥ टेक ॥   किसदिन गादी - तकिया बैठे ,  पडे बिछाने में ।  किसदिन बैठे नदी - किनारे ,  सुख हरियालीमें ॥ १ ॥  किसदिन शालू जरी दुशाला ,  फूँवर कानों में ।  किसदिन ओढे मृगचर्मासन ,  बैठे धुनियामें ॥२ ॥  किसदिन सँगमें राव साहु हैं ,  बडे बडेसे ग्यानी ।  किसदिन भू खेतका मेला ,  सँगमें लोग दिवाने || ३ ||  किसदिन हरी - भजनकी बूटी ,  नाचे मंदिरमें ।  किसदिन तुकड्या बना दिवाना ,  बैठा है रँगमें ॥४ ॥ 

धुंदी छोड़ अभी प्यारे

 ( तर्ज - भले वेदांत पछाने हो ० )  धुंदी छोड़ अभी प्यारे !  बडा सिर खडा काल तेरे || टेक || सदा खुशीमें रहता है पर ,  उसपर ख्याल न कीन्हा ।  एकदिन झपट मार ले जावे ,  भूलहि जाय ठिकाना || १ || जानो सपना जग यह अपना ,  रामहि आवे साथी ।  झूठ पसारा लेकर सिरपे  क्यों करता है माती ? ॥२ ॥  किसकी तिरिया किसका धन है ,  किसका लडका लडकी ?  सब स्वारथके साथी भाई ।  आखिर होवे खुडकी ॥ ३ ॥  कहता तुकड्यादास गुरूका ,  होकर करो गुजारा  आतमग्यान करो तनमाँही  जभी लगेगा थारा || ४ ||

क्या कोई है ऐसा ग्यानी

 ( तर्ज - भले वेदांत पछाने हो ० )  क्या कोई है ऐसा ग्यानी ?  जिसने तन तीरथ जानी || टेक || पंच तत्त्वका मकान जिसमें  तीन लोकका बासा ।  एकबीस पहरीके ऊपर  उसका रहे निवासा || १ || पंच कोशकी अंदर कुटिया ,  सुंदर कारागारी ।  नौ दरवाजे दशवी खिडकी ,  शोभा न्यारी न्यारी || २ || सात रंगके काँच लगाये ,  सातों झुंबरमाँही ।  अजब वहाँकी गहरी नदियाँ ,  गंगा - जमुना भाई ! || ३ || झिलमिल झलके रोशन जिसमें ,  दिन नही है रैना ।  कहता तुकड्या जिसने जाना ,  वही संत निर्बाना || ४ ||

खोजो सार जगतमाँही

 ( तर्ज - भले वेदांत पछाने हो ० )  खोजो सार जगतमाँही ।  दिवाना होना नहि भाई ! ॥ टेक ॥  बालकपन खेलनमें खोया ,  तारुणपरणं आई ।  अंधा होकर भुला विषयमें ,  धीरज नहि पाई ॥ १ ॥  बूढेपनमें टोकर काया ,  हड्डी रह जाई ।  आये वैसे चले अकेले ,  क्या सार्थक पाई ? ॥ २ ॥  इसी तरहसे बाप बडे सब ,  खोये जगमाँही ।  तू तो सावध हो जा प्यारे !  क्यों दिल भरमाई ? ॥ ३ ॥  कहता तुकड्या दास गुरूका ,  भज ले यदुराई ।  वही सार है और सभी यह ,  झूठा जग भाई ! ॥ ४ ॥

बातमें जन्म गमाया है

 ( तर्ज भले चेंदात पछाने हो ० )  बातमें जन्म गमाया है ।  अनुभव क्यों नहि पाया है ? ॥टेक ॥  चित्त शुद्ध कर अपना जिसमों ,  सत्य रमाया है ।  पल पल श्वासा क्यों खोते हो ?  झूठी माया है ।। १ ।।  नश्वर यह जंजाल जगतका ,  संग लगाया है ।  अपनेसे फँस जाता उसमें , '  मेरा ' कहाया है || २ ||  परब्रह्म अविनाशी मेरा ,  घट घट छाया है ।  गुरू - ग्यानसे जागे जो कोइ ,  उसने पाया है ।।३ ।।  कहता तुकड्या बातें ये सब ,  फोल कहाती है ।  जबतक आतम- अनुभव नाही ,  तब सब माती है ॥ ४ ॥ 

धिर नहि तेरेबिना

 ( तर्ज - मानले कहना हमारा ० )  धिर नहि तेरेबिना ,  प्रभु ! दास तेरा रो रहा है।॥टेक ॥  कौनसा घर देख लूँ  जिसमें तु मुझको मिल सके ?  ढूँढता फिरता मगर ,  पाता पता नहि , तू कहाँ है ? ॥१ ॥  मैं खुदी बैमान हूँ  तुझको भुला जग - जालमै ।  अब आखरीकी अर्ज है ,  दे दो प्रभु ! अपना सहा है ॥२ ॥  कई फकीरोंसे पुछा  ' साँई नजर भरदो मेरे ' ।  " पास है तेरे " यही कहते ,  मगर तू ला - पता है ॥३ ॥  ना भुलाओ दासको ,  अब दर्श देदो आयके ।  कहत तुकड्या नाथके बिन ,  जन्म बिरथा जा रहा है ॥४ ॥

मोक्ष - मुक्ती , स्वर्ग , भूमी

 ( तर्ज - पानसे कहना हमारा ० )  मोक्ष - मुक्ती , स्वर्ग , भूमी ,  निज स्वरूप में है नहीं || टेक || नाम नहि अरु रूप नहि ,  न निशान भी अरु ठान थी ।  है न जाना और आना ,  मरण जीना है नहीं || १ ||  पुण्य नहि चाहता तुझे ,  अरु पाप नहि लगता तुझे ।  काल नहि छूता तुझे ,  अरु आयु - बंधन है नहीं ॥२ ॥  मर्दपन तुझमें नहीं ,  नामर्द तू होता नहीं ।  नर नहीं , नारी नहीं ,  तु जीवभी तो है नहीं || ३ ||  नित्य है आनंदघन ,  अक्षय सदाही एकसा  कहत तुकड्या सोच कर ,  मायाभि तुझमें है नहीं ॥ ४॥ 

कर मजा दुनियामें आकर

 ( तर्ज - मानले कहना हमारा ० )  कर मजा दुनियामें आकर ,  क्यों सजा पाता है तू ? ॥टेक ॥  बे- सुमा घरदार तेरा ,  रात दिन रोशन उजेरा ।  खोजता क्योंकर नही ?  अरु ठोकता बाता है तू ॥ १ ॥  क्या नहीं तेरी जगह ?  कह तो जरा मुझको भला ।  शक्ति है तुझमें भरी पर ,  काममें रोता है तू ॥२ ॥  संग विषयोंका कियेसे ,  होगया नादान - सा ।  कमजोर तेरी रोशनी ,  बस याँहि भाँ खाता है तू ॥ ३ ॥ जा गुरुको पूछकर अपना पता करले जरा कहत तुकड्या मस्त हो बस रामका नाता है तू || ४ ||

नाथके दर्शन बिना

 ( तर्ज - मानले कहना हमारा ० )  नाथके दर्शन बिना ,  नरजन्म सारा फोल है || टेक ||  क्या हुआ तीरथ गया ?  अरु क्या हुआ मूरत पुजां ? ।  प्रेम नहि दिलमें जरा ,  खोया बखत अनमोल है ॥ १ ॥  वस्तुएँ सारे जगतकी ,  मोहनी - सी देख लीं ।  पर ना प्रभू - दर्शन किया ,  तकदीरपर क्या बोल है ? ॥२ ॥  चार दिनकी जिंदगी ,  खोई जवानी - शौक में ।  सब इंद्रियाँ ढीली परी ,  सब खो दिया तन - तोल है ॥३ ॥  जन्म यह अनमोल सा ,  मत खो कभी नर ! मान तू ।  कहत तुकड्या भज गुरू ,  खुल जायगी घट - भूल है ॥४ ॥ 

कर पता घरका गडी

  ( तर्ज - मानले कहना हमारा ० )  कर पता घरका गडी !  पर घर कहाँ है ढूँढता ? ॥टेक ॥  देख तो अजपा चली ,  सोहँ उच्चारोंसे खुली ।  ख्याल तो दे दे जरा ,  क्यों मोह माया गूँडता ? ॥१ ॥  जीव शिव हैं तनकेमाँही ,  एक कर निज ग्यान पाई ।  छोड दे उनकी दुआई ,  गुरु - कृपा क्यों छोड़ता ? ॥२ ॥ बाज अनहदका बनाया ,  सूर बंसीसम भराया ।  ख्याल क्यों यह दौडता ?  कौन है इसका बतैया || ३ || रोशनीका है उजारा ,  बिन सुरज और चाँद तारा ।  कहत तुकड्या खोज कर ,  नरदेह क्योंकर मूँडता ? ॥४ ॥ 

चल उठो करलो तयारी

 ( तर्ज - मानले कहना हमारा ० )  चल उठो करलो तयारी ,  मांतका दिन आ रहा है || टेक || धन - हवेली सब भुलेगी ,  तन - लँगोटी वह खुलेगी ।  बाँसपर काया झुलेगी ,  यह शिरस्ता आ रहा है ॥१ ॥  बहन - भाई जोरु - लडके ,  अंतमें खोजे न तडके ।  सब धनोंपर आय पडके ,  जूतियाँ तुहि खा रहा है ॥२ ॥  गोफ कडियाँ लाल जडियाँ ,  अंतमें सब जाय पड़िया ।  ले चले साथी लकडियाँ  वह मजा फिर पा रहा है ॥३ ॥  कौडी कौडी जोड कीन्ही ,  चोरने सब अंत छिनी ।  कहत तुकड्या सुन कहानी ,  दमपेदम यहि रो रहा है ॥४ ॥ 

मौत जीना है किसे

 ( तर्ज - मानले कहना हमारा ० )  मौत जीना है किसे ?  डर मानते हो काहेका ? ॥टेक ॥  ना मरे चेतन कभी ,  जड तो न जीता था कभी ।  भास झूठा मानकर ,  झगड़ा बढाया मोहका ।। १ ।। जीव तो प्रतिबिंब है चेतन नजर तो पड रहा मूल तो निजब्रम्हसे उजियाल है सब धामका || २ || ना मरे आत्मा कभी अक्षय रहे सम नित्यही यह ग्यान जिनको है नही वहि दु:ख पाते मौतका || ३ || मिट्टिमे मिट्टी मिले और पवनमे मिलता पवन कहत तुकड्या लोभसे रोता गडी अग्यानका || ४ ||

भाई ! दुनियामें जीना निकाम है

 ( तर्ज - नागनी जुल्फोंपे दिल ० )  भाई ! दुनियामें जीना निकाम है ।  गरचे होगा बुराईका काम है ॥ टेक ॥  पाप माथेपे कसके  लगाही लिया ।  जो न करना था सोही  ज़बर हो किया ।  बचके आगेभि ना  होगा नाम है ॥ १ ॥  कोई चलते न अच्छा कहे मुँहसे ।  लोग मुख़ड़े को देखे , बड़े ही हँसे ।  व्यर्थ जीवन है ऐसा , छदाम है ॥ २ ॥ गरचे करना है की मजा पायगा ।  नाम ईश्वरका लेकर सुखी होयगा ।  कहता तुकडचा मिलेगा  अराम है ।। ३ ।।

क्या खुदाई खुदीसे नियार है

 ( तर्ज - नागनी जुल्फोंपे दिल ० )  क्या खुदाई खुदीसे नियार है ? ।  मैं तो समझा कि ,  एकीका तार है ॥ टेक ॥  पोथी पढ़नेसे पाता नही है पता ।  घूमो तीरथ या मंदर ,  वहाँ ला - पता ।  वह तो धुनियाके  धुनमें निसार है ॥ १ ॥  चाहे बनमें घुमो तो  न पावे वहाँ ।  खुदमें देखो तो  दिखता जहाँके तहाँ ।  सारी उसकीहि  मूरत तैयार है ॥ २ ॥  है जरासा समझना  वह सौखो भला ।  संत - संगतमें पाओ  उसीकी कला ।  कहता तुकड्या ‘ मैं ’  खोजो तुम्हार है ॥३ ॥ 

यह गुनाह तेरे सिरपे तैयार है

 ( तर्ज - नागनी जुल्फॉपे दिल ० )  यह गुनाह तेरे सिरपे तैयार है ।  नेकि करले नहीं तो सवार है ॥टेक ॥  काहे मानुजका  जीवन लिया आदमी !  काहे बुद्धीको पाया भले आदमी !  जानकरके बने तू गँवार है ।। १ ।।  संतसंगत न करता पलकभी कभी ।  चोरी - चहाडीसे मौजें उड़ाता अभी ।  अंत मालूम होगा दिदार है || २ || किसका कहना न माना  जमाना गया ।  अपने मनकीही तूने  बुराई किया ।  कहता तुकड्या भज  साँई तो पार है ॥३ ॥ 

नेकी कर तो इस जगमे सलाम है

 ( तर्ज - नागनी जुल्फॉपे दिल ० )  नेकी कर तो इस जगमे सलाम है ।  बद्दीवालोंका जीवन  बदनाम है ||टेक||  गरचे विषयोंको चाहो  तो विष होयगा ।  यार ! हरको रिझाओ  तो हर पायगा ।  कर ले नेकी और  तर जा गुलाम ! है || १ ||  अपने मस्तीकी रंगतमें  रख ध्यानको ।  सीधा ले चल वलीयोंकि  कहे जानको ।  दूजा दुनियामें है  ना कलाम है || २ ||  छोड दुश्मनकी संगत ,  न चलभी वहाँ ।  जो कि पढ़ना सो पढ़  आखरी जो रहा ।  कहता तुकड्या  प्रभूका ले नाम है || ३ || 

यह जमाना झुठाईका वार है

( तर्ज - नागनी जुल्फोंपे दिल ० )  यह जमाना झुठाईका वार है ।  इसमें सच्चाभी  बनता गँवार है ॥टेक ॥  बूरी मायाके सँगमें फँसो ना कोई ।  यार ! इसने जमानेमें धुम कर दिई ।  करती जोगी - जपीको  बेजार है ॥१ ॥  गरचे सच्चे रहो तो मरो भूखसे ।  और झूठे बनो तो कटो नाकसे ।  कैसा करना ?  ना सूझे बिचार है ॥२ ॥ मैं तो आसा तजूँ यार !  इस लोककी अब तो चाहूँ प्रभूकी दया सूखकी ।  कहता तुकड्या जो  भजता वह पार है || ३ || 

ऊँचि है प्रभुकी जगह

 ( तर्ज - क्यों नहीं देते हो दर्शन ० )  ऊँचि है प्रभुकी जगह ,  पहुँचे न कोई दूसरा || टेक || ढूँढते फिरते तुझे ,  कइ लाल साधू - जोगिया ।  लौटते हैं आखरी ,  पहुँचे न कोई दूसरा || १ || योगकी धरके समाधी ,  खोजते ब्रह्मांड में ।  गम नही चलती वहाँ पहुँचे न कोई दूसरा || २ || बेद - शास्त्रोंका गुजारा ,  मौन लेकर हट गया ।  ना तर्कबुद्धी जा सके ,  पहुँचे न कोई दूसरा  || ३ || है जिन्हें गुरुकी दया ,  वहि मौज पाते हैं वहाँ ।  एक भाव - भक्तीके बिना ,  पहुँचे न कोई दूसरा || ४ || कहत तुकड्या संत - संगत ,  खोज लो जाके कहीं ।  पलकमें चढ जाओगे ,  पहुँचे न कोई दूसरा || ५ ||

जो कसुर होगा हमारा

 ( तर्ज - क्यों नहीं देते हो दर्शन ० ) ?  जो कसुर होगा हमारा ,  माफ कर साँई ! सभी ॥टेक ॥  छोडकर घरबारको ,  धन - माल साथी - यारको ।  हूँ अकेला जगतमें ,  क्यों ना दया आती अभी ? ॥१ ॥  ढुंढता हूँ बनबनों में ,  खोजता तुझको यहाँ ।  बेचैन हूँ तेरेबिना ,  मिल जा मेरे प्यारे नबी ! ॥२ ॥  हूँ भटकता पलक में ,  नहि नींद आती सूखसे ।  आँखियाँ नही लगती जरा ,  टुक देख लो मुझको कभी ॥३ ॥  कहत तुकड्या अर्जको ,  बेगर्जसे ना छोडिये ।  है दया तुममें भरी ,  दीदार देना हो ! कभी  || ४ ||

जान ले अपना भरोसा

 ( तर्ज क्यों नहीं देते हो दर्शन ० )  जान ले अपना भरोसा ,  तूहिमें आराम है || टेक ||  सौख्यरुप तू है खुदी ,  क्यों ढूंढता हैं बाहरी ? ।  पूछ ले गुरुको भला ,  तो तूहिमें आराम है ।। १ ।।  षड् विकारों की वजह ,  तुझको नरक भोना पड़ा । ?  इन दुर्जनोंको दूर कर ,  तो तूहिमें आराम है ॥ २ ॥  मोहनी माया लगी ,  भ्रमसे तुने ' अपना ' कहा । मस्त हो निजग्यानसे ,  तो तूहिमें आराम है ॥३ ॥  कहत तुकड्या ' सत्य है ,  तेरा स्वरुप ' तू जान ले । ?  खोज ले ' मैं ' का पता ,  तो तूहिमें आराम है ॥ ४ ॥ 

भागसे पाई है नरतन

 ( तर्ज - क्यों नहीं देते हो दर्शन ० )  भागसे पाई है नरतन ,  क्यों दिवाने ! खो रहा ? || टेक || नेकि कर , नेकीसे चल ,  बदनाम मत हो भोगसे ।  नहि तो पकड़ ले जायगा ,  आँखे लगा क्यों सो रहा ? || १ || छोड दे विषयोंकि भँग ,  इससे सुखी कोई नही  आखरी जम - जूतियाँ ,  बैठे तो नाहक रो रहा  || २ || कालका घर है कड़ा ,  उसको दया थोड़ी नहीं ।  पाप करते ले पकड ,  डारे नरक में जो रहा ॥ ३ ॥  कहत तुकड्या नाम भज ,  हरिका सदा आनंदसे ।  सुख पायगा , सुख पायगा ,  उँची मजल चढ जा रहा ॥४ ॥ 

दिन चले बीते हैं सारे

 ( तर्ज - क्यों नहीं देते हो दर्शन ० )  दिन चले बीते हैं सारे ,  कब मिलोगे दासका ? ||टेक|| चैन ना पडती हमें ,  तेरे दरसबिन पल - घडी ।  आँखियाँ तरसा रही ,  तुम कब मिलोगे दासको ? || १ || वस्तु दुनियाकी रसीली ,  सुन्न सब दिखती मुझे ।  बस लौ सदा है एकही ,  तुम कब मिलोगे दासको ? || २ || गा रही है गीत मैना ,  बागकी हरियालिमें ।  ना मुझे मीठा लगे ,  तुम कब मिलोगे दासको ? || ३ || कहत तुकड्या नाचता है ,  मोर बनमें रंगसे ।  भाता नहीं दिलको जरा ,  तुम कब मिलोगे दासको ? || ४ ||

भागसे तेरे मुसाफिर !

 ( तर्ज - क्यों नहीं देते हो दर्शन ० )  भागसे तेरे मुसाफिर !  देह मानवकी मिली ॥ टेक ॥  मोल करके जतन कर तू ,  खो मती बिरथा घडी ।  जा समय मिल जायगा ,  भज रामकी पद - अंगुली ।। १ ।।  एक क्षण है मोलका ,  मिलता नही फिर जो गया  देखलो हरिको नजरभर ,  कर भली अँखियाँ खुली || टेक || दु:खमय संसार है, इससे न रख नाता कभी पछतायगा तू आखरी संसार है पूरी शुली || ३ || कहत तुकड्यादास हो तू ,  साधुओंके चरणका  नेकिसे व्यवहार कर ,  भक्ती करो फूली - फली ॥ 

देखले उलटे नयनसे

 ( तर्ज - क्यों नहीं देते हो दर्शन ० )  देखले उलटे नयनसे ,  नैन - नैना रामका || टेक || नैनमे ज्योती भरी है ,  दृश्य - द्रष्टा - दर्शकी ।  ऊर्ध्व करके ख्यालको ,  पाओ झरा निज - प्रेमका ।। १ ।।  रक्त श्वेतरु रंग नीला ,  नैनमें जो छा रहा ।  जागृती अरु स्वप्नके ,  सूषुप्त गुण दर्शा रहा ॥ २ ॥  तुरियाके है पास में वह ,  नैन - तारा अंतका ।  प्राप्तकर साधू उसे ,  फल भोगते निज - धामका ॥ ३ ॥  तार तारोंका लगा जब ,  भूलकर तन मन सभी ।  कहत तुकड्या मस्त होकर ,  रंग पावे श्यामका ।। ४ ।। 

इस जगमें है अमृत सार

 ( तर्ज अब तुम दया करो महादेवजी ० )  इस जगमें है अमृत सार ,  साधूसंत जनोंने पाया ॥ टेक ॥  जिस हालत में प्रभु राखे ,  बस खुशी उसीमें चाखे ।  सुख दुःख समान जिन्होंकेजी ,  वश कीन्ही घटमें माया ॥ १ ॥  जहँ रुखी - सुखी वह खाना ,  जहँ जगह मिली वहँ सोना ।  जल मिले तो प्यास मिटानाजी ,  दिलखुशी वहींपर सोया ॥२ ॥  ' जो देगा वहभी दाता ,  ना दे तो वहभी दाता ' ।  यह अमल चले अजमाताजी ,  निज - रुपमें ध्यान समाया ।। ३ ।। अलमस्त- नशा है प्यारी ,  ना फिकर मरणकी न्यारी ।  कहे तुकड्या वह बलिहारीजी !  जिन प्रभुका प्रेम समाया ॥४ ॥ 

सियाराम ' नाम जप प्यारे रे !

 ( तर्ज अव तुम दया करो महादेवजी ० ) '  सियाराम ' नाम जप प्यारे रे !  जीवनका भरोसा नाही || टेक || है पंच तत्त्वका चोला ,  पंछी है जीव निराला |  जब उडे निकलके अकेला जी ,  पछताओगे मनमाही ॥१ ॥  बडि रामनामकी महिमा ,  जो भजे चले निज - धामा ।  सुख पावे जनमके जनमाजी ,  फिर जमका धोखा नाही ॥२ ॥  वाल्मिकने नाम उचारा ,  अपने जियको रंग डारा ।  रामायण खास निकाराजी ,  प्रभु देवत आय सहाई || ३ || कोइ राम - नाम नित बोले ,  वह सुखके भेदको खोले ।  कहे तुकड्या पियो ये प्यालेजी ,  फिर अमरबूटी मन भायी ॥४ ॥

दिलका मैल सफा कर लेना

 ( तर्ज अब तुम दया करो महायज ० ) '  दिलका मैल सफा कर लेना '  सबने यही  भजन बोला है  || टेक || जिव जनममरण दुख पाया ,  नहि आतमग्यान कमाया ।  यह मनुज जनम है पाया जी ,  संतोने इसे तोला है || १ || सत्संग ग्यान फल पाना ,  प्रभुसे फिर प्रीत लगाना ।  नेकिसे गुजर कर जाना जी ,  तभि पार लगे चोला है || २ || सत्‌शास्त्र  मान परमाना ,  बस अमल वही कर जाना ।  फिर टूटे आना - जाना जी ,  सोहँका पट खोला है  || ३ || सोहँकी तारी लागी ,  जिव - शीव भिन्नता भागी ।  तुकड्या कहे रहत निसंगी जी ,  हर श्वास श्वास डोला है || ४ ||

अपने आप ' न कोई पछाने

 ( तर्ज - अब तुम दया करो महादेवजी ० ) ‘  अपने आप ' न कोई पछाने ,  बातें करत बक्त खोया है।।टेक ॥  कोई बेद पुराणा जाने ,  कोइ कीर्तनमें मस्ताने ।  कोइ अलटे - पलटे बानेजी ,  चित मायामें गोया है ॥ १ ॥  कोइ सीर मूँडाकर आये ,  कोइ भस्म लँगोट चढाये ।  कोई बनमें धूनि लगाये जी ,  मन माया लपटाया है ॥२ ॥  कोइ सिरपे जटा बढावे ,  कोइ रेचक कुंभक भावे ।  पर प्रेम न हरिका पावे जी ,  जिव अहंभाव सोया है ॥ ३ ॥ जो करे गुरुकी सेवा वहि पावे हरिका मेवां कहे तुकड्या पता चलावाजी मै तू का भेद पाया है || ४ ||

है कौन जगतमें साथी

 ( तर्ज - अब तुम दया करो महादेवजी ० )  है कौन जगतमें साथी ?  इसका भेद बतादो कोई ॥ टेक ॥  जब कष्ट करे यह देही ,  तब आवे साथि- सगाई ।  चलती के प्यारे भाईजी ,  पडतीके कोई नाही ।। १ ।।  जब ज्वानी तनमें आवे ,  तब नारी प्रेम लगावे ।  पडतीपे गालि सुनावेजी ,  खाँसीकी सवारी आई ।।२ ।।  जब पैसा करमें आवे ,  तब बेटा ' बाप ' कहावे ।  धन गया तो गाली खावेजी ,  बूढेकी खाट बिछाई || ३ ||  कहे तुकड्या आखिर साथी ,  एक प्रभू रहे जिय जाती ।  नर ! भक्ति करो धर प्रीतीजी ,  फिर दुःख कभू नहि आई ॥४ ॥ 

हरि ! तुम्हरी महिमा न्यारीजी

 ( तर्ज - अब तुम दया करो महादेवजी ० )  हरि ! तुम्हरी महिमा न्यारीजी ,  मन लावन लागे नाता ॥ टेक ॥  तुम दास किये भव - पारा ,  उनका भव- भार उतारा ।  कर दया उन्हीको ताराजी ,  बस दिलमें योंहि सुहाता ॥ १ ॥  जब गजने नाम पुकारे ,  तुम दौर दौरकर तारे ।  द्रौपदिके कष्ट निवारेजी ,  वह अवसर दुखका जो था ॥ २ ॥  प्रल्हाद पिताने छेडा , तब तुमने दुखसे छोड़ा ।  उस- कारण खंबा तोडाजी ,  अपना निज - रूप बताता।।३ ।।  क्या कहें तुम्हारी माया ?  तुमने हर भक्त तराया ।  कहे तुकड्या ' जी ' ललचायाजी ,  अब छोड कहीं ना जाता ॥४ ॥ 

जप जाओ हरिके नाम

 ( तर्ज- अब तुम दया करो महादेवजी ० )  जप जाओ हरिके नाम ,  दूजो साधन कलिमें नाही ॥ टेक ॥  मीठा है जनम हमारा ,  बिन नामके पशु - सम हारा ।  जो करे भजनसे प्याराजी ,  उसको फिर धोखा नाही ॥ सत् - जुगके योग नियारे ,  कलिमें है नाम पियारे ! ' ।  यह संत - जबान पुकारेजी ,  विश्वास करो उनमाँ ही ॥२ ॥  नेकीसे जगमें जीओ ,  मन पाक कराकर छीओ ।  बस रामनाम मुख गाओजी ,  फिर दूजो मारग नाही ॥३ ॥  हो संतसाधुकी सेवा ,  उनका सिर बचन उठावा ।  कहे तुकड्या टूटत आवा जी ,  फिर दुःख जिवनमें नाही ॥४ ॥ 

मोहे लागत नाम पियारा

 ( तर्ज - अब तुम दया करो महादेवजी ० )  मोहे लागत नाम पियारा ,  जिसमें ' सियाराम ' हो भाई ॥टेक ॥  हम योगयाग नहि जाने ,  नहि ब्रह्म - ग्यानको माने ।  भक्ती - रसके दीवाने जी ,  बस प्रेम बसा मनमाँही ॥ १ ॥ नहि आसन हमने कीन्हा ,  नहि जोग अंगपर लीन्हा ।  सियाराम नाम ले गानाजी ,  फिर दिलमें धोखा नाही ॥२ ॥  आँखोमे राम समाना ,  मुखसे वह रामहि गाना ।  " दिलसे उसमें रैगजानाजी ,  भरपूर कमाई पाई ॥३ ॥  बिन राम न काम सुहावे ,  नहि नेम प्रेममें भावे।  तुकड्या कहे राम जो गावेजी ,  बस वही न धोखा पाई ॥४ ॥ 

सब भूल गये तनकाज

 ( तर्ज- अब तुम दया करो महादेवजी ० )  सब भूल गये तनकाज ,  मनमें छाय गये गिरिधारी ॥ टेक ॥  जमुनातट बंसि बजाई ,  मनमोहन मोहनि लाई ।  उठ भाग चले घबराईजी ,  मन मौन भये दिश चारी ॥ १ ॥  बड भाग दर्श मन लागा ,  नैननमें वह रँग जागा ।  बनगये जगतसे निसंगाजी ,  बस टूटगयी दुइ सारी ॥ २ ॥  नैननमों श्यामकि लाली ,  लालीमें श्यामछबीली ।  मै देख देखकर भूलीजी ,  लग गयी श्यामकी तारी ॥ ३ ॥  अनहदकि मधुर धुनकारी ,  लगि तनमनको अति प्यारी ।  तुकड्याकि लाज गई सारीजी ,  जिया छोडत नाहि मुरारी ॥४ ॥ 

धन एक है बडा

 ( तर्ज - किस देवताने आज मेरा ० )  धन एक है बडा ,  प्रभु के चरण धर लिया ।  और तो किया न किया ,  राम भज लिया ॥ टेक ॥  कौड़ि कौड़ि जोडके  न साथ आयगी ।  गर राम साथ कर लिया  तो दुःख हरलिया ।। १ ।।  तीरथों में क्या रहा  बिन भक्तिको किये ? ।  घरमें प्रभू - स्मरण किया ,  करना सभी किया ॥ २ ॥  कहत तुकड्यादास खास ,  चित्त स्थिर किया ।  आत्म - ज्योति पाइ तभी ,  देव भर लिया || ३ || 

तनमें करो कोड़ खोज जी

 ( तर्ज - किस देवताने आज मेरा ० )  तनमें करो कोड़ खोज जी !  आनंद - कंद है ।  गुरुके कृपाबिना न खुले ,  ताल बंद है || टेक ॥  अभ्यास सदा साधकर  लगे रहो भितर ।  देख तभी पायगा  निजघर आनंद है ॥ १ ॥  जल रही है ज्योतिया ,  न बूझती कभी ।  न तैल है , न बात ,  रंग - भंग मंद है ॥२ ॥  न ढूँढकर पता चले ,  न बाहरी दिखे ।  गुरु - दयाको साधलो  तो फिर अनंद है ॥ ३ ॥  स्थीर चित्तको करो ,  करो मनन सदा ।  तुकड्या कहे भजो प्रभू ,  तो टूटे बंध हैं ॥ ४ ॥

प्रभुके बिना न सकल

 ( तर्ज - किस देवंताने आज मेरा ० )  प्रभुके बिना न सकल  जगत आवे काम है ।  बस खोज तो यही मिली  कि ' साथि राम है || टेक || उसके बिना घुमो सभी ,  न पार पायगा ।  सब स्वारथी हैं लोग  लोभके सकाम हैं ॥१ ॥  द्रव्य देखकर सभी ,   भली भलाई ले । दीनपे न देखे जरा दे अराम हैं ॥ २ ॥  आसरा बड़ा प्रभू जिसे दिलायगा उसकाहि बेडा पार है ,  बस सिद्ध काम है ॥३ ॥  प्यारे ! सुनो यह बात  राम - भक्ति रँग रहो ।  तुकड्या कहे तर जाओगे  प्रभुकेहि धाम है ॥४ ॥ 

मत सो रहे भोले

 ( तर्ज - किस देवताने आज मेरा ० )  मत सो रहे भोले !  बडा यह काल है खडा ।  सबको पकड दबायके  तेरेलिये अडा ॥ टेक ॥  जो पडे रहे विषयकि जालमें फँसे उसपरहि दंड देयगा ,  बस यार ! है बड़ा ॥ १ ॥  कई को उड़ा लिया ,  दिया सजा कड़ी कड़ी ।  चौरासि भोग - भोगमें  यह जान गिर पडा ? ॥२ ॥  है भुली जगतको पडी ,  आस छोडते ।  ग्यान की तलवार ले  वह संतही चढा ॥ ३ ॥ साधू - संग घर सदा  और कर हरी भजन ।  तुकड्याकी याद दिल धरो ,  क्यों भूल पड़ा ? ॥४ ॥ 

क्यों फिरता नर

 ( तर्ज - नैनमें बस जा गिरिधारी ० )  क्यों फिरता नर !  जग - विषयनमें ? ॥ टेक ॥  कौन सुखी इस सँगसे देखा ?  सोच जरा अपनेही मनमें ॥१ ॥  राजा - महाराज बडभारी ,  धूल भये इस झूठ लछनमें ॥ २ ॥  फाक भये कई जोगि - संन्यासी ,  बहल गये मायाके बनमें ॥३ ॥  तुकड्यादास कहे हरि भज तू ,  पावे सौख्य अखंडित तनमें ॥४ ॥ 

लागे अनहदकी धुन प्यारी

 ( तर्ज - नैनमें बस जा गिरिधारी ० )  लागे अनहदकी धुन प्यारी ॥ टेक ॥  बज बाँसुरी मधुरी मधुरसी ,  चढ़त बढ़त अँखियनकी तारी ॥ १ ॥  कोयल बोले मनुवा डोले ,  बाजत घनन घड्याल तुतारी ॥ २ ॥  चित एकांत , अंत ममताका ,  लागत समरस वृत्ति बहारी ॥ ३ ॥  तुकड्यादास कहे सुध लागी ,  मोरे मन मीठि लगत धुनकारी ॥४ ॥

मैं जानत सुख उन चरणमें

 ( तर्ज - नैनमें बस जा गिरिधारी ० )  मैं जानत सुख उन चरणमें ॥ टेक ॥  व्याघ्र-कडासन आसन जिनके मुंडमाल शोभे गलियनमें || १ || सीस जटा गंगाकी धारा ,  चंद्र बसे जिनके भालनमें ॥२ ॥ त्रिशुल डमरू कर शंख बिराजे ,  रहत मगन शिव रामभजनमें ॥ ३ ॥  तुकड्यादास कहे वैष्णवके ,  मुकुटमणी शोभत इस जनमें ॥४ ॥ 

अँखियाँ प्रेमनकी भूखी हैं

 ( तर्ज - नैनमें बस जा गिरिधारी ० )  अँखियाँ प्रेमनकी भूखी हैं ॥टेक ॥  तडप रही यह जान कलहमें ,  शांति बिना दरसन हूकी है ॥१ ॥  कब पाओ कब पाओ जियको ?  नींद न आय , जिहा सूखी है ॥२ ॥  जिधर - उधर मेरे श्यामकी तारी ,  देखनको मनुवा झुकी है ॥३ ॥ तुकड्यादास कहे मिल प्यारे !  माफ किया करके चुकी है ॥४ ॥ 

छोड मगरूरी , भज सद्गुरुको

 ( तर्ज - नैनमें बस जा गिरिधारी ० )  छोड मगरूरी ,  भज सद्गुरुको || टेक ||  मगरूरीसे खावत गोता ,  नाश करे नर अपने बरको ॥१ ॥  लीन रहनेसे ईश्वर पावे ,  टूटत बंधन फाँसे उरको ॥२ ॥  सत् - मारग बिन गति नहि पावे ,  देवत साख गुरू हरिहरको ॥३ ॥  तुकड्यादास कहे सुन भाई !  काट करो मगरूर जरूरको ॥४ ॥ 

हो हरि ! पावन

 ( तर्ज - नैनमें बस जा गिरिधारी ० )  हो हरि ! पावन  सहज सहजमे ॥ टेक ॥  कहाँतक साधन साधूँ निराले ?  दे दर्शन एक पलक  लहजमे || १ ||  तुम जानत घटघटकी तारी ,  कर करुणा मिलवा ले रजमे ॥२ ॥ बिन भक्ती कोइ ना जानूँ मैं ,  भूख बढी दर्शनकी मनमें  || ३ || तुकड्यादास कहे तोरि अँखियाँ ,  करत नाश सब दोष लहजमें  || ४ ||

कैसे जाऊँ मैं मोरी

 ( तर्ज - लिजो लिजो खबरीया ० )  कैसे जाऊँ मैं मोरी  गलि बंद भई ।  जमुना भरके चली  थोरी रीघ नहीं ॥ टेक ॥  बीचमें खड़े हैं  श्याम नंदके लला ।  रोक देखे ग्वालनको  क्या करूँ भला ? ।  मोरे नैननबीच  न सूझे कोई || १ || चित्तके चुरानेहार  आगये यहाँ ।  होगयी दिवानी ,  मुझे ना सुझे ' कहाँ ? ' ।  सारी श्यामने मोरि  मति बाँध लई ॥ २ ॥  बस गये जियामें श्याम ,  काम ना रहा ।  श्यामही खबर पड़े  जहाँ लखो वहाँ ।  सारी तुकड्याकी बातें  तो योंही रही ॥ ३ ॥

दुनिया झुकती है

 ( तर्ज - लिजो लिजो खबरीया ० )  दुनिया झुकती है ,  कोई झुकावे उसे ।  रंग में रंगती है ,  कोई रँगावे उसे ॥ टेक ॥  खुद करो अमल तो  दुजाभी अमल करे ।  खुद मसे जीते - जी ,  दुजाभी वही करे ।  सोखो खुदभी यह  और सिखाओ उसे ॥१ ॥  सच तुम्हारा दिल करो ,  दुनियाभी सच बने ।  गर पाय तुममें हो तो ,  सभी पाप दे तुम्हें ।  पहिले तुमहि बनो तो ,  बनाओ उसे ॥२ ॥  तुम बनो साधू तो ,  साधूभी जगत् बने ।  क्या तुम्हें करना है ,  वह न तुमही क्यों बने ? ।  तुकड्या कहता है ,  कोई न छकावे उसे ॥३ ॥ 

मनमें लाओ लगन

 ( तर्ज - लिजो लिजो खबरीया ० )  मनमें लाओ लगन ,  धुनमें ‘ राम ’ रटो ।  सत्य जीवनको पाओ ,  न पलभी हटो ॥ टेक ॥  कौन है दूजा जगत्‌के  फंद - लंदमें ? ।  स्वारथी हैं लोग ,  कोउ ना अनंदमें ।  साधू - संतके ग्यानसे ,  अग्यान यह कटो ॥१ ॥  देख लिन्हा लगतके  कई सेठ - साहु को सुख औ शांति ना लखि है  पास काहुँको ।   प्यारा दिलमें भजेसे  हर - द्वार डटो ॥२ ॥  प्रेमका भूखा प्रभु है ,  बात मानलो ।  है क्रोधियोंका नाश ,  आखरीमें जानलो ।  तुकड्या कहता है सोओ ना ,  जाग उठो ॥३ ॥

नरतन पाई जतन कर

 ( तर्ज - लिजो लिजो खबरीया ० )  नरतन पाई जतन कर ,  मान बदे !  अवसर फेर नहीं ,  दिलमें जान बंदे ! ॥टेक ॥  क्यों गमाते झूठमे पापों उठायकर जाओगे जमद्वार ,  तुम्हें क्या नहीं खबर ? ।  भजले भजले तू हरि  धरले ध्यान बंदे ! ॥१ ॥  करनिके फल पायगा ,  यह याद रख जरा ।  खबर ले इस बातकी ,  क्यों भूलमें परा ? ।  बिन सत् - संग ना उद्धरे  प्राण बदे ! ॥२ ॥ दम सुना मत खो कभी ,  चल राह नेकसे  कर न बुराई कभी ,  यह पूछले जी से ।  तुकड्या कहे रे !  रट हरि - नाम बंदे ! ॥३ ॥ 

साधो ! बनमेंहि काहेको भूल परा

 ( तर्ज - लिजो लिजो खबरीया ० )  साधो ! बनमेंहि काहेको भूल परा ?  तैने हरिका भजन क्यों दूर करा ? ||टेक||  छोडके घरदार सभी ,  ली तुंबडी साथमें ।  अंगमें बभूत चढा ,  माल धरी हाथमे तेरा मन ना रँगा है रँगा कपरा || १ || ख्याल तो लगा है सभी ' धन जमा लूँ पासमें ' ।  ग्यान बताता है बडा  ' रामका हूँ दास मैं ' ।  अपने बरे करमको  न छोडे जरा ॥ २ ॥  यह फकीरी ना करो ,  दिल जो कि सुखमें है लगा ।  चल डटो संसारमें ,  काला अपनको ना लगा ।  तुकड्या कहता है ,  मान घटेगा तेरा ॥ ३ ॥